ट्रंप का एक और झटका
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री एक-दूसरे के गहरे मित्र होने का दावा करते हैं;
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री एक-दूसरे के गहरे मित्र होने का दावा करते हैं, हालांकि उनकी दोस्ती कई नेताओं को समझ नहीं पड़ती और भारत में भी इस पर सवाल उठते हैं। दोनों के बीच सम्मान और दोस्ती का रिश्ता कितना गहरा है, यह तो वे ही सही-सही बता सकते हैं, लेकिन एक बात तय है कि सरकार चलाने के तौर-तरीके, लच्छेदार बातें और राष्ट्रवाद को राजनीति का केंद्र बनाना, इन सब में दोनों में जबरदस्त सामंजस्य दिखता है। शनिवार को जब नरेन्द्र मोदी गुजरात में आत्मनिर्भरता का पाठ देश को पढ़ा रहे थे और कह रहे थे कि हमारी सबसे बड़ी कमजोरी दूसरे देशों पर निर्भरता है। उसी वक्त ट्रंप सरकार अमेरिका फर्स्ट के नारे को बुलंद करते हुए एच-1 बी वीज़ा पर 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख) की फीस लगाने का ऐलान किया है।
ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि यह अमेरिकी श्रमिकों की रक्षा करने, वीज़ा सिस्टम के ग़लत इस्तेमाल को रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि केवल सबसे कुशल और सबसे अधिक वेतन पाने वाले विदेशी पेशेवर ही योग्य हों। अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक ने कहा है, 'अगर आपको किसी को प्रशिक्षित करना है, तो आपको हमारे देश के बेहतरीन विश्वविद्यालयों से हाल ही में उत्तीर्ण हुए ग्रेजुएट को प्रशिक्षित करना चाहिए। अमेरिकियों को प्रशिक्षित करो। बाहर से लोगों को लाकर हमारी नौकरियां छीनना बंद करो।' व्हाइट हाउस ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई है और कहा है कि संवेदनशील उद्योगों में विदेशी श्रमिकों पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता अमेरिका की क्षमता को कमज़ोर करती है।
फिलहाल भारत का विदेश मंत्रालय इस फैसले की समीक्षा कर रहा है, हालांकि इससे ज्यादा कुछ करने की स्थिति में वह है भी नहीं। क्योंकि मोदी सरकार की विदेश नीति इतनी कमजोर हो चुकी है कि ट्रंप जब चाहे भारत का अपमान कर सकते हैं। वे जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी चुप ही रहेंगे। लेकिन नरेन्द्र मोदी खुद जितना आत्मनिर्भर होने, मेक इन इंडिया आदि की बातें करते हैं, और विदेश सामान खरीदने की आदत छोड़ने की बात कहते हैं, वे भी संभवत: इस फैसले से निजी हैसियत में सहमत ही होंगे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तो उनका कोई प्रतिवाद सामने नहीं आया है। अलबत्ता देश में इस पर हलचल मच गई है। खासकर आई टी इंडस्ट्री अब सोच में पड़ गई है कि कैसे इस चुनौती का सामना करे।
बता दें कि अमेरिका में एच 1 बी वीजा धारकों में भारतीयों की हिस्सेदारी 70 फीसदी से ज्यादा है, ऐसे में वीजा नियमों में बदलाव का सीधा असर भारत के टेक सेक्टर और प्रोफेशनल्स पर पड़ने वाला है। इसके अलावा विश्वविद्यालय में शोध करने पहुंचे भारतीय शोधकर्ताओं को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। अमेरिकी कंपनियां विदेशों से टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, फाइनेंस और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रतिभाशाली पेशेवरों को नौकरी पर