भाजपा का शिक्षा विरोधी फैसला

देश के कई विद्यालयों में सुबह की प्रार्थना सभा में सुविचार प्रस्तुत करने की परंपरा है, विद्यालयों के श्यामपट (ब्लैकबोर्ड) पर भी सुविचार लिखे होते हैं;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-07-15 02:58 GMT

देश के कई विद्यालयों में सुबह की प्रार्थना सभा में सुविचार प्रस्तुत करने की परंपरा है, विद्यालयों के श्यामपट (ब्लैकबोर्ड) पर भी सुविचार लिखे होते हैं। जिनके जरिए बच्चों में नैतिक मूल्य विकसित करने की कोशिश रहती है। कई सुविचार शिक्षा के महत्व पर केन्द्रित होते हैं, जिनमें नागरिक और देश के भविष्य को संवारने की बात बताई जाती है। हमें नहीं पता कि भाजपा के कितने नेता ऐसी स्कूलों में पढ़े हैं या शिक्षा संबंधी सुविचारों पर उनकी क्या राय है। लेकिन इतना तय है कि भाजपा भारतीय परंपरा और संस्कृति की मुरीद है। इस परंपरा में धर्म की बातें तो हैं, लेकिन वे भी कहीं न कहीं शिक्षा से जुड़ी हुई हैं। कोई धर्म यह सीख नहीं देता कि बच्चों को शिक्षा से वंचित रखो। बेशक जाति आधारित समाज बनने के बाद निचली जातियों और स्त्रियों को वेद-पुराणों की शिक्षा न देने का नियम बताया गया, लेकिन यह भारतीय संस्कृति का केवल एक हिस्सा है। इससे कहीं बड़े हिस्से में ऋ षियों के गुरुकुल, शास्त्रार्थ, पठन-पाठन, नए अनुसंधान, शोध, वैचारिक क्रांति के प्रसंग भरे पड़े हैं।

भारत में ज्ञान की परंपरा सदियों से बनी रही और अंग्रेजों ने भी यह महसूस किया कि अगर भारत को पूरी तरह गुलाम बनाना है तो सबसे पहले उन जड़ों को काटना होगा, जिनके कारण भारत में ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से भरे-पूरे वृक्ष खड़े हैं। अंग्रेज इस मकसद में कामयाब हुए, तो उन्हें दो सदी तक इस देश पर शासन करने में आसानी हुई। हालांकि इस गुलामी से छुटकारे के लिए जो कोशिशें 1857 की क्रांति के बाद शुरु हुईं, उसमें उन लोगों ने ही खास तौर पर नेतृत्व किया, जिन्होंने आधुनिक शिक्षा से खुद को लैस किया। गांधी, अंबेडकर, नेहरू, नेताजी, मौलाना आजाद न जाने कितने नाम यहां गिनाए जा सकते हैं। पाठक भी भारत की इस ज्ञान परंपरा से परिचित हैं। लेकिन आज इसे दोहराने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि अब भाजपा की सोच और उसकी नीयत क्या है, इस पर संदेह उठ रहा है।

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर साल परीक्षा पर चर्चा का आयोजन कर विद्यार्थियों को परीक्षा के युद्ध में वीरता से मुकाबला करने के ज्ञान देते हैं। 21वीं सदी में भारत को आगे ले जाने में उनकी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में कितने क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं, इसके दावे होते हैं। सरकार नयी शिक्षा नीति ले आई है और मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय किया जा चुका है। हालांकि व्यक्तिगत तौर पर नरेन्द्र मोदी की शिक्षा को लेकर जो संदेह बना है, वह अब भी दूर नहीं हुआ है। किसी साक्षात्कार में श्री मोदी ने खुद कहा कि उन्होंने ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं की, और दूसरी तरफ एंटायर पॉलिटिकल साइंस में स्नातकोत्तर डिग्री भी वे दिखाते हैं, जिसमें उनके अलावा कोई दूसरा डिग्रीधारी आज तक नहीं मिला है। मुमकिन है कि अकेले श्री मोदी के लिए गुजरात विश्वविद्यालय ने ऐसा कोई पाठ्यक्रम तैयार किया हो। लेकिन जो काम तब हो सकता था, वह अब क्यों नहीं हो सकता, यह सोचने वाली बात है।

