मोदी-पुतिन शिखर वार्ता ने दी भारत की भूराजनीतिक पहचान को नई ऊंचाई

रूस और भारत के संयुक्त बयान के मुताबिक, दोनों नेताओं ने संतुलित और टिकाऊ तरीके से द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने की अपनी साझा इच्छा की फिर से पुष्टि की;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-12-08 21:09 GMT
  • नित्य चक्रवर्ती

रूस और भारत के संयुक्त बयान के मुताबिक, दोनों नेताओं ने संतुलित और टिकाऊ तरीके से द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने की अपनी साझा इच्छा की फिर से पुष्टि की, जिसमें रूस को भारत का निर्यात बढ़ाना, औद्योगिक सहयोग को म•ाबूत करना, नई प्रौद्योगिकीय और निवेश साझेदारी बनाना, खासकर विकसित उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, और परस्पर सहयोग के नए रास्ते और तरीके खोजना शामिल है।

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दो दिन की बातचीत के बाद 5 दिसंबर को जारी भारत-रूस संयुक्त बयान ने दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने के दस्तावेज से कहीं अधिक संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी ताकतों के दबाव को नज़रअंदाज़ करते हुए भारत के भूराजनीतिक हैसियत और पहचान को फिर से इस्तेमाल करने की पुष्टि है।

इस दौरे का समय और इसके बाद 4 दिसंबर की शाम को दिल्ली एयरपोर्ट के टरमैक पर भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा सामान्य निर्धारित राजकीय व्यवहार (प्रोटोकॉल) को नज़रअंदाज़ करते हुए राष्ट्रपति पुतिन का औपचारिक स्वागत, उन सभी बातों को दिखाता है जो नरेंद्र मोदी ने पश्चिमी ताकतों, खासकर अमेरिका की लगातार चेतावनी को कोई अहमियत न देते हुए राजनयिकता में एक अलग रास्ता चुनने के लिए सावधानी से लेकिन पक्के इरादे से काम किया है।

4 दिसंबर से शुरू होने वाले पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले, 1 दिसंबर को एक अजीब बात हुई जब नई दिल्ली में मौजूद जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के तीन राजदूतों ने मिलकर द टाइम्स ऑफ इंडिया में रूसी राष्ट्रपति की कड़ी आलोचना करते हुए एक लेख लिखा, 'जैसे-जैसे राष्ट्रपति पुतिन गंभीर शांति बातचीत में देरी कर रहे हैं, हम यूक्रेन को अपनी मिलिट्री और नॉन-मिलिट्री मदद बढ़ाते रहेंगे ताकि वह अपने लोगों, अपनी ज़मीन और अपनी आज़ादी की सही तरीके से रक्षा कर सकेÓ। यह मिला-जुला लेख इस यूरोपियन तिकड़ी की तरफ से भारतीय प्रधानमंत्री पर राष्ट्रपति पुतिन के साथ बातचीत में दबाव डालने के लिए एक खुली दखलअंदाज़ी के अलावा और कुछ नहीं था।

यूरोपियन तिकड़ी और वाशिंगटन डीसी के लिए यह बहुत बड़ी परेशानी की बात थी, जहां ट्रंप के अधिकारी रूसी राष्ट्रपति के साथ भारतीय प्रधानमंत्री के हर व्यवहार पर नज़र रख रहे थे। भारतीयों के लिए यह देखना बहुत सुकून देने वाला था कि हमारे प्रधानमंत्री रूसियों के साथ धीरे चलने के पश्चिमी दबाव की परवाह किए बिना सावधानी से लेकिन इज्ज़त से पेश आ रहे हैं। अमेरिका के साथ भारत का व्यापार समझौता अपने आखिरी चरण में है। यूरोपियन यूनियन के साथ व्यापार समझौता भी अगले कुछ महीनों में अंतिम रूप हासिल करने के लिए तैयार है। पश्चिम के लिए कुछ भी काम नहीं आया। भारत के प्रधानमंत्री ने 1.44 अरब लोगों के नेता के तौर पर पूरे आत्मविश्वास के साथ रूसी राष्ट्रपति से बात की, एक ऐसे देश के प्रधानमंत्री के रूप में जो दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश है और जिसकी मज़बूत अर्थव्यवस्था 2027-28 तक अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाली है।

इस तरह, 23वें भारत-रूसी वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दौरा एक दैनंदिन द्विपक्षीय दौरे से कहीं ज़्यादा है। यह भारत की तरफ से बड़ी वैश्विक ताकतों के सामने अपनी रणनीतिगत स्वायत्तता दिखाने का एक मज़बूत संकेत है। अमेरिका भारत की रणनीतिगत स्वायत्तता की इज्ज़त नहीं करता। अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट मार्को रुबियो ने भारत के खिलाफ़ प्रतिबंधों के मामले में बार-बार इस बात का ज़िक्र किया है। जहां तक रूस की बात है, भारत के लिए स्वायत्तता का यह हिस्सा सोवियत यूनियन के दिनों से चला आ रहा है। हाल ही में नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी और पुतिन दोनों ने इस बात पर •ाोर दिया और यह इस वर्तमान चरण में भारतीय कूटनीति का एक बहुत ही सकारात्मक पहलू था।

अर्थव्यवस्था और व्यापार के मामले में, रूसी राष्ट्रपति पुतिन का भारत को बिना रुकावट तेल आपूर्ति का भरोसा एक ऐसी गारंटी है जो अमेरिका समेत दूसरे खनिज तेल निर्यातक देशों के साथ भारत की मोलभाव करने की ताकत को बढ़ा सकती है। अमेरिका अब रूस के निर्यात की कीमत पर भारत पर अमेरिका से ज़्यादा तेल उत्पादन आयात करने के लिए दबाव डाल रहा है। अमेरिकी प्रतिबंध के बाद भारतीय एजेंसियों ने पहले ही रूसी स्रोत से आपूर्ति कम कर दी है। रिलायंस जैसी प्राइवेट कंपनियां अमेरिका के प्रतिबंध का पूरी तरह पालन कर सकती हैं, लेकिन भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के पास चुनने की आज़ादी है और रूस के भरोसे के बाद यह और बढ़ेगी। भारत के पास खनिज तेल के आयात का स्रोत चुनने का विकल्प है, और इससे खरीद की टोकरी बड़ी होगी।

रूस और भारत के संयुक्त बयान के मुताबिक, दोनों नेताओं ने संतुलित और टिकाऊ तरीके से द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने की अपनी साझा इच्छा की फिर से पुष्टि की, जिसमें रूस को भारत का निर्यात बढ़ाना, औद्योगिक सहयोग को म•ाबूत करना, नई प्रौद्योगिकीय और निवेश साझेदारी बनाना, खासकर विकसित उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, और परस्पर सहयोग के नए रास्ते और तरीके खोजना शामिल है।

दोनों नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन को केंद्र में रखते हुए एक खुले, सबको साथ लेकर चलने वाले, पारदर्शी और बिना भेदभाव वाले बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के महत्व पर •ाोर दिया। दोनों पक्षों ने जिन बातों पर •ाोर दिया उनमें टैरिफ और नॉन-टैरिफ व्यापार की रुकावटों को दूर करना, लॉजिस्टिक्स में रुकावटों को दूर करना, कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना, आसान भुगतान प्रणाली पक्का करना, बीमा और पुनर्बीमा के मामलों के लिए आपसी सहमति वाले हल ढूंढना और दोनों देशों के व्यवसाय के बीच नियमित रूप से बातचीत, 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डालर के बदले हुए द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को निर्धारित समय सीमा में हासिल करना आदि शामिल हैं।

इसके अलावा, रूस और भारत द्विपक्षीय व्यापार को बिना किसी रुकावट के बनाए रखने के लिए अपनी-अपनी राष्ट्रीय करेंसी के इस्तेमाल से द्विपक्षीय भुगतान के मामलों को सुलझाने की प्रणाली को मिलकर विकसित करते रहने पर सहमत हुए हैं। इसके अलावा, दोनों पक्ष अपने सहयोग को जारी रखने पर भी सहमत हुए हैं। राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली, वित्तीय संदेश प्रदातृ प्रणाली आदि के साथ ही दोनों देशों के केन्द्रीय बैंकों द्वारा डिजिटल मुद्रा प्लेटफॉर्म की पारस्परिक संचालनीयता को चालू करने पर बातचीत पर भी सहमति बनी है।

सच तो यह है कि 2030 तक भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार के 100 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंचने के इस लक्ष्य पर लंबे समय से चर्चा हो रही है, लेकिन पहले बताए गए फॉलो-अप उपाय कई वजहों से नहीं किए गए हैं। मोदी राज में भारत का फोकस अमेरिकी बाजार और निवेश पर था, तथा रूसी मार्केट को लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया गया। इसे दोनों तरफ से ठीक करना होगा। दिल्ली समिट को भारत-रूस रिश्तों की अहमियत का अंदाज़ा लगाने के मामले में गेम चेंजर के तौर पर काम करना चाहिए। नहीं तो, सभी घोषणाओं और समझौतों के बावजूद व्यापार और निवेश में वही ठहराव बना रहेगा, जो निकट अतीत में रहा है।

भारत सरकार के लिए, यह समय अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के साथ आने वाली बातचीत में इस दौरे से मिले फायदों का रणनीतिगत तरीके से सबसे अच्छा इस्तेमाल करने का है। चीन पहले ही पुतिन के साथ मोदी की बातचीत का स्वागत कर चुका है। हर एक के लिए रणनीतिगत स्वायत्तता के आधार पर भारत-चीन-रूस साझेदारी बनने की अच्छी संभावना हो सकती है। कुल मिलाकर, हाल ही में हुए भारत-रूस शिखर सम्मेलन समिट के बाद भारतीय राजनयिकता के पास और मज़बूत होकर उभरने का एक बड़ा मौका है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, अपने बढ़े हुए रुतबे के साथ, यह देखना होगा कि ये कूटनीतिक फ़ायदे फिर से बर्बाद न हों।

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