महिला किसानों का सामुदायिक रेडियो

तेलंगाना का छोटा गांव है माचनूर। वैसे तो यह गांव आम गांव की तरह है, लेकिन सामुदायिक रेडियो ने इसे खास बना दिया है;

Update: 2025-02-15 03:41 GMT

- बाबा मायाराम

करीब एक दशक पहले अक्टूबर 2008 में इस सामुदायिक रेडियो को लाइसेंस प्राप्त हुआ है। हालांकि यह अलग स्वरूप में 1999 से ही चल रहा था। डैक्कन डेवलपमेंट सोसायटी ( गैर सरकारी संस्था, इसे डीडीएस भी कहते हैं) इस इलाके में 80 के दशक से दलित महिला किसानों के बीच में काम कर रही है। जो जमीन यहां बंजर थी, कम उपजाऊ थी उसे सुधारने व उपजाऊ बनाया गया है।

तेलंगाना का छोटा गांव है माचनूर। वैसे तो यह गांव आम गांव की तरह है, लेकिन सामुदायिक रेडियो ने इसे खास बना दिया है। हाल ही में गुजरात के भुज में मुझे इस रेडियो की संवाददाता व संपादक से मिलने का मौका मिला, हालांकि कुछ साल पहले मैं उनके गांव भी गया था। आज के कॉलम में इसी अनूठे काम की कहानी बताना चाहूंगा। इस कहानी से हम यह समझ सकते हैं कि कुछ महिलाओं ने एक रेडियो जैसे संचार माध्यम को सालों चलाया है, और उसे उनके इलाके में न केवल लोकप्रिय बनाया है, बल्कि खेती जैसी पारंपरिक आजीविकाओं को पुनर्जीवित करने का माध्यम भी बनाया है।

संगारेड्डी जिले का गांव है माचनूर। जहीराबाद से करीब 10 किलोमीटर दूर निर्जन इलाके के पेड़ों के बीच स्थित है संगम रेडियो स्टेशन।
सामुदायिक रेडियो की संपादक जनरल नरसम्मा हैं, उनसे हाल ही में मिलकर मुझे कुछ साल पहले की याद आईं। मैं उनके इलाके व गांव में गया था, कई महिला किसानों से बात की थी। रेडियो स्टेशन देखा और डैक्कन डेवलपमेंट सोसायटी ( डीडीएस), जिसके प्रयास से यह सब संभव हुआ, उनके निदेशक पी.व्ही.सतीश से मिला था और उनसे डीडीएस व सामुदायिक रेडियो की कहानी सुनी। दुर्भाग्य से पी. व्ही सतीश जी अब नहीं है, उनका निधन हो गया। पर उनके द्वारा स्थापित संस्था डी.डी.एस. चल रही है।

सामुदायिक रेडियो की शुरूआत पौष्टिक अनाजों की खेती के प्रचार-प्रसार से हुई। पौष्टिक अनाज जैसे- ज्वार, सांवा, कोदो, कुटकी, रागी, काकुम, बाजरा, दालें, तिलहन इत्यादि। जो खेती लगभग उजड़ चुकी थी, उसे फिर से हरा-भरा करने के लिए इसकी जरूरत महसूस की गई। जब इस खेती में महिलाओं को सफलता मिली तो इसके प्रचार-प्रसार किया गया और इसका माध्यम बना संगम रेडियो।

करीब एक दशक पहले अक्टूबर 2008 में इस सामुदायिक रेडियो को लाइसेंस प्राप्त हुआ है। हालांकि यह अलग स्वरूप में 1999 से ही चल रहा था। डैक्कन डेवलपमेंट सोसायटी ( गैर सरकारी संस्था, इसे डीडीएस भी कहते हैं) इस इलाके में 80 के दशक से दलित महिला किसानों के बीच में काम कर रही है।
जो जमीन यहां बंजर थी, कम उपजाऊ थी उसे सुधारने व उपजाऊ बनाया गया है और उसमें पौष्टिक अनाजों की खेती की गई है। आज अनाज का उत्पादन, भंडारण व वितरण ( वैकल्पिक जन वितरण प्रणाली) का काम होता है।

डैक्कन डेवलपमेंट सोसायटी के निदेशक पी. व्ही सतीश स्वयं पत्रकार रहे थे। उन्होंने व उनके सहयोग से कुछ और लोगों ने गांव की महिलाओं को बुनियादी प्रशिक्षण दिया। स्क्रिप्ट लिखना, रिकार्ड करना और एडीटिंग करना सब कुछ महिलाएं ही करती हैं।

इसके संचालन के लिए कम्युनिटी मीडिया ट्रस्ट का गठन किया है जिसमें महिलाएं सामुदायिक रेडियो के साथ छोटी फिल्में भी बनाती हैं, जो उनके गांव, खेती व सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर होती हैं। इन फिल्मों से देश-दुनिया में पौष्टिक अनाजों की खेती का प्रचार-प्रसार हुआ है।

यहां ऊंचा टावर है, जहां से रोज शाम 7 से 9 बजे तक रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। दो घंटे के कार्यक्रम होता है जिसमें आधा घंटा फोन पर फीडबेक व चर्चा के लिए होता है। कार्यक्रम आधारित बात भी होती है। सभी कार्यक्रम तेलगू में होते हैं।