दरअसल उत्तरप्रदेश में योगी सरकार ने फैसला लिया है कि जिन सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 70 या उससे कम बच्चे हैं, उन्हें बंद कर दिया जाए। इस फैसले के बाद कम से कम 5 हजार स्कूलों के विलय का रास्ता खुल गया। इस तरह सरकार को शिक्षकों की नियुक्ति, शिक्षा मित्र, और मध्याह्न भोजन के लिए रसोइए समेत कई और नौकरियों के पद खत्म करने का मौका भी मिल गया। जिन स्कूलों का विलय होगा, उनकी जमीन भी अन्य कार्यों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। इसमें सरकार को कई तरह से फायदा होगा। लेकिन लाखों बच्चों का भविष्य अधर में लटक चुका है। ये बच्चे या तो अब निजी स्कूलों में दाखिला लेने पर मजबूर रहेंगे या फिर पढ़ाई छोड़ेंगे।

योगी सरकार के 16 जून 2025 के इस फैसले के खिलाफ सीतापुर और पीलीभीत के 51 छात्रों ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। लेकिन पिछले हफ्ते सात जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को राहत देते हुए पांच हजार स्कूलों के विलय के फैसले को हरी झंडी दिखा दी थी। योगी सरकार की अधिसूचना के मुताबिक राज्य के दूरदराज में स्थित जिन सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में 70 या इससे कम छात्र हों उनका आसपास के अन्य विद्यालयों में विलय कर दिया गया। हाईकोर्ट मे भी योगी सरकार के पक्ष में फैसला दिया तो अब सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई है। इस जनहित याचिका में कहा गया कि सरकार के इस कदम से राज्य में 3 लाख 50 हज़ार से ज़्यादा छात्रों को निजी स्कूलों में दाखिला लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। याचिका के मुताबिक सरकार अब विलीन होने वाले विद्यालयों के छात्रों को एकीकृत विद्यालय में दाखिला लेने का दबाव भी बना रही है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की तो सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई का भरोसा देते हुए कहा कि हालांकि यह सरकार का नीतिगत मामला है। अब शीर्ष अदालत से भी छात्रों को निराशा मिलती है या फिर उनके हक में फैसला आता है, यह देखना होगा।

लेकिन एक तरफ योगी सरकार को 70 बच्चे भी एक विद्यालय में कम लग रहे हैं, जबकि कांग्रेस शासित तेलंगाना में एक सरकारी स्कूल है जो सिर्फ एक छात्रा के लिए संचालित होता है। नौ साल की कीर्तना नरपनेनिपल्ले गांव के इस स्कूल में अकेली छात्रा है, और उमा नाम की शिक्षिका उसे पढ़ाने के लिए रोज़ाना स्कूल जाती हैं। इस स्कूल को चलाने में सालाना 12 लाख का खर्च आता है, लेकिन कीर्तना की कम से कम 7वीं तक की पढ़ाई हो और फिर आगे पढ़ने के लिए वह हॉस्टल जा सके, इस वजह से सरकार इस खर्च को वहन कर रही है। वैसे खर्च की तरह नहीं बल्कि भविष्य के निवेश की तरह देखने की जरूरत है। कांग्रेस के पास भाजपा से कम सत्ता है, फिर भी वह ऐसा निवेश कर रही है, तो भाजपा क्यों पढ़ाई पर होने वाले खर्च को बचा रही है, यह सोचना होगा। क्या भाजपा की सोच यही है कि नयी पीढ़ी के सामने शिक्षा के अवसर सीमित हों और वह सजग नागरिक न बने। या भाजपा शिक्षा को फिर से उच्च तबकों तक सीमित रखने वाली दकियानूसी, मनुवादी सोच पर चल रही है और गरीब ग्रामीणों से शिक्षा के बुनियादी हक को छीन रही है।

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