ललित सुरजन की कलम से - क्या गाँधी के विचार जीवित हैं?
'गुजरात गांधीजी का गृह प्रदेश है। गांधीजी के विचारों के अनुसरण में ही पिछले साठ साल से वहां मद्यनिषेध लागू है;
'गुजरात गांधीजी का गृह प्रदेश है। गांधीजी के विचारों के अनुसरण में ही पिछले साठ साल से वहां मद्यनिषेध लागू है। अगर मान लिया जाए कि गुजरात में एक भी व्यक्ति मदिरापान नहीं करता, तब भी क्या हम कह सकते हैं कि वहां का हर निवासी गांधीवादी है?
इसी तरह देश में बहुत बड़ी संख्या में लोग गांधी टोपी पहनते हैं, लेकिन क्या वे गांधी के विचारों को जीवित रखने का कोई यत्न कर रहे हैं? मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूं जो पारिवारिक संस्कारों के चलते आज भी चरखा कातते हैं, उन्हें अपने आप गांधीवादी होने का खिताब भी मिल जाता है, लेकिन क्या चरखा कातना पर्याप्त है?
हमारे एक मित्र हैं जो स्वयं को गांधीवाद का बहुत बड़ा अध्येता मानते हैं: उन्हें इस नाते व्याख्यान देने जगह-जगह बुलाया जाता है, लेकिन वही मित्र इन दिनों कभी भगतसिंह के रास्ते पर, तो कभी नेताजी के रास्ते पर चलने की सलाह देने लगे हैं।
तो क्या गांधी के विचार सिर्फ सभा-समितियों तक सीमित रखना पर्याप्त है? एक और सज्जन हैं जिन्होंने उड़ीसा में फादर ग्राह्म स्टेन्स की नृशंस हत्या के कुछ दिनों बाद एक पुस्तिका प्रकाशित कर यह सिध्द करने का प्रयत्न किया कि गांधीजी ईसाइयत के कितने खिलाफ थे। क्या ऐसे व्यक्ति को गांधीवादी माना जा सकता है?'
(देशबन्धु में 20 सितम्बर 2012 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/09/blog-post_20.html