ललित सुरजन की कलम से: विमुद्रीकरण : पांच अहम बिन्दु

ऐसा याद नहीं पड़ता कि रिजर्व बैंक की भूमिका के बारे में आम जनता में इसके पहले कभी कोई चर्चा हुई हो।;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-06-29 21:00 GMT

ऐसा याद नहीं पड़ता कि रिजर्व बैंक की भूमिका के बारे में आम जनता में इसके पहले कभी कोई चर्चा हुई हो। रिजर्व बैंक में गवर्नर की नियुक्ति और सेवानिवृत्ति एक सामान्य प्रक्रिया के तहत चली आ रही थी, जिसमें पहली बार एक नया मोड़ रघुराम राजन का कार्यकाल समाप्त होने के साथ आया। रिजर्व बैंक ही देश की मुद्रानीति का नियमन और संचालन करता है, यह बात आम तौर पर लोग नहीं जानते, लेकिन प्रधानमंत्री तो इसे जानते थे। इसलिए एक ओर जहां उन्होंने स्वयं दूरदर्शन पर आकर विमुद्रीकरण की घोषणा की, वहीं दूसरी ओर वैधानिक औपचारिकता पूरी करने के लिए उसी दिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक आनन-फानन में बुलाकर उसमें सरकार की इच्छानुसार फैसला ले लिया गया। इस बारे में अब जाकर पता चला है कि रिजर्व बैंक के बोर्ड में स्वतंत्र सदस्यों के चौदह में दस पद खाली पड़े हैं और उपरोक्त बैठक में बचे चार में से कुल तीन स्वतंत्र सदस्य ही शामिल हुए। इस निर्णय से रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को आघात पहुंचा, साथ ही नवनियुक्त गवर्नर उर्जित पटेल की छवि भी धूमिल हुई।

(देशबन्धु में 29 दिसम्बर 2016 को प्रकाशित)

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