धीमी मौत मिल रही है, कोई जिम्मेदार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति देकर हिंदू धर्म की लाज रख ली, अब वही लोग हांफ रहे हैं, सांस लेने में तकलीफ महसूस कर रहे हैं, नज़ला-जुकाम का शिकार हो रहे हैं।;
पिछले महीने तक जो लोग इस बात की खुशियां मना रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति देकर हिंदू धर्म की लाज रख ली, अब वही लोग हांफ रहे हैं, सांस लेने में तकलीफ महसूस कर रहे हैं, नज़ला-जुकाम का शिकार हो रहे हैं। और वही लोग क्यों इस समय राजधानी दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील हो चुकी है, लिहाजा सारे लोग ही इन तमाम बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। बल्कि जानकारों का कहना है कि वायु प्रदूषण केवल सांस संबंधी तकलीफें नहीं देता, इंसान के फेफड़ों, हृदय, गुर्दे सबको क्षतिग्रस्त कर रहा है। मधुमेह, रक्तचाप जैसी बीमारियां जो पहले वंशानुगत या अनियमित जीवनशैली के कारण हुआ करती थीं, अब उसमें भी वायुप्रदूषण ने ही जिम्मेदारी ले ली है। अगर कहा जाए कि वायु प्रदूषण सभी को धीमी मौत दे रहा है, तो गलत नहीं होगा। वैसे भी कई अध्ययनों में कहा गया है कि दिल्ली में रहने वाले लोगों की उम्र 10 साल कम हो रही है, क्योंकि उन पर खराब हवा का असर हो रहा है। हालांकि दिल्ली ही क्या देश के दूसरे राज्यों में भी ऐसे ही अध्ययन हों तो नतीजों में ज्यादा अंतर नहीं आएगा। दिल्ली का वायुप्रदूषण इसलिए चर्चा में आ जाता है क्योंकि देश की राजधानी है तो खबरों में बनी ही रहती है। ऊपर से धुंध और धुएं की जो मोटी चादर यहां के आसमान को ढंक लेती है, वह फौरन दिख जाती है। दूसरे शहरों में जहरीली धुंध नहीं होती, लेकिन वायु में दूसरे हानिकारक तत्व मिले ही होते हैं।
बहरहाल, दिल्ली का वायु प्रदूषण इस साल राजनैतिक कारणों से भी चर्चा में है। पिछले साल तक यहां आम आदमी पार्टी की सरकार थी, लिहाजा भाजपा के लिए इसके खिलाफ आवाज़ उठाना आसान था, यह राजनैतिक मजबूरी भी थी। दिल्ली के साथ लगे हाथ पंजाब सरकार को भी भाजपा निशाने पर लेती थी, क्योंकि वहां भी आप की सरकार है और पराली जलाने को प्रदूषण का बड़ा कारक माना जाता है। लेकिन अब दिल्ली में रेखा गुप्ता मुख्यमंत्री हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी की तरह काम करने से अधिक फोटो खिंचवाने या चुनाव प्रचार में व्यस्त रहती हैं। कुछ समय पहले रेखा गुप्ता की हाथ में झाड़ू वाली तस्वीर आई थी, जिसे अलग-अलग एंगल से कैमरामेन कवर कर रहे थे। रेखा गुप्ता ने यमुना साफ करने का वादा भी चुनावों में किया था और उसके बाद छठ पूजा के समय बताया कि यमुना नदी साफ हो चुकी है। लेकिन असल में गंदगी वाले झाग को दबाने के लिए उस पर रसायन का छिड़काव हुआ था। इसलिए प्रधानमंत्री की छठपूजा के लिए साफ पानी का अलग तालाब उन्होंने बनवाया, जिसका पर्दाफाश आम आदमी पार्टी ने किया तो फिर प्रधानमंत्री छठ पूजा के लिए ही नहीं आए। इसका भरपूर रोना उन्होंने बिहार चुनावों में रोया। रेखा गुप्ता भी बिहार में कई बार चुनाव प्रचार के लिए पहुंची। इस बीच दिल्ली हांफती रही।
