ललित सुरजन की कलम से - यात्रा वृतांत: कुछ इंदौर, कुछ उज्जैन
'हमें इंदौर एक दिन रुककर उज्जैन जाना था। मित्रों ने प्रसन्नता के साथ सूचित किया- कोई परेशानी नहीं, बस पचास किलोमीटर तो है;
'हमें इंदौर एक दिन रुककर उज्जैन जाना था। मित्रों ने प्रसन्नता के साथ सूचित किया- कोई परेशानी नहीं, बस पचास किलोमीटर तो है, एक घंटे में पहुंच जाएंगे। कोई हड़बड़ी मत कीजिए। हमने उनकी बात मान ली।
शहर से निकलकर हाईवे तक आने में जो भी समय लगा हो, उसके बाद तो चालीस-पैंतालीस मिनट में सफर तय हो गया। शहर के भीतर एक एक्सप्रेस-वे है इस पर टोल टैक्स का नाका पड़ता है। हमारे टैक्सी ड्राइवर ने टोल नहीं पटाया। उसने बताया कि यह नाका अवैध रूप से चल रहा है।
सरकार इसे बंद कर चुकी है। इंदौर वाले इस बात को जानते हैं, लेकिन बाहर की नंबर प्लेट देखकर नाकेदार वसूली कर लेते हैं। उसने भाजपा के एक बड़े स्थानीय नेता का नाम लिया कि अवैध वसूली में चालीस परसेंट हिस्सा उनको जाता है।
उन नेता की शहर में और कहां-कहां हिस्सेदारी है, क्या-क्या जमीन-जायदाद हैं, यह रहस्योद्घाटन भी उसने किया। एक तरफ इंदौर की सड़कों की स्वच्छता, दूसरी तरफ राजनीति की मलीनता, दो विरोधाभासी तथ्य उजागर हुए। लेकिन टैक्सी ड्राइवर ने जो बात बताई वह तो आज की कड़वी सच्चाई है और सर्वव्यापी है। इसकी सफाई कैसे होगी, पता नहीं।'
(देशबन्धु में 29 जून 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/06/blog-post_28.html