रखती हैं। इनमें सबसे ज्यादा भारतीय नौकरी करते हैं। देश में इसी ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन पर बरसों से चिंता जताई गई, लेकिन ऐसा माहौल नहीं बना कि अच्छी नौकरी, बेहतर कार्य संस्कृति, अच्छा वेतन सब देश में ही उपलब्ध हो। लिहाजा लाखों भारतीय अमेरिका जाकर ही जीवन सुधारने के सपने देखते रहे। खुद नरेन्द्र मोदी ने 2014 में कहा था कि मेरा सपना है कि ऐसा भारत बने जिसमें अमेरिकियों को वीज़ा की लाइन में लगना पड़े। समय के साथ ये भी मोदीजी का एक और जुमला ही साबित हुआ। अब लाखों परिवार जब इस चिंता में हैं कि अमेरिका में रहें या नहीं, भविष्य में क्या और सख्ती बरती जाएगी, देश लौटेंगे तब नौकरी, पढ़ाई, की क्या सुविधा रहेगी, इन सब को नजरंदाज करते हुए मोदी चुप है।
इस वीज़ा नियम के 21 सितंबर को लागू होने से पहले ही कई उलझनें सामने आईं, जिन पर ट्रंप प्रशासन ने साफ किया है कि अमेरिकी कंपनियों को किसी विदेशी कर्मचारी के लिए हर नए एच-1बी आवेदन पर एक लाख डॉलर का शुल्क अदा करना होगा। जो भारतीय पहले से एच-1 बी वीजा पर काम कर रहे हैं, उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन नौकरी के नए अवसर तलाश रहे लोगों के लिए यह नई और एक बड़ी बाधा है। व्हाइट हाउस के मुताबिक यह फीस मौजूदा वीजा धारकों पर लागू नहीं होगी। नवीनीकरण पर भी यह शुल्क लागू नहीं है, बल्कि सिर्फ नए आवेदनों और आगामी लॉटरी साइकिल पर लागू होगा। हालांकि इस स्पष्टीकरण के बाद भी अफरातफरी मची।
सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ वीजाधारकों ने डर के चलते अमेरिका जाने वाली फ्लाइट छोड़ दी। वहीं दिल्ली से न्यूयॉर्क की सीधी उड़ानों के टिकट की कीमत महज दो घंटे में 37,000 से बढ़कर 70,000-80,000 तक पहुंच गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ कई बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों ने विदेश में मौजूद अपने एच-1बी स्टाफ़ को सलाह दी है, 'जल्दी लौट आएं या तब तक अंतरराष्ट्रीय यात्रा से बचें जब तक नए नियम साफ़ न हो जाएं.'
अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल के पॉलिसी डायरेक्टर जॉर्ज लोवरी ने बीबीसी से कहा, 'यह पॉलिसी बिना किसी सूचना, बिना किसी दिशा-निर्देश और बिना योजना के लाई गई है। ' हम देख रहे हैं कि भ्रम सिफ़र् वीज़ा धारकों और उनके परिवारों में ही नहीं है, बल्कि एंप्लॉयर और यूनिवर्सिटीज़ भी समझ नहीं पा रहे कि उन्हें कैसे इसका पालन करना है। सरकार पर यह ज़िम्मेदारी है कि वह नियमों को साफ़ करे, ख़ासकर तब जब लोगों की ज़िंदगियां और करियर दांव पर हों।
ये तमाम बातें बताती हैं कि इस फैसले से अफरा-तफरी आगे बढ़ सकती है, लेकिन मोदी सरकार का रवैया इस आपदा को भी अवसर बताने का दिख रहा है। कई चैनलों ने इसी पर कार्यक्रम कर लिए कि अब हमारी प्रतिभा वापस आएगी, इसका लाभ हमें मिलेगा और अमेरिका का नुकसान होगा। अब तक यही मीडिया अमेरिका में मोदी-मोदी करने वाले प्रवासी भारतीयों की भक्ति पर काय़र्क्रम करता था, तब सवाल नहीं होते थे कि मोदी के राज में देश में इतना विकास हुआ है, तो ये सब लोग विदेश में क्यों बने हुए हैं। अब देखना होगा कि प्रवासी भारतीयों का भक्त समुदाय क्या करता है और घर वापसी करने वाले कामगारों के लिए सरकार क्या प्रबंध करती है।