अगले विधानसभा चुनाव तय कर सकते हैं भाजपा का भविष्य

आगामी अप्रैल-मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय रह गये हैं जिसके ठीक पहले कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की शानदार जीत ने पार्टी और उसके नेताओं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी का हौसला बुलंद कर दिया है;

Update: 2023-05-18 04:45 GMT

- नित्या चक्रवर्ती

विपक्ष की आने वाली बैठक में उन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए जिन पर पार्टियां संसद और संसद के बाहर प्रचार करेंगी। कर्नाटक चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बेरोजगारी और गरीबी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के मुद्दों ने भी मतदाताओं का ध्यान खींचा है। संयुक्त विपक्ष द्वारा उन मुद्दों के आधार पर एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया जाना है जो आने वाले दिनों में न्यूनतम सामान्य कार्यक्रम के मूल में हो सकते हैं।

आगामी अप्रैल-मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय रह गये हैं जिसके ठीक पहले कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की शानदार जीत ने पार्टी और उसके नेताओं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी का हौसला बुलंद कर दिया है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए, ऐसी जीत की सख्त आवश्यकता थी ताकि वह अपनी साख फिर से स्थापित कर दिखाये कि वह अपने दम पर बड़े राज्यों में से एक में भाजपा को हरा सकती है।

2019 के संसदीय चुनावों के बाद से, कांग्रेस हिमाचल को छोड़कर सभी विधानसभा चुनाव हार गयी थी। इस तरह कर्नाटक में उसे मिली बड़ी जीत को महज उनके मनोबल बढ़ाने से कहीं अधिक माना जा सकता है। आने वाले समय में लोक सभा चुनावों के पहले पांच राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी दंगल होगा जिसकी प्रकृति भी उनका भविष्य निर्धारित करने जैसी होगी, लेकिन उसमें क्या होगा?

कांग्रेस को कर्नाटक में बुरी तरह परास्त घायल राजनीतिक शेर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, जिनमें संकट को अवसर में बदलने की अदम्य क्षमता है। प्रधानमंत्री और उनकी टीम भाजपा की हार से सभी सही सबक लेगी और जीतने की रणनीति को फिर से तैयार करेगी - आगामी विधानसभा चुनाव और अंत में 2024 में लोकसभा चुनाव दोनों के मामले में। नरेंद्र मोदी एक बड़े सशक्त राजनीतिक लड़ाकू हैं और उनके पास आरएसएस की संगठनात्मक शक्ति भी है और उसे गति देने के लिए विशाल वित्तीय संसाधन भी। फिर मई 2024 के चुनावों के बाद विपक्ष को दिल्ली की गद्दी से दूर रखने के लिए मोदी और भाजपा के राजनीतिक युद्ध को अंजाम देने वाला वार रूम किसी भी हद तक जायेगा, इसमें संदेह नहीं। कांग्रेस के लिए जश्न मनाने के लिए बहुत कम समय बचा है। साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में राज्य विधानसभा चुनाव होंगे। फिर 2024 में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होने हैं जो संभवत: लोक सभा चुनावों के साथ होंगे।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के सामने मुख्य पार्टी कांग्रेस है। 2018 के विधानसभा चुनावों में तीनों राज्यों को शुरुआत में कांग्रेस ने जीता था। कमलनाथ के मुख्यमंत्रित्व में राज्य सरकार के गठन के महीनों बाद दलबदल के बाद अब मध्य प्रदेश में भाजपा का शासन है। लेकिन तीनों राज्यों में कांग्रेस की ताकत हाल के ग्रामीण चुनावों में सफलता के माध्यम से स्थापित हुई है। तीनों राज्यों में जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी को अपने सभी संगठनात्मक संसाधनों को जुटाना होगा। उनमें जीत भाजपा के खिलाफ विपक्षी खेमे में सबसे आगे के नेता के रूप में कांग्रेस की जगह सुनिश्चित करेगी, वह भी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने पर पटना या दिल्ली में शीघ्र ही विपक्षी दलों की बैठक होने की संभावना है, ताकि एकता के आकार पर चर्चा की जा सके और भाजपा विरोधी वोटों में किसी भी विभाजन को रोकने के लिए पार्टियों की अधिकतम समझ स्थापित की जा सके। यह शुरू से ही स्पष्ट होना चाहिए कि इस तरह की समझ के लिए कोई समान सूत्र नहीं हो सकता है। प्रत्येक राज्य की अपनी मजबूरियां होती हैं और कोई भी राजनीतिक दल एकता के हित में अपने शक्ति आधार की उपेक्षा नहीं करना चाहेगा जो परिणाम दे या न दे। इसलिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रत्येक राज्य में सबसे मजबूत भाजपा विरोधी दल को गठबंधन की प्रकृति तय करने में मुख्य भूमिका दी जाये। अभी चार राज्यों बिहार, झारखंड, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सक्रिय विपक्षी गठबंधन है। पहले तीन में उसकी सत्तारूढ़ सरकारें हैं। यह गठबंधन संबंधित राज्यों में भाजपा को टक्कर देने के लिए पर्याप्त है। जरूरत पड़ने पर अन्य भाजपा विरोधी दलों को शामिल कर इसका विस्तार किया जा सकता है।

