कांग्रेस का बोझ हल्का हुआ
मुक्केबाज विजेंद्र सिंह, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर गौरव वल्लभ और पूर्व पत्रकार एवं राजनेता संजय निरूपम, ये तीन नाम बुधवार से लेकर गुरुवार तक चर्चा में छाए रहे;
मुक्केबाज विजेंद्र सिंह, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर गौरव वल्लभ और पूर्व पत्रकार एवं राजनेता संजय निरूपम, ये तीन नाम बुधवार से लेकर गुरुवार तक चर्चा में छाए रहे। इस चर्चा के पीछे कारण एक ही है कि तीनों ने कांग्रेस छोड़ दी है। चुनाव के वक्त दल-बदल अब आम बात हो गई है। इसलिए इन तीन लोगों का एक पार्टी को छोड़ना बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह है कि इन लोगों ने कांग्रेस को छोड़ते वक्त जो तर्क दिए, वो बेहद कमजोर हैं।
विजेंद्र सिंह भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ मूंछों पर ताव देकर कदमताल करते दिखे थे। वे लगातार राहुल गांधी को समर्थन वाले ट्वीट किया करते थे और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की तीखी आलोचना किया करते थे। 2019 में विजेंद्र सिंह ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी और उन्हें दक्षिण दिल्ली से उम्मीदवार बनाया गया था, जहां वे चुनाव हार गए थे। फिर भी कांग्रेस में उन्हें सम्मान के साथ जगह मिली रही। मंगलवार तक भाजपा की खिल्ली उड़ाने वाले ट्वीट विजेंद्र कर रहे थे और कुछ घंटों बाद बुधवार को उन्होंने भाजपा का भगवा गमछा अपने गले में डलवा लिया। इसके बाद एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि मैं सो गया और जब सुबह उठा तो मेरे को लगा कि ग़लत प्लेटफॉर्म पर हूं।
भारतीय जनता पार्टी में आइए और यहां से सही दिशा में जाएंगे। उनके इस बयान का अब खूब मजाक भी उड़ रहा है कि सोकर उठने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वे गलत पार्टी में हैं। लेकिन यहां मजाक से परे एक गंभीर सवाल यह है कि चार साल तक जिन्हें भाजपा सरकार की गलतियां नजर आती रहीं, एक रात में ऐसा क्या हुआ कि विजेंद्र सिंह ने पाला बदल लिया। विजेंद्र सिंह अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे हैं और जब महिला पहलवानों ने भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आवाज उठाई तो उनके लिए इंसाफ की मांग विजेंद्र सिंह ने भी की। लेकिन अब भाजपा में जाने के बाद विजेंद्र सिंह का मानना है कि भारत के खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान-सम्मान मोदी सरकार में आने के बाद मिला है। विजेंद्र सिंह सोकर उठते ही भाजपा में नहीं गए, बल्कि उनके विचार भी रातों-रात बदल गए।
वैचारिक बदलाव का ऐसा ही उदाहरण गुरुवार को भी सामने आया, जब अर्थशास्त्र के प्रोफेसर गौरव वल्लभ ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए पार्टी की सदस्यता छोड़ी और कुछ घंटों में भाजपा के मुख्यालय जाकर भगवा गमछा गले में धारण कर लिया। विजेंद्र सिंह की तरह ही संसद में जाने की नाकाम कोशिश गौरव वल्लभ कर चुके हैं। एक नहीं दो बार दो राज्यों से कांग्रेस ने उन्हें मौके दिए, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
गौरव वल्लभ की कांग्रेस में रहते हुए एक बड़ी उपलब्धि यही रही कि एक ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं, इस सवाल पर उन्होंने भाजपा को बुरी तरह घेरा था। इस सवाल के कारण गौरव वल्लभ खूब सुर्खियों में आए और इसके बाद चैनलों की कई बहसों में उन्होंने कांग्रेस प्रवक्ता के तौर पर मजबूती से पक्ष रखा। कुछ वक्त पहले कांग्रेस छोड़ने वालों की पोल खोलते हुए उन्होंने कहा था कि जिन्हें लुटियन्स दिल्ली में बंगला और राज्यसभा की सदस्यता चाहिए वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाते हैं।
उन्होंने तब भी राहुल गांधी के लिए कहा था कि श्री मोदी को राहुल गांधी ही चुनौती दे सकते हैं, उनसे सीधे सवाल कर सकते हैं। अब गौरव वल्लभ का कहना है कि उन्हें सनातन के विरोध में नारे लगाने वालों से आपत्ति है और साथ ही जिस तरह वेल्थ क्रिएटर्स यानी देश को समृद्ध करने वालों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, वो भी उन्हें सही नहीं लगता।
गौरव वल्लभ के दिए इन कारणों को सुनकर साफ समझ आता है कि उन्हें जातिवार जनगणना और आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस की सोच से तकलीफ हो रही है। सवर्णों के दबदबे वाली मानसिकता अक्सर ऐसी तकलीफ की शिकायत करती है, क्योंकि उसके मुताबिक देश की पूंजी और अवसरों पर अधिकार जताने की आजादी निचले तबकों को नहीं है।
कांग्रेस में पूर्व सांसद संजय निरूपम को भी तकलीफ हो रही थी और वे लगातार पार्टी के विरोध में बयान दे रहे थे। उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष ने छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया है। मगर गुरुवार को उन्होंने जिस तल्खी के साथ अपनी बातें रखीं, उनसे समझ आता है कि वे भी जल्द ही एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं। संजय निरूपम पहले शिवसेना में थे, बाद में कांग्रेस में गए और इस बीच पत्रकारिता करने के साथ-साथ वे बिग बॉस जैसे रियलटी शो का हिस्सा भी बने। 2014 और 2019 में कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा और दोनों बार हार गए, लेकिन तीसरी बार वे उत्तर-पश्चिम मुंबई से अपने लिए टिकट चाहते थे, जबकि यहां महाविकास अगाड़ी में शामिल शिवसेना के नेता अमोल कीर्तिकर को टिकट मिली है। अगर संजय निरूपम को टिकट मिल जाती तो शायद उन्हें कांग्रेस के राम मंदिर पर लिए गए स्टैंड या उसकी संरचना और कार्यप्रणाली से तकलीफ नहीं होती। लेकिन अब संजय निरूपम बता रहे हैं कि कांग्रेस में एक नहीं पांच शक्ति केंद्र हैं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और के सी वेणुगोपाल और इन सभी का नाम लेते हुए बेहद अभद्र टिप्पणियां संजय निरूपम ने की हैं।
दो दिन में तीन लोगों के कांग्रेस छोड़ने को भाजपा समर्थित पत्रकार कांग्रेस में भगदड़ की तरह पेश कर रहे हैं और बता रहे हैं कि कांग्रेस कितनी कमजोर हो चुकी है। कांग्रेस के अंत की अनंत भविष्यवाणियां की जा चुकी हैं और शायद आगे भी होती रहेंगी। लेकिन हकीकत ये है कि जिन तीन लोगों ने अभी कांग्रेस छोड़ी है, वे खुद हारे हुए नेता रहे हैं, किसी का मजबूत जनाधार नहीं रहा है। एक तरह से वे कांग्रेस पर बोझ ही थे। लेकिन अब कांग्रेस नेतृत्व को निरीक्षण-परीक्षण कर लेना चाहिए कि ऐसे और कितने बोझ कांग्रेस को दबाए हुए हैं और उनसे जल्द से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए।