ललित सुरजन की कलम से- आसियान देशों के साथ दोस्ती
'आसियान देश और भारत के बीच के संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू यही है कि हमारी मैत्री का इतिहास बहुत लंबा है;
'आसियान देश और भारत के बीच के संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू यही है कि हमारी मैत्री का इतिहास बहुत लंबा है। इनके साथ हमारे रिश्ते कभी तनावपूर्ण भी नहीं रहे। इन सभी देशों पर प्राचीन भारतीय संस्कृति का किसी न किसी हद तक प्रभाव है। हमारी ही तरह इन्होंने भी उपनिवेशवाद के दौर में गुलामी झेली है तथा लड़कर स्वाधीनता पाई है।
थाइलैंड को अपवाद माना जा सकता है जो प्रत्यक्ष रूप से कभी विदेशी सत्ता के अधीन नहीं रहा। एक बड़ी खासियत भौगोलिक रूप से है। ये देश चीन के दक्षिण और भारत के पूर्व में है। याने एशिया के दो बड़े देशों की परछाई इन पर शताब्दियों से किसी न किसी रूप में पड़ती रही है। लाओस, वियतनाम और कंबोडिया के सकल क्षेत्र को तो इंडो-चाइना कहकर ही पहचाना जाता रहा है।'
'इन दस देशों में तीन की जनसंख्या मुस्लिम बहुल है। ये हैं- ब्रुनेई, मलेशिया, और इंडोनेशिया। इंडोनेशिया विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला देश है। यहां इस्लाम का जो स्वरूप विकसित हुआ है उसे भारत में एक नजार की तरह पेश किया जाता है।
कारण यह है कि इंडोनेशिया पर प्राचीन भारतीय संस्कृति का किसी समय बड़ा प्रभाव था। वहां व्यक्तियों और स्थानों के नामों पर संस्कृत की स्पष्ट झलक आज भी देख सकते हैं। वहां रामायण-महाभारत का भी मंचन होता है और बाली द्वीप में दीवाली भी मनाई जाती है। आशय यह कि इंडोनेशिया में इस्लाम का काफी देशीकरण हुआ है। इसे आदर्श मानकर भारत में मुसलमानों पर उंगली उठाने वाले अपनी सुविधा से अनदेखी कर देते हैं कि यहां भी इस्लाम का कितनी बड़ी सीमा तक भारतीयकरण हुआ है।'
(देशबन्धु में 01 फरवरी 2018 को प्रकाशित)
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