ललित सुरजन की कलम से - दलित हिंदी कविता: मर्मान्तक वेदना और प्रखर चेतना
हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या एक ऐसा प्रकरण था जिसने पूरे देश के संवेदी समाज को हिलाकर रख दिया था;
हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या एक ऐसा प्रकरण था जिसने पूरे देश के संवेदी समाज को हिलाकर रख दिया था। सत्ताधीशों द्वारा इस त्रासदी को छोटा करने के लिए जितने भी उपक्रम किए गए उनसे उन्हीं का बौनापन उजागर हुआ।
गुजरात में दलितों पर अत्याचार और उसके प्रतिकार में जिग्नेश मेवाणी के नेतृत्व में एक नए आंदोलन का उदय, सहारनपुर में दलित बस्तियों में घर जलाने और उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाएं, उसके प्रत्युत्तर में नौजवान चंद्रशेखर आज़ाद की अगुवाई में आंदोलन- ये सारे प्रसंग हाल-हाल के हैं।
इनसे पता चलता है कि वर्चस्ववादी समाज अपनी पुरानी खोखली और सड़ चुकी मान्यताओं और परिपाटियों को छोडऩे के लिए तैयार नहीं है; वहीं दूसरी ओर वंचित, शोषित, दलित समाज में नई चेतना का उदय हो रहा है, अब वह यथास्थिति को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है, वह प्रतिकार कर रहा है।
उसने देशज परंपरा में ही अपने आदर्श पाए हैं जिनसे वह प्रेरणा पाकर एक नए जोश के साथ बेहतर स्थितियों की तलाश में आगे बढ़ रहा है।
(अक्षर पर्व जुलाई 2017 अंक की प्रस्तावना)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/07/blog-post_18.html