ललित सुरजन की कलम से- तेजस्वी बिहार
19 नवंबर को नीतीश मंत्रिमंडल को शपथ ग्रहण में अनेक दलों व विभिन्न प्रदेशों के प्रतिनिधि गुलदस्ते लेकर पहुंचे;
19 नवंबर को नीतीश मंत्रिमंडल को शपथ ग्रहण में अनेक दलों व विभिन्न प्रदेशों के प्रतिनिधि गुलदस्ते लेकर पहुंचे। इस अवसर पर डॉ. फारूख अब्दुल्ला ने जो टिप्पणी की उसे अलग से रेखांकित करना होगा। एक समय था जब स्वयं डॉ. अब्दुल्ला तीसरे मोर्चे के बड़े नेता के रूप में उभर रहे थे। उन्हें शायद विश्वास हो गया था कि वे एक दिन प्रधानमंत्री अवश्य बनेंगे। यह सपना टूटा तो वे राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हो गए।
इसका जिक्र देश के आला खुफिया अधिकारी ए.एस. दुल्लत ने अपनी हाल में प्रकाशित आत्मकथा 'कश्मीर- द वाजपेयी ईयर्स' में किया है। इन्हीं डॉ. अब्दुल्ला ने पटना में नीतीश कुमार की हौसला अफजाई की कि वे आने वाले समय में प्रधानमंत्री बन सकते हैं। उन्होंने कोई नई बात नहीं की लेकिन जिस मौके पर की उसमें एक बार फिर नीतीशजी की महत्वाकांक्षा को नए पंख मिल सकते हैं। नीतीश कुमार राजनीति के उतार-चढ़ावों को भली-भांति जानते हैं और फिलहाल उम्मीद यही रखना चाहिए कि वे भावावेश में कोई निर्णय नहीं लेंगे।
आज यह बात इसलिए करना पड़ रही है क्योंकि पांचवी बार बने मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल का जैसा गठन किया है उसे लेकर आलोचना भी की जा सकती है और शंका भी उभरती है। इस नए मंत्रिमंडल में नीतीश कुमार ने अपने बहुत से पुराने साथियों को फिलहाल अलग रखा है। अधिकतर मंत्री युवा और नए हैं। बताया गया है कि उन्होंने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों का चयन करने में सामाजिक समीकरणों का विशेष ध्यान रखा है। इसके विपरीत यह भी कहा गया कि उन्होंने भौगोलिक समीकरणों को भुला दिया है।
(देशबन्धु में 26 नवंबर 2015 को प्रकाशित)
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