इसी तरह केरल, बंगाल और पंजाब में विपक्ष का कोई समग्र गठबंधन नहीं हो सकता। पंजाब में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं है और वहां आप और कांग्रेस लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे को टक्कर देंगे। आप निश्चित रूप से पंजाब में कुल 13 सीटों में से अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की कोशिश करेगी ताकि लोकसभा के बाद की स्थिति में अपनी सौदेबाजी की ताकत बढ़ाये।

जहां तक दिल्ली का संबंध है, भाजपा से विपक्ष को खतरा है और इसलिए आप और कांग्रेस के बीच एक समझ हो सकती है, अगर सभी सात सीटों पर भाजपा की हार सुनिश्चित करनी हो तो। बंगाल के संबंध में, परिदृश्य स्पष्ट है, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस भाजपा से लड़ने वाली मुख्य पार्टी है और उसके सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की उम्मीद है। कांग्रेस और वामपंथी टीएमसी और भाजपा दोनों के खिलाफ लड़ सकते हैं लेकिन ज्यादातर सीटों पर लड़ाई सिर्फ टीएमसी और भाजपा तक ही सीमित रहेगी।

केरल में, वर्तमान पैटर्न कायम रहेगा। वाम मोर्चा और कांग्रेस नीत यूडीएफ लड़ेंगे। वामपंथी कुछ और सीटें हासिल करने के लिए सभी प्रयास करेंगे क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में एलडीएफ को कांग्रेस की 15 और यूडीएफ की 19 सीटों के मुकाबले केवल एक सीट मिली थी। यह दोनों मोर्चों के वास्तविक शक्ति आधार को नहीं दर्शाता था। इसलिए एलडीएफ निश्चित रूप से 2024 में उस विकृति को दूर करने का प्रयास करेगा। फिर आंध्र प्रदेश और ओडिशा अलग श्रेणी के हैं। आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी अकेले चुनाव लड़ेगी, भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ। ओडिशा में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजद, उभरती भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ लड़ेगी। ओडिशा के मुख्यमंत्री भाजपा के और विस्तार से अपने क्षेत्र को बचाने के लिए सभी प्रयास करेंगे।

