जीएसटी सुधार या भूल सुधार
30 जून और 1 जुलाई 2017 की आधी रात को संसद भवन को बिजली की लड़ियों और फूलों से सजाया गया था;
30 जून और 1 जुलाई 2017 की आधी रात को संसद भवन को बिजली की लड़ियों और फूलों से सजाया गया था। जगमगाती संसद में नरेन्द्र मोदी ने आर्थिक आजादी की घोषणा की और वो भी आधी रात को। मीडिया ने इसे हिंदुस्तान का ऐतिहासिक पल बताया था। मकसद साफ था कि नेहरूजी ने आधी रात को ही दुनिया के सामने देश की आजादी का ऐलान किया था, तो किसी भी तरह उनके समकक्ष आने के लिए नरेन्द्र मोदी ने संसद भवन का ही इस्तेमाल किया और वह भी आधी रात को। दरअसल 1 जुलाई 2017 से गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) लागू हुई और इसमें वैट, सेवा टैक्स और एक्साइज ड्यूटी जैसे कई अप्रत्यक्ष टैक्स को एक साथ किया गया। लेकिन जिस तरह नोटबंदी की असफलता देश के सामने आने में देर नहीं हुई। वैसे ही जीएसटी की कमियां भी व्यापारियों को परेशान करने लगीं और आम आदमी के लिए भी कई तरह से यह व्यवस्था मारक साबित हुई।
अब इस साल प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले से जीएसटी में महत्वपूर्ण बदलाव के वादे किए थे। उनके हिसाब से यह जनता के लिए दीवाली का तोहफा होगा। लेकिन शायद बिहार चुनाव के कारण दीवाली से पहले ही जीएसटी में दरों में बदलाव किया गया है, जो इसी महीने 22 सितंबर से लागू हो जाएगा। जीएसटी परिषद ने 3 सितंबर को इसकी मंजूरी दे दी है। अब 12फीसदी और 28 फीसदी की कर स्लैब को ख़त्म कर दिया गया है। केवल दो स्लैब 5 फीसदी और 18 फीसदी रहेंगे साथ ही सिगरेट, शराब, निजी नौका, हेलीकॉप्टर जैसे खास सामानों पर 40फीसदी की विशेष कर दर लागू की जाएगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि ये सुधार आम आदमी को ध्यान में रखकर किए गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा, 'यह सुधार आम आदमी, किसानों, मध्यम वर्ग, और एमएसएमई के लिए लाभकारी होंगे।Ó
मीडिया एक बार फिर चरणवंदन में लग चुका है। इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक जैसे शीर्षकों से पेश किया जा रहा है, जबकि असल में यह कांग्रेस की सलाह पर अमल है और अपनी गलती का सुधार है। 2017 से आम आदमी को रोजमर्रा की जरूरतों से लेकर जीवनरक्षक दवाओं तक सब पर जीएसटी का भार सहना पड़ता था। अब सरकार इसे आम आदमी के लिए राहत बता रही है। राहुल गांधी 2017 से लेकर अब तक कई बार यह मांग कर चुके थे कि गरीबों, मध्यम वर्ग और एमएसएमई आदि को ध्यान में रखकर कर की दरें लागू हों, लेकिन उनकी बात को नहीं सुना गया। दरअसल जीएसटी के कारण खाद, किताब, ट्रैक्टर, दवाई, पढ़ाई दूध-दही, आटा-अनाज, यहां तक कि बच्चों की पेन्सिल-किताबें, ऑक्सीजन, इंश्योरेंस और अस्पताल के खर्च जैसी रोज़मर्रा की चीज़ें भी महंगी हो गई थीं। देश के इतिहास में पहली बार किसानों पर टैक्स लगा, सरकार ने कृषि क्षेत्र की कम से कम 36 वस्तुओं पर जीएसटी थोपा था।
अब राहत देकर इसे जनता के लिए एक बड़े तोहफे के तौर पर पेश किया जा रहा है। नए जीएसटी स्लैब के बाद अब कैंसर की जीवन रक्षक दवाओं पर अब शून्य दर से कर लगेगा। दूध, पनीर, स्नैक्स और ब्रेड सहित आम उपभोग की 175 वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी। पनीर, छेना और पराठे सहित सभी प्रकार की भारतीय रोटियों पर कर 5 प्रतिशत से घटकर शून्य हो जाएगा। बालों का तेल, साबुन, शैंपू, टूथब्रश, रसोई के सामान अब 5 प्रतिशत कर के दायरे में आएंगे। 33 जीवन रक्षक दवाइयां 12 प्रतिशत से शून्य कर के दायरे में आ जाएंगी। मानव निर्मित रेशे पर कर 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत और मानव निर्मित धागे पर कर 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम पर अब कोई जीएसटी नहीं लगेगा फिलहाल बीमा प्रीमियम पर 18 फीसदी जीएसटी वसूला जाता है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि बीमा कंपनियों से आप उपभोक्ता को कितनी राहत मिलेगी, क्योंकि अपने नुकसान की भरपाई भी आखिर में कंपनियां ग्राहकों से ही वसूलेंगी। यही बात बाकी उत्पादों पर भी लागू होती है। एक बार कोई सामान महंगा बिकने लगे तो शायद ही कभी दाम कम होते हैं। इसलिए दीवाली से पहले जिन लोगों को यह लग रहा है कि सरकार से उनको वाकई तोहफा मिल गया तो वे अपनी खुशियां थाम कर रखें। नई दरें लागू होने के बाद देखें कि सामान सस्ता होता है या किसी और तरीके से कीमत बढ़ाई जाती है।
वैसे भी इस सरकार का ट्रैक रिकार्ड उद्योगपतियों के साथ खड़े होने का है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बताया है कि कुल जीएसटी का दो-तिहाई यानी 64फीसदी हिस्सा गरीबों और मध्यम वर्ग की जेब से आता है, और अरबपतियों से केवल 3फीसदी जीएसटी वसूला जाता है, जबकि कॉरपोरेट टैक्स की दर 30फीसदी से घटाकर 22फीसदी कर दी गई है। दरअसल एक देश एक टैक्स की बात करते हुए मोदी सरकार ने 0फीसदी, 5फीसदी, 12फीसदी, 18फीसदी, 28 फीसदी की दरों के साथ 0.25फीसदी, 1.5फीसदी, 3फीसदी और 6फीसदी की विशेष दरों वाली एक देश 9 टैक्स प्रणाली को लागू किया था। इस वजह से व्यापारियों को तकलीफ हो रही थी, उसके कुछ उदाहरण भी सामने आए थे। तमिलनाडु में एक व्यापारी ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी तो उसे निर्मला सीतारमण के सामने बाद में माफी मांगनी पड़ी थी। सरकार की जिद और मनमानेपन का यह एक सबूत था। हालांकि जीएसटी को श्री मोदी अपने बड़ी सफलता की तरह पेश करते रहे, लेकिन उसमें बार-बार बदलाव से यह जाहिर था कि 140 करोड़ की आबादी को प्रभावित करने वाले इस फैसले पर ठीक से सोच-विचार भाजपा ने नहीं किया। इससे पहले 28 फ़रवरी 2005 को यूपीए सरकार ने लोक सभा में जीएसटी की औपचारिक घोषणा की थी। फिर 2011 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुख़र्जी जीएसटी बिल लेकर आए तब भाजपा के साथ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही जीएसटी का घोर विरोध किया था। अब इसी जीएसटी को वे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं, जबकि यह कांग्रेस के फैसले को दोहराने से ज्यादा कुछ नहीं है।