पुतिन की भारत यात्रा के संदेश से बौखलाए हैं पश्चिमी देश
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थी;
- डॉ.अजय पटनायक
पुतिन की हालिया यात्रा एक दीर्घकालिक, टिकाऊ और व्यापक साझेदारी हासिल करने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए थी। भारत-रूस के बीच प्रगाढ़ मैत्री का संदेश देने के बाद असली चुनौती यह होगी कि यूक्रेन में आसन्न आपदा से और अधिक निराश हो रहे एवं शत्रुतापूर्ण रुख अपनाने वाले पश्चिम का सामना कैसे किया जाए। भारत पर अधिक कूटनीतिक तथा आर्थिक दबाव हो सकता है। अपनी जमीन पर खड़ा होना एक चुनौती होगी।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थी। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही शेष विश्व से अलग-थलग करने के लिए पश्चिमी देश प्रतिबंधों और अभियानों के माध्यम से मास्को पर दबाव डाल रहे हैं। भारत पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस की निंदा करने उस देश से तेल खरीद को कम करने और फिर रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त अमेरिकी टैरिफ का सामना करने का भी दबाव रहा है। ऐसे समय में जब रूस युद्ध में बढ़त हासिल कर रहा है और अधिक क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बढ़ा रहा है, पश्चिम के पास रूस को अंतरराष्ट्रीय तौर पर दूर करने के आवाश्सन के अलावा यूक्रेन को देने के लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं बचा है। इसने ट्रम्प के शांति प्रयासों को तोड़ दिया है। इस प्रकार रूस के लिए सिर्फ युद्ध में बढ़त हासिल करना पर्याप्त नहीं है बल्कि यह प्रदर्शित करना है कि पश्चिम से परे एक ऐसी दुनिया है जो मायने रखती है।
ब्रिक्स, एससीओ और ग्लोबल साउथ के देश अब तक पश्चिमी रुख से विचलित नहीं हुए हैं और उन्होंने रूस के साथ मंच साझा किए हैं। पुतिन की 4-5 दिसंबर 2025 की नई दिल्ली यात्रा इस दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण थी। पश्चिम के दबाव और दंडात्मक टैरिफ के बावजूद यूक्रेन-रूस संघर्ष में किसी का पक्ष न लेते हुए रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन करना भारत के लिए अनिवार्य रहा है। अब तक एक रणनीतिक संतुलन कार्य हुआ है: रूस की निंदा न करना और शांति के बारे में बात करना। इसलिए भारत के लिए यह यात्रा केवल तेल, परमाणु ऊर्जा, श्रमिकों के प्रवास या हथियारों और लड़ाकू विमानों के बारे में नहीं थी। ये मुद्दे भी महत्वपूर्ण थे और बातचीत को आगे बढ़ाया गया। इसी तरह द्विपक्षीय व्यापार में भारत के सामने आने वाले भारी व्यापार घाटे के मुद्दे पर भी विचार होना था। व्यापार असमानता को दूर करने हेतु भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिए रूसी बाजारों को खोलने तथा 2030 तक भारत-रूस आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों के विकास के लिए कार्यक्रम को अपनाने का उद्देश्य भी सामने है।
पुतिन ने इस वर्ष ही चीन (एससीओ शिखर सम्मेलन), ताजिकिस्तान (सीआईएस शिखर सम्मेलन), किर्गिस्तान (सीएसटीओ शिखर सम्मेलन) का दौरा किया। इन सभी शिखर सम्मेलनों में कई महत्वपूर्ण गैर-पश्चिमी नेताओं ने भाग लिया। लेकिन यह अलग मामला है। पश्चिम ने इस बात पर ध्यान दिया है कि पुतिन बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए भारत में नहीं थे। वे यहां रूस और भारत के नेताओं के 23वें द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए थे। नई दिल्ली और मॉस्को की निरंतर निकटता को लेकर पश्चिमी दुनिया की बेचैनी का पता उसकी प्रतिक्रिया से चलता है।
पुतिन की भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों ने संयुक्त रूप से एक ऑप-एड प्रकाशित किया गया था। लेख के लहजे व समय से पता चलता था कि इन देशों ने स्पष्ट रूप से यात्रा का स्वागत नहीं किया और यूक्रेन संकट को बढ़ाने के लिए रूस को दोषी ठहराया। विदेश मंत्रालय ने इस कदम को 'बहुत ही असामान्य' और 'राजनयिक मानदंडों का अस्वीकार्य उल्लंघन' करार देते हुए भारत को किसी तीसरे देश के साथ अपने संबंधों के बारे में सार्वजनिक रूप से सलाह न देने की बात कही है। रूसी राजदूत की ओर से एक विरोध पत्र जारी किया गया जिसमें कहा कि यूक्रेन समस्या 2014 में शुरू हुई जब यूक्रेनी राष्ट्रपति को 'पश्चिमी समर्थन' से अपदस्थ किया गया। पुतिन के दौरे के समय इस तरह के नकारात्मक पहलू थे लेकिन रूसी नेता के लिए रेड कारर्पेट बिछाया गया, भारतीय नर्तकियों ने पारंपरिक तरीके से उनका स्वागत किया, दोनों नेताओं ने एक दूसरे को गले लगाया। इसके साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री की कार में एक साथ यात्रा करने का ऑप्टिक्स था। इसके बाद की घटनाएं संबंधों में सौहार्द्र और दोस्ती को प्रदर्शित करने के लिए थीं।
