महाराष्ट्र : एक बार फिर से दहाड़ रहा है बाघ
चचेरे भाइयों के एक साथ आने के कई फायदे हैं लेकिन यह देखने की आवश्यकता होगी कि मराठी का हालिया मुद्दा उन्हें किस मोड़ पर ले जाएगा।;
— लेखा रत्तनानी
चचेरे भाइयों के एक साथ आने के कई फायदे हैं लेकिन यह देखने की आवश्यकता होगी कि मराठी का हालिया मुद्दा उन्हें किस मोड़ पर ले जाएगा। वर्षों से राज्य में रहने के बावजूद मराठी नहीं बोलने वाले गैर-महाराष्ट्रियों को आतंकित करने और धमकी देने के कई मामलों में मनसे कार्यकर्ता शामिल रहे हैं । भाषा पर गर्व होने से निकाय चुनावों के लिए अभियान को गति देने में उन्हें मदद मिल सकती है।
बालासाहेब केशव ठाकरे द्वारा 1966 में शिवसेना की स्थापना के बाद से लगभग छह दशकों तक उनकी पार्टी एक ऐसे राज्य में राजनीति की केंद्र रही है जो पारम्परिक रूप से कांग्रेस शासित था। पश्चिमी महाराष्ट्र के शक्कर क्षत्रपों का राज्य पर नियंत्रण था। दहाड़ता बाघ शिवसेना का पर्याय बन गया था। शिवसेना जल्द ही 'मराठी मानुष' के लिए नौकरियों की तलाश करने वाले एक सामाजिक संगठन से हिंदू हितों की हिमायत करने वाली राजनीतिक पार्टी में बदल गई। एक क्षेत्रीय संगठन से साम्प्रदायिक संगठन में बदलाव, सड़क से राज्य स्तर की पार्टी बनने की प्रक्रिया इसके संस्थापक की लोकप्रियता के आसपास घूम रही थी। शिवसेना को 1989 में धनुष-बाण चुनाव चिह्न प्रदान किया गया और शिवसेना पूरे राज्य और महाराष्ट्र से बाहर भी पहचानी जाने लगी लेकिन जैसे-जैसे वह विभाजित और बंटती चली गयी, उसका दबदबा लगातार घटता गया। चुनाव आयोग ने फरवरी, 2023 में शिवसेना के एक गुट को पार्टी का चुनाव चिन्ह प्रदान किया और बाघ की दहाड़ कम हो गयी। अलग होने के दो दशक बाद अब बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे फिर से मिल गए हैं। 2005 के बाद से 5 जुलाई 2025 को वर्ली में आयोजित एक संयुक्त रैली उनका पहला साझा मंच था।
'आवाज मराठीचा' या 'मराठी की आवाज' रैली का आयोजन प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने के महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव के विरोध में किया गया था।
त्रिभाषा फॉर्मूले को हिंदी थोपने के रूप में देखा जाता है। इस फार्मूले का दक्षिणी राज्यों में विरोध हो रहा है। तमिलनाडु में हिंदी का सबसे कड़ा विरोध हो रहा है। वहां इसे राज्य की भाषाई पहचान को कमजोर करने और केंद्र सरकार के सांस्कृतिक प्रभुत्व के प्रयास को आगे बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा जाता है। महाराष्ट्र में इसने ठाकरे बन्धुओं को उस जमीन को पुन: प्राप्त करने के लिए एक अवसर प्रदान किया जिसे वे लगातार खो रहे थे। अपनी प्रासंगिकता को पुन: प्राप्त करने के लिए उन्होंने अब मराठी पहचान के एक शक्तिशाली आख्यान को पुनर्जीवित किया है।
राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) लंबे समय तक सक्रिय रहने के बाद भी कुछ खास राजनीतिक प्रगति नहीं कर पाई है। 2024 के चुनावों में मनसे 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत पाई जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) केवल 20 सीटें ही जीत सकी। बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती शिवसेना में खतरे, भय और करिश्मे के मिश्रण ने कैडर और समर्थकों दोनों को कंट्रोल में रखा। राज ठाकरे ने हमेशा मसल पॉवर और गरज के साथ पार्टी का नेतृत्व किया। उन्होंने पार्टी की छात्र शाखा भारतीय विद्यार्थी सेना का गठन किया और बाद में 1990 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना उम्मीदवारों के लिए राज्य भर में प्रचार अभियान शुरू किया। उन्हें अपने चाचा के उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया। शैली, ढंग और वाणी में वे बाल ठाकरे के करीब थे। जब विरासत की जिम्मेदारी बाल ठाकरे के बेटे और उनके चचेरे भाई उद्धव के पास गई तो वे वहां से हट गए।
