ललित सुरजन की कलम से- वर्ग विभेद की भाषा व योजनाएं

'प्रधानमंत्री अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान फेसबुक के कार्पोरेट दफ्तर में गए। यह बात भी कुछ समझ नहीं पड़ी;

Update: 2024-11-15 08:59 GMT

'प्रधानमंत्री अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान फेसबुक के कार्पोरेट दफ्तर में गए। यह बात भी कुछ समझ नहीं पड़ी। प्रधानमंत्री की भेंट यात्रा उन दिनों हुई जब भारत में भी नेट निरपेक्षता पर गर्मागरम बहस छिड़ी हुई है। यह तथ्य सामने आया है कि फेसबुक के मालिक मार्क ज़ूकरबर्ग नेट निरपेक्षता की अवधारणा को सिरे से खत्म कर एकाधिकार स्थापित करने के प्रयत्नों में जुटे हुए हैं। किसी भी देश के शासन प्रमुख को ऐसे मामलों में सतर्क व सावधान रहकर ही दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाना चाहिए।

फेसबुक भारत में पहले से ही अच्छा खासा व्यवसाय कर रही है, लेकिन वह हमारे यहां नेट आधारित सेवाओं पर एकाधिकार जमाना चाहे तो उसका समर्थन कैसा किया जा सकता है तथा उसमें प्रधानमंत्री की परोक्ष सहमति का लेशमात्र संदेह भी क्यों हो? अभी प्रधानमंत्री ने एक के बाद एक जो योजनाएं शुरु की हैं उनमें से भी कुछ के बारे में यह प्रश्न उठता है कि क्या इनसे सचमुच देश का विकास होगा व इनका असली मकसद क्या है?'

'स्टार्ट अप इंडिया एक ऐसा ही कार्यक्रम है जिसको लेकर मैं बहुत आश्वस्त नहीं हूं। एक तो इस योजना का लाभ मुख्यरूप से देश के अभिजात शिक्षण संस्थानों यथा आईआईटी अथवा आईआईएम से निकले युवा ही उठा पाएंगे। दूसरे, निजी क्षेत्र के निवेशक पहले से यह काम कर रहे हैं। सरकार को उसमें जाने की आवश्यकता नहीं थी। तीसरे, इसमें रोजगार के बहुत अधिक अवसर पैदा होने की गुंजाइश नहीं दिखती। दूसरे शब्दों में भारत के उन अधिसंख्यक युवाओं के लिए स्टार्ट अप इंडिया का कोई मतलब नहीं है जो अपने प्रदेश के किसी सामान्य विश्वविद्यालय की डिग्री हाथ में लिए रोजगार तलाश रहे हैं और जो दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी तक बन जाने का अवसर पाने के लिए मारे-मारे यहां से वहां फिरते हैं। आप कहेंगे कि इनके लिए मुद्रा बैंक है तो फिर उन बैंक मैनेजरों से जाकर पूछिए जो इन्हें ऋण देने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं। मतलब फिर वही खाई बढऩे की आशंका यहां भी है।'

(देशबन्धु में 28 जनवरी 2016 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/01/blog-post_28.html

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