भोपाल गैस पीड़ितों की उम्मीद
पुनर्वास केन्द्र गैस पीड़ित परिवारों के ऐसे बच्चों के लिए काम करता है जिनमें कई तरह की जन्मजात शारीरिक विकृतियां हैं;
- बाबा मायाराम
पुनर्वास केन्द्र गैस पीड़ित परिवारों के ऐसे बच्चों के लिए काम करता है जिनमें कई तरह की जन्मजात शारीरिक विकृतियां हैं। जिसमें मानसिक मंदता, हाट तालू विकार, हृदय विकार इत्यादि शामिल हैं। इस केन्द्र में इन सबका इलाज किया जाता है। इसके इलाज के लिए विशेषज्ञ हैं जो फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी करते हैं और विशेष शिक्षा प्रदान करते हैं।
हाल ही में भोपाल गैस कांड के 40 साल पूरे हुए हैं। लेकिन अभी भी गैस पीड़ितों की मुश्किलें कम नहीं हुए हैं। वे कई बीमारियों से पीड़ित हैं। मुझे कई बार गैस पीड़ितों से रूबरू होने का मौका मिला है। कुछ वर्ष पहले मैंने वहां गैस पीड़ितों के बच्चों के लिए काम करने वाले चिंगारी ट्रस्ट के काम को देखा था और यह रिपोर्ट बनाई थी। मुझे लगा इस मौके पर यह रिपोर्ट आप के साथ साझा करूं, जिससे बहुत कठिनाईयों के बीच रहकर भी गैस पीड़ित किस तरह आशा और उम्मीद से राह बना रहे हैं, यह पता चल सके।
भोपाल का गैस हादसा हुआ था, तब मैं विद्यार्थी था, और इसने हम सबको हिला दिया था। इस हादसे के कुछ समय बाद में भोपाल गया था, और गैस पीड़ितों के विरोध प्रदर्शन को करीब से देखा था। मुख्यमंत्री के आवास पर एक लम्बा धरना हुआ था, वहां भी पहुंचा था। यह हादसे के लगभग एक महीने की बात है। गैस पीड़ितों का बुरा हाल था, और वे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे।
लेकिन वहां भी गैस पीड़ितों की एकता देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ था। वहां सभी समुदायों के बीच सौहार्द व भाईचारा की मिसालें दिखाई देती थी। सभी बस्तियों से धरना में बैठे लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की जा रही थी। ठंड बहुत थी। अलाव जल रहा था। उसके आसपास बैठकर गैस पीड़ित व भोपालवासी उनकी दुख-तकलीफों को साझा कर रहे थे।
इसके बाद मैं कई बार भोपाल गैस पीड़ितों की संघर्ष में शामिल हुआ। वे कई बीमारियों से आज भी पीड़ित हैं। ऐसी खबरें आती रहती हैं। उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। लेकिन ऐसे हालात में भी वहां की संघर्ष पीड़ित महिलाओं ने साहस दिखाया है। न केवल उन्होंने सड़क पर संघर्ष किया है, बल्कि रचनात्मक कामों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है। ऐसा ही एक चिंगारी ट्रस्ट है, जिसके काम को मैंने कुछ साल पहले देखा था।
भोपाल शहर मध्यप्रदेश की राजधानी है लेकिन इसकी एक और पहचान है यूनियन कार्बाइड से रिसी गैस त्रासदी। इसे याद करके आज भी लोग सिहर जाते हैं। गैस प्रभावितों ने उनके इलाज, पुनर्वास, मुआवजा और अधिकार की लम्बी लड़ाई लड़ी है और संघर्ष के साथ रचना का काम भी किया है। गैस पीड़ित बच्चों के लिए पुनर्वास केन्द्र इसकी मिसाल है।
सभी जानते हैं कि 2-3 दिसंबर, 1984 की काली रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड (यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड) ने भोपाल की हवा में जहर घोल दिया था और इसमें हजारों लोग मारे गए, कई महिलाएं विधवाएं हो गईं, बच्चे अनाथ हो गए और जो बच गए वे कई बीमारियों व शारीरिक विकृतियों के शिकार हो गए। करीब तीन पीढ़ियों के बाद भी नवजात बच्चों में कई तरह से इसका असर देखा जा रहा है।
इसका प्रभाव सिर्फ एक घटना और तात्कालिक नहीं है बल्कि यूनियन कार्बाइड के आसपास के क्षेत्रों में जो जहरीले रसायन व अपशिष्ट पदार्थ मौजूद थे, उनसे भूजल प्रदूषित हो गया। इसकी कई जांच एजेंसियों ने इसकी पुष्टि की है। इस प्रदूषित भूजल ने भी नवजात बच्चों पर गहरा असर डाला है और उन्हें कई बीमारियों का शिकार बनाया है। यानी गैस पीड़ित और पानी पीड़ित दो तरह से लोग और खासतौर से बच्चे प्रभावित हुए हैं।