अब रेखा गुप्ता ने प्रशासनिक सख्ती का ऐलान किया है कि प्रदूषण को रोकने में कोई ढिलाई न बरती जाए। लेकिन यह आग लगने पर कुआं खोदने वाली बात है। दिल्ली में पहली बार वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार नहीं पहुंचा। पहली बार खतरनाक स्तर पर प्रदूषण की खबरें नहीं आई हैं। यह सालों साल से पेश आ रही समस्या है। अमीरों के लिए इसका समाधान एयर प्यूरीफायर के तौर पर मौजूद है। जैसे अमीरों ने पहले नदी-तालाबों को गंदा करके या उनका दोहन करके गरीबों के लिए मटमैला पानी और अपने लिए वॉटर प्यूरीफायर की व्यवस्था कर ली, वही रवैया अब हवा के साथ अपनाया जा रहा है। भले ही स्वच्छ हवा और पानी या सांस लेने का अधिकार मानवाधिकारों के दायरे में आए। लेकिन मौजूदा भारत में अमीरों ने तय कर लिया है कि साफ पानी और हवा पर केवल उनका अधिकार है, गरीबों के लिए यह सब उपलब्ध है या नहीं, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। सरकार भी अमीरों के हिसाब से ही नीतियां बनाती हैं। भले ही मतदान के दिन गरीब लाइन में लगकर वोट डाले कि उसके लिए भी अच्छे दिन आएंगे। मगर उसे क्या पता कि अच्छे दिनों का वादा भी केवल अमीरों के लिए ही है।
डॉक्टरों की सलाह मानकर मास्क पहनना, घर पर ही रहना, ऑनलाइन क्लास या वर्क फ्रम होम की सुविधा लेना, यह भी समाज का उच्चस्तरीय तबका ही निभा सकता है। गरीबों के लिए तो घर से बाहर रहने की मजबूरी हमेशा रहेगी। वे अपने खोमचे का सामान ऑनलाइन नहीं बेच सकते। न अपने बच्चों को कम्प्यूटर, मोबाइल दे सकते हैं कि वे घर से शिक्षा हासिल करें। मजदूरी के लिए, दूसरों के घरों में काम करने के लिए, सड़क किनारे सब्जी-फल, खाने-पीने की दुकान लगाने के लिए उन्हें पूरे दिन घर से बाहर रहना ही पड़ेगा। इसमें वे 400 एक्यूआई में सांस ले रहे हैं या 200 एक्यूआई में, कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि उन गरीबों को इसके अलावा गाड़ियों का धुआं, सड़क की धूल-मिट्टी सब फांकनी पड़ती है। इसमें उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो भी रही होगी तो उसका पता लगाने या इलाज करवाने के लिए वे अस्पतालों में नहीं जा सकते। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में जरूरत से ज्यादा भीड़ होती है और निजी अस्पतालों में इलाज महंगा होता है।
ऐसे में जब एम्स जैसे अस्पताल से एडवायजरी जारी होती है कि लोग घर पर रहे, कसरत के लिए बाहर न निकलें और संभव हो तो एयर प्यूरीफायर लगाएं तो लगता है कि कोई जले पर नमक छिड़क रहा है। क्या सरकार की तरह एम्स के डॉक्टर भी अब यह मान रहे हैं कि दिल्ली में केवल अमीरों को रहना चाहिए। और मान लें कि अमीर ये सारे उपाय कर लेते हैं, क्या तब भी वायु प्रदूषण से बचने की कोई गारंटी है। क्योंकि अब तक ऐसा कोई एयर प्यूरीफायर तो शायद बना नहीं है, जो कांगड़ी की तरह छाती पर लटकाया जा सके।
कुछ वक्त में जब धुंध छंट जाएगी, तब वायु प्रदूषण पर हाय-हाय भी रुक जाएगी। लेकिन फिर कुछ वक्त में गर्मी आएगी और तब लू के थपेड़ों में गरीबों की जान जाएगी। उसमें जो बच जाएंगे, वो बरसात की अव्यवस्था का शिकार होंगे। सड़कों पर लंबा जाम तो बारिश में लगता ही है, उसके अलावा बाढ़, भूस्खलन, कच्चे मकानों का गिरना, करंट लगना ये सारी घटनाएं बढ़ जाती हैं। इनमें भी गरीब ही सबसे अधिक मरते हैं।
इन खबरों को छिपाने का सबसे आसान उपाय है देश के सामने अपनी सुंदर छवियों को प्रस्तुत किया जाए, प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता यही कर रहे हैं। बाकी सब चंगा सी।