इस यात्रा ने उम्मीदों को भी बढ़ाया। एसयू 57 लड़ाकू विमान या एस- 400/500 वायु रक्षा प्रणाली जैसी कुछ बड़ी घोषणाओं की उम्मीद थी। लेकिन इन सौदों पर हस्ताक्षर नहीं किए गए। इसके बजाय दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और आर्थिक संबंधों के विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया गया था। रक्षा सौदों में समय लगता है तथा एक अलग स्तर पर बातचीत करनी पड़ती है। इसके बावजूद रूस ने भारत को परमाणु रिएक्टरों और ईंधन सहित ऊर्जा आपूर्ति के बारे में आश्वासन दिया है। श्रम गतिशीलता व वीजा सुविधा दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि रूस को जनशक्ति संसाधनों की आवश्यकता है एवं भारत अधिक रोजगार के अवसरों की तलाश कर रहा है। सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान भी समझौतों के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
बहरहाल, भारत-रूस संबंधों के सबसे महत्वपूर्ण तत्व बुनियादी ढांचे व परिवहन गलियारों और बाजार तक पहुंच हैं। इस नजरिए से अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी )और यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर ध्यान केंद्रित करने से मदद मिलेगी। इससे अकेले रूस और कुछ सीआईएस देशों के साथ भारत के व्यापार में भारी वृद्धि होगी। संयुक्त वक्तव्य में यह उल्लेख किया गया था कि दोनों नेताओं ने भारत और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के बीच आपसी हित के क्षेत्रों को शामिल करते हुए वस्तुओं पर मुक्त व्यापार समझौते पर चल रहे संयुक्त कार्य में तेजी लाने की सराहना की। 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद विदेश मंत्रालय द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि यह प्रक्रिया 2011-12 से लंबी खींची गई है और समझौते में अत्यधिक देरी हुई है।
संयुक्त बयान के अनुसार दोनों पक्ष 'स्थिर व कुशल परिवहन गलियारों के निर्माण में सहयोग को और गहरा करने पर भी सहमत हुए जिसमें अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी), चेन्नई-व्लादिवोस्तोक (पूर्वी समुद्री) गलियारे और उत्तरी समुद्री मार्ग का समर्थन करने के लिए कनेक्टिविटी में सुधार तथा बुनियादी ढांचे की क्षमता बढ़ाने के लिए रसद लिंक का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उन्होंने धु्रवीय जल में संचालित जहाजों के लिए विशेषज्ञों के प्रशिक्षण पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का भी स्वागत किया।
संक्षेप में, ऐसा लग सकता है कि इस मामले में बहुत सार नहीं था। हालांकि राजनयिक संदेश के दृष्टिकोण से शिखर सम्मेलन अधिक सफल रहा। फिर भी, केवल इतना ही पर्याप्त नहीं होगा। जैसे-जैसे शांति प्रक्रिया में प्रगति में देरी होती है और रूस अधिक क्षेत्रों पर कब्जा करता है, यूरोपीय संघ और वाशिंगटन वार्ता को बाधित करने की कोशिश करेंगे। रूस से ऐसी मांगें की जाएंगी जिन्हें वह पहले ही खारिज कर चुका है। इस हालात में रूस और उसके सहयोगी दोनों दबाव में होंगे। प्रतिबंधों एवं शुल्कों को और कड़ा किया जाएगा जिससे न केवल रूस बल्कि भारत जैसे उसके सहयोगियों को नुकसान होगा। इस प्रकार दोनों देशों को आने वाली प्रतिकूलताओं के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। उनका एकमात्र विकल्प पश्चिम के बाहर व्यापार और व्यापारिक भागीदारों में विविधता लाना है।
पुतिन की हालिया यात्रा एक दीर्घकालिक, टिकाऊ और व्यापक साझेदारी हासिल करने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए थी। भारत-रूस के बीच प्रगाढ़ मैत्री का संदेश देने के बाद असली चुनौती यह होगी कि यूक्रेन में आसन्न आपदा से और अधिक निराश हो रहे एवं शत्रुतापूर्ण रुख अपनाने वाले पश्चिम का सामना कैसे किया जाए। भारत पर अधिक कूटनीतिक तथा आर्थिक दबाव हो सकता है। अपनी जमीन पर खड़ा होना एक चुनौती होगी। भारत ने अब तक दिखाया है कि वह रूस के साथ अपनी दोस्ती जारी रखने तथा रक्षा से लेकर ऊर्जा, जनशक्ति गतिशीलता से लेकर नवाचार, निवेश व प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान से लेकर संस्कृति एवं पर्यटन तक विविध क्षेत्रों में संबंधों का विस्तार करने का इच्छुक है। संक्षेप में, पुतिन की यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों को प्रतिबंधों का अवहेलना करने और सहयोग के नए क्षेत्रों का पता लगाने के लिए तैयार करना था- रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक में, जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा के क्षेत्रों में सहयोग, और ब्रिक्स, एससीओ और जी-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करना था।
संदर्भ और पृष्ठभूमि को देखते हुए भारत द्वारा रूसी राष्ट्रपति की मेजबानी करने के लिए रणनीतिक स्वायत्तता का संदेश दिया गया है। एक संदेश दिया गया है कि भारत और रूस के बीच संबंधों को बाहरी दबावों और इच्छाओं का बंधक नहीं बनाया जा सकता है।
(लेखक जेएनयू के सेंटर फॉर रशियन एंड सेंट्रल स्टडीज़ में प्रोफेसर थे। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)