ऐसे ही एक गैस पीड़ित बच्चों के पुनर्वास केन्द्र को देखने मैं कुछ साल पहले भोपाल गया था। यह केन्द्र भोपाल की रशीदा बी और चंपादेवी शुक्ला के प्रयासों से चल रहा है। ये दोनों ही महिलाएं भोपाल की गरीब बस्ती की हैं और खुद भी गैस पीड़ित रही हैं। इन्होंने भोपाल के गैस पीड़ितों के साथ मिलकर उनके अधिकारों की लम्बी लड़ाई लड़ी है। भोपाल से लेकर दिल्ली और विदेश तक जाकर गैस पीड़ितों की आवाज उठाई जिसका ही परिणाम है उनकी इस लड़ाई को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर न केवल सराहा गया बल्कि सम्मान मिला।
वर्ष 2004 में रशीदा बी और चंपादेवी शुक्ला को संयुक्त रूप से अमेरिका में गोल्डमेन पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार में मिली राशि से चिंगारी ट्रस्ट बनाया। पूरी राशि ट्रस्ट को दान कर दी है। 22 मार्च 2005 में चिंगारी ट्रस्ट बना और इसी ट्रस्ट ने पुनर्वास केन्द्र शुरू किया।
चिंगारी ट्रस्ट की संस्थापक सदस्य रशीदा बी बताती हैं कि वे गैस पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिए सतत संघर्ष कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने गैस पीड़ितों के साथ मिलकर गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ बनाया। यह ट्रेड यूनियन है और इसके माध्यम से लगातार संघर्ष किया। उन्होंने गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ी और कुछ आंशिक सफलता भी पाई।
यह संयोग ही था कि मैं भोपाल गैस पीड़ितों के बच्चों के पुनर्वास केन्द्र में उनसे रूबरू हो रहा था पर मुझे उस समय 6 अगस्त, 1945 की जापान के हिरोशिमा की याद आ रही थी जहां अमरीका ने बम गिराया गया था, जिससे भारी तबाही हुई थी। उसका असर कई पीढ़ियों तक देखा गया था। वहां की कहानियां आज भी दिल दहला देती हैं। शायद भोपाल गैस त्रासदी की घटना भी ऐसी ही है, गैस प्रभावितों की पीढ़ियों में इसका असर देखा जा रहा है। कई बार मैं सोचता हूं कि भोपालवासियों का क्या कसूर था, जो उन्हें यह सब झेलना पड़ रहा है?
इसका उद्देश्य गैस पीड़ित व प्रदूषित भूजल (यूनियन कार्बाइड के आसपास) प्रभावित महिलाओं और बच्चों के हितों के लिए काम करना है।
पुनर्वास केन्द्र गैस पीड़ित परिवारों के ऐसे बच्चों के लिए काम करता है जिनमें कई तरह की जन्मजात शारीरिक विकृतियां हैं। जिसमें मानसिक मंदता, हाट तालू विकार, हृदय विकार इत्यादि शामिल हैं। इस केन्द्र में इन सबका इलाज किया जाता है। इसके इलाज के लिए विशेषज्ञ हैं जो फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी करते हैं और विशेष शिक्षा प्रदान करते हैं।
यहां 12 वर्ष तक के बच्चों का इलाज और शिक्षा की व्यवस्था है। इनमें से अधिकांश बच्चों के अभिभावक गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं। सोमवार से शुक्रवार तक यह केन्द्र खुला रहता है। सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक बच्चे केन्द्र में रहते हैं, इलाज कराते हैं, सीखते हैं और खेलते हैं। इस दौरान उन्हें दोपहर का भोजन भी निशुल्क दिया जाता है।
इन बच्चों को उनके घर से पुनर्वास केन्द्र तक आने-जाने की वाहन सुविधा भी ट्रस्ट के माध्यम से की जाती है। इसके अलावा, ट्रस्ट बच्चों के लिए प्रमाण पत्र बनवाने में सहायता प्रदान करता है। यह प्रमाण पत्र सरकार से मिलने वाली कई योजनाओं का लाभ लेने के लिए जरूरी है।
पुनर्वास केन्द्र में आकर बच्चे बेहतर हो रहे हैं और अपना सामान्य बच्चों की तरह खेल-कूद रहे हैं। एक छोटी बच्ची जो ओटिजिम और सेंसरी इंटीग्रेशन डिस आर्डर से पीड़ित थी और इसीलिए किसी को छूना पसंद नहीं करती थी, अब सबसे हाथ मिलाती है। एक अन्य बालिका जिसका मानसिक व शारीरिक विकास 2 साल के बच्चों जैसा था, चिंगारी में विशेष शिक्षा के बाद हंसमुख व मिलनसार हो गई है।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि चिंगारी ट्रस्ट बच्चों के लिए उम्मीद है और बच्चे खुद समाज, परिवार और देश की उम्मीद हैं। गैस त्रासदी से जो लम्बी निराशा हुई थी, पुनर्वास केन्द्र जैसे प्रयासों से आशा में बदल जाती है। लेकिन इसके साथ भी गैस पीड़ितों के इलाज, पुनर्वास, और उनके बेहतर भविष्य के लिए काफी कुछ किया जाना चाहिए, क्या इस दिशा में और भी शिद्दत से काम किया जाएगा?