ललित सुरजन की कलम से- मसीहा की तलाश?

'मैं सोचता हूं कि सही मायनों में मसीहा तो बुद्ध और गांधी जैसे ही लोग थे। उन्होंने अपने समय में अपने आचरण से जन-जन को प्रभावित और प्रेरित किया;

Update: 2024-12-24 10:13 GMT

'मैं सोचता हूं कि सही मायनों में मसीहा तो बुद्ध और गांधी जैसे ही लोग थे। उन्होंने अपने समय में अपने आचरण से जन-जन को प्रभावित और प्रेरित किया और एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था कायम करने का रास्ता खोला जहां हर मनुष्य को बराबरी के अवसर मिले, जहां अपने-पराए का भेद न हो, जहां ऊंच-नीच और छुआछूत न हो, जहां एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से न देखा जाए और जहां सब मिलजुल कर सद्भाव व सौमनस्य के साथ सुंदर जीवन जी सकें।

हमने इन्हें मसीहा से ऊपर भी माना, लेकिन गौर करने की बात यह है कि बुद्ध या गांधी ने जनता को कभी उन पर निर्भर रहने के लिए नहीं कहा। उन्होंने जनसाधारण के स्वाभिमान को जगाया। उसकी छुपी हुई शक्ति से उसे परिचित कराया और निर्भय होकर आचरण करने की प्रेरणा दी। विचार करें कि क्या हम आज भी गांधी के रास्ते पर चल रहे हैं?'

'आज की बात करते हुए मालूम नहीं क्यों मेरा ध्यान अपनी पुराकथाओं की ओर चला जाता है। ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण से यह विनती क्यों की कि वे इंद्र के कोप से उनकी रक्षा करें? और अगर भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाना ही था तो उन्होंने ब्रजवासियों का आह्वान क्यों नहीं किया कि आओ हम सब मिलकर इस पहाड़ को उठा लें! क्या यह सर्वोच्च सत्ता के सामने समर्पण का उदाहरण नहीं है? मैं यह भी सोचता हूं कि गुरु विश्वामित्र राजा दशरथ के दरबार में ऋषियों की सुरक्षा के लिए राजपुत्रों को भेजने का अनुरोध करने क्यों आए?

संशय है कि उस युग में आज के समान कानून- व्यवस्था का कोई तंत्र था या नहीं। और अगर नहीं था तो इन ऋषि मुनियों का तपोबल कहां था? वे अपनी रक्षा स्वयं करने में समर्थ क्यों नहीं थे? यह मेरी अपनी जिज्ञासा है।'

(देशबन्धु में 02 मई 2019 को प्रकाशित)?

https://lalitsurjan.blogspot.com/2019/05/blog-post.html

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