केरल में बीजेपी : कांग्रेस और लेफ्ट दोनों दोषी

केरल में भाजपा की एक नगर निगम में जीत कांग्रेस और लेफ्ट के लिए एक कड़ा सबक है;

Update: 2025-12-15 00:19 GMT
  • शकील अख्तर

पूरे देश की तरह केरल में भी भाजपा हिन्दू धु्रवीकरण की ही राजनीति करती है। मगर केरल में शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा होने देश का सबसे अधिक साक्षर राज्य होने 96 प्रतिशत से अधिक तक के कारण यहां उसकी साम्प्रदायिक राजनीति नहीं चलती। लेकिन उस स्थिति में जब देश में धर्मनिरपेक्ष राजनीति के दो प्रमुख दल एक दूसरे पर यह आरोप लगाते हैं कि वे बीजेपी से मिले हुए हैं तो बीजेपी के चेहरे से साम्प्रदायिक रंग थोड़ा कम हो जाता है।

केरल में भाजपा की एक नगर निगम में जीत कांग्रेस और लेफ्ट के लिए एक कड़ा सबक है। स्थानीय निकायों के चुनाव में वैसे तो ओवर आल कांग्रेस जीती है, लेफ्ट फ्रंट को झटका लगा है मगर बीजेपी की जीत दोनों के लिए चिंता का एक बड़ा सबब है।

कांग्रेस को जीत के बावजूद इसका विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर वही बीजेपी के सामने है। और लेफ्ट को इसलिए अब एक मात्र यही राज्य ऐसा बचा है जहां उसकी सरकार है। बंगाल और त्रिपुरा उसके हाथ से चले गए हैं। और हाल फिलहाल वहां वापसी की कोई संभावना नजर नहीं आती है।

अब इस बात पर विचार कि क्या केरल में भाजपा अपनी ताकत के बल पर एक नगर निगम का चुनाव जीती है या कांग्रेस और लेफ्ट के एक दूसरे को मिटाने के लिए किसी भी हद तक जाने का बीजेपी को फायदा मिला है। इन स्थानीय निकाय के चुनावों से पहले 2024 लोकसभा चुनाव ही बड़ा चुनाव हुआ था। और उसमें कांग्रेस और लेफ्ट ने एक दूसरे पर खुल कर बीजेपी को मदद पहुंचाने के आरोप लगाए थे।

केरल से पहले राहुल और 2024 में प्रियंका चुनाव लड़ रही थीं और जाहिर है सीधा लेफ्ट के खिलाफ ही तो दोनों कांग्रेस और लेफ्ट के बीच तीखे आरोप प्रत्यारोप हुए। राहुल ने लेफ्ट फ्रंट के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन पर सीधे बीजेपी से मिले होने का आरोप लगाया था। जिसके जवाब में मुख्यमंत्री विजयन ने कांग्रेस पर संघ परिवार से मिले होने का आरोप लगा दिया था। जाहिर है कि बीजेपी ने इस स्थिति का पूरा फायदा उठाया और पहली बार केरल से एक लोकसभा सीट निकाल ली। और उसके बाद अब एक नगर निगम भी जीत लिया।

पूरे देश की तरह केरल में भी भाजपा हिन्दू धु्रवीकरण की ही राजनीति करती है। मगर केरल में शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा होने देश का सबसे अधिक साक्षर राज्य होने 96 प्रतिशत से अधिक तक के कारण यहां उसकी साम्प्रदायिक राजनीति नहीं चलती। लेकिन उस स्थिति में जब देश में धर्मनिरपेक्ष राजनीति के दो प्रमुख दल एक दूसरे पर यह आरोप लगाते हैं कि वे बीजेपी से मिले हुए हैं तो बीजेपी के चेहरे से साम्प्रदायिक रंग थोड़ा कम कम हो जाता है। जो पढ़े-लिखे लोग साम्प्रदायिकता की वजह से उससे दूर रहते थे वे यह सुनकर कि कांग्रेस उसकी मदद करती है लेफ्ट उसकी मदद करता है पास आकर यह देखने लगते हैं कि क्या वाकई कोई धर्मनिरपेक्ष दल या फ्रंट उसका साथ दे रहा है।

बीजेपी और संघ के कई चेहरे हैं। वह जहां जरूरत होती है इस तरह दिखाती है कि वह किसी के खिलाफ नहीं है। बल्कि और आगे जाकर सबसे ज्यादा हमदर्द भी दिखाने की कोशिश करने लगती है। इसी से उसको फायदा होता है और जम्मू-कश्मीर से लेकर बंगाल और केरल तक वह जगह बनाने लगती है।

