ललित सुरजन की कलम से - हिमाचल प्रदेश-3 : जहां अकबर ने देवी को छत्र चढ़ाया
'भारत के अनेक धर्मस्थानों की तरह ज्वालामुखी मंदिर के लिए भी एक जनसंकुल बाजार से गुजरना होता है;
'भारत के अनेक धर्मस्थानों की तरह ज्वालामुखी मंदिर के लिए भी एक जनसंकुल बाजार से गुजरना होता है। एक किलोमीटर की चढ़ाई जिसके दोनों तरफ दुकानें और फिर सर्पाकार पंक्ति में सरकते हुए अपनी बारी आने की प्रतीक्षा। ऐसे भी कुछ उद्यमी थे जो रेलिंग फांदकर आगे निकल अपनी वीरता का प्रदर्शन कर रहे थे। बहरहाल हमारी बारी आई। गर्भगृह के बीचों बीच एक कुंड जिसमें अग्निशिखा प्रज्ज्वलित हो रही थी। एक कोने में आले जैसी जगह पर एक और शिखा थी जिसे हिंगलाज देवी का नाम दिया गया था।'
'भक्तजनों का रेला लगा हुआ था, लेकिन मेरा ध्यान समीप के एक कक्ष पर चला गया जहां दीवार पर बड़े-बड़े हर्फों में लिखा था कि शहंशाह अकबर ने देवी माता को छत्र चढ़ाया था, वह यहां है। मेरे लिए यह एक नायाब जानकारी थी। उस कक्ष में प्रवेश किया, देवी की सामान्य आकार की प्रतिमा वहां थी, सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित, मुख मंडल पर सौम्य भाव और सिर पर मुकुट; बाजू में इबारत थी शहंशाह अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र। उसके साथ तीर का निशान था ताकि कोई शक-शुबहा न रहे। मैं यह देखकर किसी हद तक चकित था। एक दिन पहले ही तो नूरपुर के किले में मुसलमान चारण द्वारा भेंट किया गया मंदिर का प्रवेश द्वार देखा था, आज यहां शहंशाह द्वारा चढ़ाया गया मुकुट देख लिया। यात्राओं के दौरान साम्प्रदायिक सद्भाव के ऐसे उदाहरण जगह-जगह देखने मिलते हैं लेकिन जिनकी आंखों पर पट्टी चढ़ी होती है वे इन्हें देखकर भी देखने से इंकार कर देते हैं।'
(देशबन्धु में 31 जुलाई 2017 को प्रकाशित)
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