तेलंगाना एक और राज्य है जो इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव का सामना करेगा, जिसमें सत्तारूढ़ बीआरएस, भाजपा और कांग्रेस से अलग-अलग जूझेगी। विधानसभा के नतीजे बतायेंगे कि भाजपा की चुनौती से निपटने के लिए बीआरएस और कांग्रेस के बीच किसी समझौते की संभावना है या नहीं। उत्तर पूर्व राज्यों में त्रिपुरा में, भाजपा अपनी दो लोकसभा सीटों को खो सकती है यदि वाम-कांग्रेस गठबंधन ने टिपरामोथा के साथ समझौता किया, जो कि आदिवासियों की पार्टी है। भाजपा अपनी दो लोकसभा सीटें सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन में टीएम को लुभाने का प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। त्रिपुरा में भगवा को किनारे करने के लिए कांग्रेस अभी भी टीएम के साथ समझौता करने की कोशिश कर सकती है।

असम में, कांग्रेस अभी भी विपक्षी दलों के बीच प्रेरक शक्ति है, लेकिन भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष को सुविधाजनक बनाने के लिए बहुत सी समस्याओं को सुलझाना है। मुख्यमंत्री हिमंतविश्वा शर्मा एक चतुर भाजपा नेता हैं और उत्तर पूर्व में क्षेत्रीय दलों के बीच भाजपा के प्रभुत्व को सुनिश्चित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। समग्रता में, भाजपा को अपने गढ़ों में हराने में सफलता कांग्रेस और क्षेत्रीय गठबंधनों की क्षमता पर निर्भर करेगी।

2019 के लोकसभा चुनावों में हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा को भारी संख्या में सीटें मिलीं थीं, लेकिन अभी जो स्थिति है, उत्तर प्रदेश को छोड़कर, भाजपा को बड़ी संख्या में सीटों का नुकसान होना तय है। उदाहरण के लिए, एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 65 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 2019 के चुनावों में, कांग्रेस को तीन के मुकाबले भाजपा को 61 सीटें मिलीं थीं। इन तीन राज्यों से कांग्रेस की सीटों की संख्या न्यूनतम 30 को पार करना निश्चित लगता है। इसी तरह कर्नाटक में कुल 28 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 25 सीटें मिली थीं। भाजपा का यह आंकड़ा 2024 के चुनाव में दस से कम होना तय है, और अगर लोकसभा चुनाव से पहले जद (एस) के साथ समझौता हो जाता है, तो भाजपा को कुल 28 लोकसभा सीटों में से 5 से कम सीटें मिलेंगी।

अभी तक कांग्रेस के पास मौजूदा लोकसभा में 52 सीटें हैं। इसमें कांग्रेस रणनीतिकार सुनील कानून गोलू के तहत उचित योजना के साथ 70 से 80 तक का इजाफा हो सकता है। इससे 2024 के चुनावों के बाद कांग्रेस का आंकड़ा 122 से 132 के बीच हो जायेगा, जो लोकसभा की कुल 543 सीटों में से भाजपा को 170 सीटों से नीचे लाने के लिए पर्याप्त है। 2024 लोकसभा में पर्याप्त सीटों के साथ वाईएसआरसीपी और बीजेडी विपक्षी गठबंधन के साथ सहयोग करने में रुचि लेंगे। 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को केवल 114 सीटें मिलीं थीं और 2009 के चुनावों में यह संख्या बढ़कर 146 हो गयी थी। विपक्ष की आने वाली बैठक में उन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए जिन पर पार्टियां संसद और संसद के बाहर प्रचार करेंगी।

कर्नाटक चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बेरोजगारी और गरीबी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के मुद्दों ने भी मतदाताओं का ध्यान खींचा है। संयुक्त विपक्ष द्वारा उन मुद्दों के आधार पर एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया जाना है जो आने वाले दिनों में न्यूनतम सामान्य कार्यक्रम के मूल में हो सकते हैं। गैर-भाजपा विपक्ष के लिए अब राजनीतिक स्थिति उर्वर है। लोकसभा चुनाव से पहले अगला एक साल कांग्रेस के साथ-साथ अन्य भाजपाविरोधी विपक्षी दलों के लिए भी महत्वपूर्ण है। कर्नाटक की लड़ाई जीत ली गई है लेकिन विपक्ष को 2024 में भाजपा के खिलाफ अंतिम युद्ध जीतना बाकी है।

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