ललित सुरजन की कलम से - खुशफहमियों का अंबार
'चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत को भी एक शक्तिशाली मित्र की आवश्यकता है;
'चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत को भी एक शक्तिशाली मित्र की आवश्यकता है। कल तक सोवियत संघ उसका साथी था। आज उसे अमेरिका दिखाई दे रहा है। भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती हो यह अच्छी बात है, लेकिन हमें अपने दीर्घकालीन हितों को देखकर ही संबंधों की सीमा तय करना चाहिए।
कल तक जिसे एशिया-पैसेफिक क्षेत्र कहा जाता था उसे डोनाल्ड ट्रंप ने इंडिया-पैसेफिक कह दिया तो इससे फूल कर कुप्पा होने में अपना ही नुकसान है। फारस की खाड़ी को अरब की खाड़ी कहकर पुकारना चाहें तो भी वह ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों से फारस की खाड़ी ही रहेगी। एशिया-पैसेफिक क्षेत्र में पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के तमाम देश आ जाते हैं।
इंडिया-पैसेफिक कहेंगे तो जापान, फिलीपीन्स, वियतनाम कहां जाएंगे? अमेरिका जानता है कि भारत एक भावना-प्रधान देश है। वह लच्छेदार बातें करके हमें भरमाता है। यह हमारे नेतृत्व के विवेक पर निर्भर करता है कि लच्छेदार बातों में न आए और वास्तविकता की कठोर धरती पर रिश्तों का आकलन करे।'
(देशबन्धु में 30 नवंबर 2017 को प्रकाशित)
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