ललित सुरजन की कलम से- काली कमाई के कुछ ठिकाने
'यह निर्विवाद सत्य है कि राजनीति में, चुनावी राजनीति में विशेषकर भारी संख्या में धनराशि व्यय होती है;
'यह निर्विवाद सत्य है कि राजनीति में, चुनावी राजनीति में विशेषकर भारी संख्या में धनराशि व्यय होती है। कांग्रेस के एक प्रखर नेता महावीर त्यागी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि पंडित नेहरू के समय में भी पार्टी को ज्ञात-अज्ञात स्रोतों से चुनाव फंड जुटाना पड़ता था। इसकी जानकारी नेहरू जी को नहीं दी जाती थी, क्योंकि वे गलत तरीके से चंदा लेने के खिलाफ थे।
हो सकता है कि नेहरू जी इसकी अनदेखी कर देते हों! इसी तरह भारतीय राजनीति के एक विद्वान अध्येता पॉल आर ब्रास ने चौधरी चरण सिंह की राजनैतिक जीवनी लिखी है, उसमें भी उन्होंने आज़ादी के उस शुरूआती दौर में ही नेताओं द्वारा कैसे पैसा लिया जाता है, इसके उदाहरण सहित विवरण दिए हैं। ''सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ नेहरू'' में पं. नेहरू द्वारा सीपी एवं बरार के मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल को लिखे वे पत्र संकलित हैं, जिनमें उन्होंने मुख्यमंत्री को छत्तीसगढ़ अंचल के एक मंत्री द्वारा गलत तरीकों से की जा रही कमाई पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।'
'तब और अब में एक बड़ा फर्क है। उस समय एक तो बहुत अधिक धन की आवश्यकता पड़ती नहीं थी और दूसरे ऐसे राजनेता बिरले थे जो ऐसे गलत कामों में लिप्त होते थे। आज स्थिति एकदम विपरीत है। पहिले टाटा-बिड़ला-डालमिया इत्यादि राजनैतिक दलों को चंदा तो देते थे, लेकिन स्वयं राजनीति में आने की इच्छा नहीं रखते थे। अब भावना है कि जब हमारे दिए पैसे से कोई चुनाव जीत सकता है तो हम ही क्यों न नेता बन जाएं।'
(देशबन्धु में 08 दिसम्बर 2016 को प्रकाशित)
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