भाजपा ने उद्धव के साथ साझा नेतृत्व का वादा किया था लेकिन यह वादा निभाया नहीं। नाराज उद्धव ने भाजपा पर विश्वासघात का आरोप लगाने के बाद 2019 में राज्य पर शासन करने के लिए कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ गठबंधन किया। भाजपा ने शिवसेना को तोड़कर राज्य में सत्तारूढ़ शिवसेना से अलग हुए एक धड़े के नेता एकनाथ शिंदे के साथ गठबंधन किया। इसके बाद वे एनसीपी को विभाजित करने के लिए आगे बढ़े। शरद पवार के भतीजे अजित पवार के नेतृत्व वाला एक अलग एनसीपी गुट अब भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति या महागठबंधन का हिस्सा है जो महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन है।
चचेरे भाईयों का मुख्य उद्देश्य भाजपा को चुनौती देना और फिर से जमीन हासिल करना है क्योंकि दोनों भाईयों की निकाय चुनावों पर नजर है। इनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण वृहद मुंबई नगर निगम के चुनाव हैं जो एशिया में सबसे अमीर नागरिक निकाय है और कई भारतीय राज्यों से इसका वार्षिक बजट बड़ा है। 2025-26 के लिए इसका बजट 74, 400 करोड़ रुपये से अधिक है। इस समय भाजपा 132 सीटों के साथ राज्य में मुख्य पार्टी है। आगामी निकाय चुनाव दिखाएंगे कि क्या भाजपा अपना यह रुतबा कायम रख सकती है। शिवसेना से अलग हुई पार्टी के प्रमुख एकनाथ शिंदे ठाकरे की राज्य विधानसभा में 52 सीटें हैं। शिंदे ही ठाकरे परिवार के पुनर्मिलन के नए घटनाक्रम के मद्देनजर सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले नेता हैं। खुद को बाल ठाकरे के असली उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने वाले शिंदे की शिवसेना सुप्रीमो के बेटे और भतीजे के सामने कोई हैसियत नहीं रह जाएगी।
चचेरे भाइयों के एक साथ आने के कई फायदे हैं लेकिन यह देखने की आवश्यकता होगी कि मराठी का हालिया मुद्दा उन्हें किस मोड़ पर ले जाएगा। वर्षों से राज्य में रहने के बावजूद मराठी नहीं बोलने वाले गैर-महाराष्ट्रियों को आतंकित करने और धमकी देने के कई मामलों में मनसे कार्यकर्ता शामिल रहे हैं । भाषा पर गर्व होने से निकाय चुनावों के लिए अभियान को गति देने में उन्हें मदद मिल सकती है लेकिन यदि वे ताकत की राजनीति अपनाते हैं तो यह नीति गैर-मराठी मतदाताओं की पर्याप्त संख्या को अलग-थलग कर सकती है। मनसे कैडर ने अतीत में बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासियों पर हमले किये हैं एवं उन पर स्थानीय लोगों की नौकरियां छीनने का आरोप लगाया है।
नया गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीतिक कहानी में एक मोड़ जोड़ रहा है लेकिन इस जोड़ी में अस्थिरता तथा मतभेद हैं जो दोनों के बीच दीर्घकालिक जुड़ाव के बारे में संदेह पैदा करते हैं। उद्धव ठाकरे अपनी सौम्य और शांत कार्यशैली के साथ विपक्ष में अपने नए सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाने में अधिक सफल रहे हैं जबकि राज ठाकरे की दहाड़ जारी है और उनके कैडर ने मुंबई में प्रवासियों को अलग-थलग करने का जोखिम उठाया है। मुंबई में काम करने वालों में प्रवासियों का बड़ा हिस्सा है। अनुमान कम-ज्यादा हो सकते हैं लेकिन 2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई की आबादी में प्रवासियों की संख्या 43 प्रतिशत से अधिक थी। इसमें उत्तर प्रदेश के प्रवासियों की संख्या लगभग 41 प्रतिशत थी।
पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद से महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी दोनों के टूटने के साथ बहुत सारे राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे गए हैं। परिवर्तनों की तेज रफ्तार तथा बड़ी संख्या ने मतदाता को भ्रमित किया है कि कौन किसके साथ है? क्या ठाकरे गठबंधन इस अस्थिर परिदृश्य में कुछ बदलाव ला सकता है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वे कामकाज की दो अलग-अलग शैलियों में समन्वय बिठा सकते हैं।
कह नहीं सकते कि बाल ठाकरे के वर्षों के जादू को फिर से कायम करने में दोनों चचेरे भाई सक्षम होंगे या उसके कुछ करीब तक पहुंच सकते हैं अथवा नहीं।
(लेखक द बिलियन प्रेस की प्रबंध संपादक हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)