ललित सुरजन की कलम से- सरकार ने मौके गंवाए
'चुनावों के पहले नरेन्द्र मोदी ने बुलेट ट्रेन का खूब सपना दिखाया था। रेल मंत्री के बजट में बुलेट ट्रेन का कोई अता-पता ही नहीं है;
'चुनावों के पहले नरेन्द्र मोदी ने बुलेट ट्रेन का खूब सपना दिखाया था। रेल मंत्री के बजट में बुलेट ट्रेन का कोई अता-पता ही नहीं है। अब कहा जा रहा है कि कुछ ऐसी ट्रेनें चलेंगी जिसकी रफ्तार शताब्दी एक्सप्रेस से ज्यादा और बुलेट ट्रेन से कम होगी। ये भी कब चलेंगी, पता नहीं। हर साल रेल बजट में कुछ नई ट्रेनों की घोषणा की जाती है, कुछ ट्रेनों के फेरे बढ़ते हैं, कुछ की दूरी बढ़ती है, इस बजट में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है।
रेल यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए अवश्य बहुत सी घोषणाएं की गई हैं, लेकिन इसमें भी क्या नया है। एक समय तीसरे दर्जे में लकड़ी की बर्थ होती थी, अब हर बोगी में फोम के गद्दे होते ही हैं। मोबाइल का चार्जर पाइंट और इस तरह की अन्य सुविधाएं निरंतर बढ़ रही हैं। सुरेश प्रभु ने ऐसी कोई बात नहीं कही है, जिसके लिए उन्हें या उनके बजट को याद रखा जाए। इसके अलावा अभी तो उन्हें यह भी देखना है कि जो घाटा उन्होंने दर्शाया है उसे पूरा करने के लिए रकम कहां से आएगी?'
'रेल बजट तो रेल बजट। आम बजट ने उससे भी ज्यादा निराश किया है। करेले पर नीम चढ़ा इस तरह कि दिन में बजट पेश हुआ और शाम को पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ा दी गईं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वेतनभोगी वर्ग को कोई राहत तो खैर नहीं दी, जले पर नमक छिड़कने वाली कहावत उन्होंने यह कहकर चरितार्थ कर दी कि मध्यम वर्ग अपनी फिकर खुद करे। ऐसा कहने का क्या मतलब है, किसी की समझ नहीं आया। एक विडंबना यहां भी देखने मिली कि श्री जेटली ने जहां जन सामान्य को कोई राहत देने से स्पष्ट इंकार कर दिया, वहीं उन्होंने कारपोरेट के आयकर में पांच प्रतिशत की कमी करने की घोषणा कर दी। रेल बजट में माल भाड़ा दस प्रतिशत बढ़ जाने का प्रतिकूल असर आम जनता पर पडऩा ही था। अब आम बजट में सेवा कर 12.36 से बढ़ाकर चौदह प्रतिशत कर देने का बोझ भी हर व्यक्ति को उठाना पड़ेगा।'
(देशबन्धु में 05 मार्च 2015 को प्रकाशित)
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