ललित सुरजन की कलम से- मुस्लिम देशों में हिन्दू मंदिर!

देश का जो राजनीतिक वातावरण है उसमें स्थितियों का सही ढंग से आकलन करने की ओर जनता का ध्यान जाए;

Update: 2024-11-19 09:08 GMT

'देश का जो राजनीतिक वातावरण है उसमें स्थितियों का सही ढंग से आकलन करने की ओर जनता का ध्यान जाए। सामान्य तौर पर होता यह है कि अधिकतर समय हम अपने-अपने कामों में मशगूल, अपनी-अपनी चिंताओं में मुब्तिला रहते हैं। देश का राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक वातावरण कैसा है उस पर हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता।

भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सतही चर्चाएं होती हैं। उनमें हम कुछ देर दिलचस्पी लेते हैं और वापिस अपनी खोल में लौट आते हैं। जो सत्ता में बैठे हैं या जो सत्ता में आना चाहते हैं वे कैसे-कैसे प्रपंच रचते हैं इसे हम अपनी बेख्याली में समझ नहीं पाते या फिर भावनाओं में बह जाते हैं। हाल के वर्षों में भारत की जनता जाति, धर्म, भाषा, प्रांत, खानपान इन सबको लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो गई है। छोटी-छोटी बातों पर हम चिंहुक उठते हैं। यह काम भावनाओं को भड़काने वाली शक्तियां करती हैं। ऐसे में हम अपने मानसिक क्षितिज का विस्तार करने के बजाय संकीर्ण मनोवृत्ति का शिकार हो जाते हैं।

प्रधानमंत्री की यात्रा के उपरोक्त सारे प्रसंग बतलाते हैं कि हर चीज काली या सफेद नहीं होती। काले और सफेद के बीच भूरा रंग भी होता है। हिन्दू बनाम गैरहिन्दू, हिन्दू बनाम मुसलमान, हिन्दू बनाम ईसाई, शाकाहारी बनाम मांसाहारी, आदमी बनाम औरत, सवर्ण बनाम दलित-आदिवासी भारत बनाम पश्चिम, यह सोच आत्मघाती हैं।विकास के पथ पर आगे बढ़ने के बजाय पीछे ले जाने वाली सोच है यह। सोशल मीडिया पर गाली-गलौज करने, सड़क पर लोगों को मारने, किसी के घर में घुसकर हत्या करने, इन सब कुकृत्यों में कोई गर्व की बात नहीं है। अपने लिए सुखी जीवन और अपने बच्चों के लिए सुखी भविष्य गढ़ने के लिए सहिष्णुता और समन्वय की आवश्यकता है। स्वयं प्रधानमंत्री को सत्ता में बने रहने के लिए समन्वय करना पड़ रहा है, जैसा कि इस यात्रा से प्रकट हुआ। तो फिर जनता क्यों इनके उकसावे में आए?'

(देशबन्धु में 22 फरवरी 2018 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/02/blog-post_22.html

 

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