ललित सुरजन की कलम से- यह क्रिेकेट नहीं अफीम है

जब रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। जब भारत पर उत्तर और पश्चिम दिशाओं से विदेशी आक्रमण हो रहे थे;

Update: 2025-03-07 03:39 GMT

जब रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। जब भारत पर उत्तर और पश्चिम दिशाओं से विदेशी आक्रमण हो रहे थे,तब भारत के सम्राट, नरेश, क्षत्रप और सामंत खजुराहो जैसे मंदिरों का निर्माण करवाने में जुटे हुए थे।

जब फ्रांस में राज्यक्रांति होने को थी, तब महारानी मैरी भूखे प्रजाजनों को रोटी न मिलने पर केक खाने की मासूम सलाह दे रही थीं।

जब 1857 में लखनऊ पर ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज चढ़ी आ रही थी, तब बकौल प्रेमचंद, लखनऊ के नवाब शतरंज की बिसात में उलझे हुए थे।
जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारत राजनीतिक दिशा और लक्ष्य खो बैठा था, तब हमारे देश की सरकार रूस, फ्रांस और न जाने कहाँ-कहाँ भारत महोत्सव मनाने में मगन थी।

और जब भारत में महंगाई आसमान छू रही है, अनाज और सब्जियां मिलना तक दुश्वार हो रहा है तथा समूचा सत्तातंत्र भ्रष्टाचार के कीचड़ में आपादमस्तक लिथड़ा हुआ नजर आ रहा है, तब इस देश का सुविधाभोगी वर्ग क्रिकेट के नशे में डूबा हुआ है।

भारत इस समय अपने राजनैतिक इतिहास के एक बेहद नाजुक मोड़ से गुजर रहा है। आज वह आजादी और गुलामी के बीच जो फर्क है, उसे समझ पाने में असमर्थ नजर आता है। पूंजीवाद के नए अवतार ने देश को ऐसी चकाचौंध में डाल दिया है जहां किसी भी बात का सिरा मिलना लगभग असंभव हो गया

(7 अप्रैल 2011 को देशबंधु में प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/05/blog-post_2996.html

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