इसमें गांव, खेती, संस्कृति तीज-त्यौहार और स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम होते हैं। पर्यावरण ( पर्यावरणम) और गांव के समाचार ( विलेज न्यूज), और व्यंजन बनाने के तौर-तरीके (रेसेपी) जैसे कई कार्यक्रम होते हैं। अलग-अलग मुद्दों पर साक्षात्कार व बातचीत भी की जाती है।

महिला स्वास्थ्य पर भी कार्यक्रम होते हैं। पुराने लोकगीतों का बड़ा संग्रह है। जिसमें मौसम के हिसाब से कई गीत हैं। खेती-किसानी के गीत, बुआई और कटाई के गीत प्रसारित किए जाते हैं। इसके अलावा, जन्मदिन की शुभकामनाएं व मवेशी ( गाय,बैल आदि) गुम होने की सूचना भी दी जाती है। अगर मवेशी मिल जाते हैं तो उसकी भी सूचना दी जाती है।

गांवों में यह संगम रेडियो बहुत लोकप्रिय है और स्थानीय भाषा तेलगू में इसका प्रसारण होता है। इसे करीब 150 गांवों में सुना जाता है। जनरल नरसम्मा संगम रेडियो की प्रबंधक हैं। पूरावक्ती तीन कार्यकर्ता हैं जो कार्यरत हैं। स्वैच्छिक कार्यकर्ता हंर जो रिपोर्टिंग करते हैं।

जनरल नरसम्मा कहती हैं कि वे 10वीं कक्षा पास हैं और शुरू से ही संगम रेडियो से जुड़ी हैं। इससे उनकी जिंदगी बदल गई है। लोगों का बहुत प्यार मिलता है। कई लोग उनसे मिलने आते हैं। वे खुद किसान हैं और खेती भी करती हैं। उनका रेडियो महिलाओं की आवाज है और वह भी ऐसी महिलाओं की जो दबी हैं, वंचित हैं। उन्होंने बताया कि अब हाल ही में यू ट्यूब पर वीडियो पर भी अपलोड किए जाते हैं। इस नए माध्यम से लोगों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है।

गुजरात में हमने भुज के बन्नी इलाके में साथ-साथ दौरा किया था। कई पशुपालकों से मिले थे। वहां भी नरसम्मा जी ने उनके रेडियो के लिए कई लोगों के साक्षात्कार रिकार्ड किए थे। वे जहां भी जाती हैं, वहां से उनके रेडियो के लिए रिपोर्ट करती हैं। उनका यह प्रयास गांवों को, उनकी समस्याओं को, उनकी वैकल्पिक पहलों को दिखाने का रहता है।

उनके इलाके में करीब एक माह के लिए बैलगाड़ी पर अनोखी गांव खेती यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में वे गांव-गांव जाते हैं और पारंपरिक बीजों व उसकी खेती पर चर्चा करते हैं। बीजों की अदला-बदली भी करते हैं। इसमें हर गांव के कई लोग जुड़ते हैं और इस मुहिम में भागीदार बनते हैं।

कुल मिलाकर, संगम रेडियो के काम से दो-तीन बातें समझ आती हैं। यह महिलाओं की आवाज है। वे इसे चलाती हैं, वे ही इसकी मालिक हैं। उनके सशक्तिकरण का अच्छा उदाहरण है। अपसंस्कृति के दौर में गांव की, जमीन से जुड़ी गांव व कृषि संस्कृति का उदाहरण है, जो सैकड़ों सालों में विकसित हुई है। कृषि संस्कृति में इन दिनों ठहराव है, ऐसे उदाहरणों से उसमें गति आएगी।

यह अनुभव से सीखने का बहुत अच्छा उदाहरण भी है। रेडियो से जुड़ी महिलाएं ज्यादातर कम पढ़ी लिखी हैं लेकिन वे सब काम कुशलता से करती हैं। वे कहती हैं कि हम पढ़े-लिखे व विशेषज्ञ लोगों से मदद नहीं लेते, उनको तो हमारे मुद्दे ही पता नहीं है। हालांकि उनका किताबों से विरोध नहीं है, उनमें से कुछ महिलाएं किताबें पढ़कर भी सीखती रहती हैं। काम करते-करते बहुत कुछ सीखा जा सकता है, अनुभव सिखाता है।

वैकल्पिक व स्वतंत्र मीडिया का बहुत अच्छा उदाहरण है। जो मुद्दे मुख्यधारा के मीडिया में किन्हीं कारणों से नहीं आ पाते, वह संगम रेडियो में जगह पाते हैं। जिंदगी को बेहतर बनाने व सामाजिक बदलान में सूचनाओं का योगदान बहुत होता है, इससे साफ दिखता है। सूचनाओं का आदान-प्रदान ही नहीं बल्कि उनका निर्माण करना भी महिला किसान कर रही हैं। वे खुद किसान हैं और रेडियो के माध्यम से उसका प्रचार भी कर रही हैं, जो अनूठा उदाहरण है।

यानी यह वंचित महिलाओं की आवाज है। संस्कृति, भाषा, परंपरागत ज्ञान का संरक्षण व संवर्धन करता है। खाद्य संप्रभुता व बीज संप्रभुता को बढ़ावा देता है। मिट्टी-पानी का संरक्षण, जैव विविधता और पर्यावरण का संरक्षण को प्रमुखता देता है। वैकल्पिक व स्वतंत्र मीडिया है। यह अनूठा सामुदायिक रेडियो कई मायनों में उपयोगी, सार्थक व अनुकरणीय है।

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