ललित सुरजन की कलम से -क्या अमेरिका भारत का दोस्त है?

'1947 से लेकर अब तक का घटनाचक्र बतलाता है कि विश्व में अपनी दादागिरी स्थापित करने के चक्कर में अमेरिका ने भारत को कभी भी अपना मित्र नहीं माना;

Update: 2024-11-22 09:47 GMT

'1947 से लेकर अब तक का घटनाचक्र बतलाता है कि विश्व में अपनी दादागिरी स्थापित करने के चक्कर में अमेरिका ने भारत को कभी भी अपना मित्र नहीं माना। उसने संयुक्त राष्ट्र संघ में काश्मीर के मसले पर हमेशा भारत का विरोध किया, बंगलादेश मुक्ति संग्राम के दौरान उसने भारत के साथ दुश्मनों जैसा बर्ताव किया, उसकी गुप्तचर संस्था सीआईए ने भारतीय विमान 'काश्मीर प्रिंसेस' को विस्फोट से उड़ाकर भारत-चीन के बीच दुश्मनी पैदा करने की कोशिश की और जब कभी भारत के प्रति सहायता का हाथ बढ़ाया तो सिर्फ ऐसे मौकों पर जब उसे ऐसा करने में अपना फायदा प्रतीत हुआ। पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी अमेरिका के इन मंसूबों को भलीभांति समझते थे। इसलिए उन्होंने कभी भी अमेरिका के साथ अपने संबंधों में कोई उतावलापन नहीं दिखाया।'

'इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू है। भारत को स्वाधीनता के बाद अपने नवनिर्माण में यदि किसी देश ने सबसे यादा सहायता दी, वह भी उदार और निशर्त, तो वह सोवियत संघ था। काश्मीर के प्रश्न पर उसने अपने वीटो का इस्तेमाल हमेशा भारत के पक्ष में किया, उसने भिलाई इस्पात संयंत्र स्थापित करने में भरपूर मदद की, बुदनी (म.प्र.) का ट्रेक्टर प्रशिक्षण केन्द्र और सूरतगढ़ (राज.) का सामुदायिक कृषि फार्म जैसी संस्थाएं उसके सहयोग से स्थापित हुईं, उसने विदेशी मुद्रा के बदले हमसे रुपयों में सौदा किया, भले ही भारतीय मुद्रा की उसे कोई जरूरत नहीं थी।

सैन्य सामग्री में भी सोवियत संघ ने भारत की मदद की। इस सबके बावजूद यह विडंबना ही कही जाएगी कि भारत के सुखी-सम्पन्न-स्वार्थी तबके ने सोवियत संघ को अपना मित्र नहीं माना, बल्कि हर मौके पर उसका मखौल उड़ाया और जो अमेरिका भारत को अपने पैरों तले रखना चाहता है उसकी चरण-धूलि अपने माथे पर लगाकर यह वर्ग विभोर होते रहा।'

(देशबन्धु में 02 जनवरी 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/01/blog-post_1.html

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