आज के समय में सारे विपक्षी दलों को यह सोचना चाहिए कि वोट चोरी से लेकर आम जनता की परेशानियों के जितने सवाल हैं उनका कारण मोदी की साम्प्रदायिक राजनीति के अलावा क्या कोई और भी हो सकता है। सब इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि जब तक मोदी है चुनाव आयोग इसी तरह चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं होने देगा। इसी तरह महंगाई और बेरोजगारी के सवाल हिन्दू-मुस्लिम राजनीति के नीचे दबे रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी का एकमात्र उद्देश्य है सत्ता में बने रहना।

विपक्षी दल जब अपनी आपसी लड़ाई छोड़कर एक साथ आते हैं तो मोदी के लिए जीतना मुश्किल हो जाता है। 2024 में इंडिया गठबंधन के एक होकर लड़ने से ही भाजपा 240 पर रुक पाई। सरकार बनाने के लिए उसे चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार पर निर्भर होना पड़ा। और एक बार जब सरकार बन गई तो फिर प्रधानमंत्री मोदी ने उसके बाद होने वाले सभी विधानसभा चुनावों में वोट चोरी को अपना प्रमुख हथियार बना लिया। हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र सभी जगह विपक्ष ने वोट चोरी के ठोस सबूत पेश किए। मगर चुनाव आयोग क्यों मानता? उसी के खिलाफ तो सारा मामला है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी साफ कह रहे हैं कि छोड़ूंगा नहीं। इसलिए सिर्फ चुनाव आयोग ही नहीं गोदी मीडिया सहित बाकी जितनी भी संस्थाएं पक्षपातपूर्ण काम कर रही हैं वे सब वर्तमान सत्ता को बचाने के लिए अपनी पूरी जी जान से लगी हुई हैं।

इसलिए केरल में लेफ्ट और कांग्रेस, बंगाल में ममता बनर्जी, लेफ्ट और कांग्रेस सब को सोचना पड़ेगा कि आपस में किस हद तक लड़ना है। क्या इतना कि केरल की तरह भाजपा फायदा उठा ले!

अभी जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है उनमें केरल और बंगाल ऐसे हैं जहां बीजेपी अपनी सबसे ज्यादा ताकत लगाएगी। और अगर इन दोनों राज्यों में उसका प्रदर्शन अच्छा रहा तो फिर विपक्ष के लिए केन्द्र में या किसी भी राज्य में बीजेपी से लड़ना और मुश्किल हो जाएगा।

केरल की तरह बंगाल में भी लेफ्ट, तृणमूल और कांग्रेस एक दूसरे पर भाजपा को मदद पहुंचाने का आरोप लगाते हैं। भाजपा इससे खुश होती है और फायदा निकालती है।

भाजपा के लिए वैचारिक पवित्रता का कोई मतलब नहीं है। लेफ्ट से और कांग्रेस से मिलने की बात तो कोई मायने ही नहीं रखती उसने तो 1941 में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। नार्थ फ्रंटियर, बंगाल और सिंध में हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग मिलकर सरकार चला रहे थे।

जनसंघ (भाजपा का पूर्व नाम) का गठन करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मंत्री थे। लेफ्ट के साथ तो उसने अभी अन्ना आंदोलन में उससे पहले वीपी सिंह के आंदोलन में और फिर सरकार में और उससे भी पहले जेपी के आंदोलन में साथ किया था। जब मायावती की राजनीति अपने शिखर पर थी और तिलक तराजू और तलवार इनको मारो... जैसे नारे चल रहे थे तो संघ के नेता कांग्रेस के साथ मिलकर मायावती और मुलायम से लड़ने की बातें करते थे।

इसलिए बीजेपी सत्ता के लिए किसी के भी साथ जा सकती है। सत्ता में बने रहने के लिए कोई भी समझौता कर सकती है। मगर गरीब जनता, आम लोगों के बारे में कभी भी नहीं सोच सकती। वह पहले व्यापारियों की पार्टी थी। और अब मोदी ने उसे कारपोरेट की पार्टी बना दिया। कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने चुनाव आयोग के आंकड़े निकालकर चुनाव सुधार पर हो रही बहस में राज्यसभा में यह बताकर हड़कम्प मचा दिया कि भाजपा के खजाने में आज दस हजार करोड़ से ज्यादा की रकम है।

सोच लीजिए कि इस तरह दस हजार करोड़ रुपए की पार्टी क्या किसी भी कीमत पर सत्ता से बाहर जाना चाहेगी।

कभी नहीं। क्योंकि इसका एक दूसरा पहलू भी है कि अब कांग्रेस या विपक्ष 2004 जैसी उदारता नहीं बरत सकता। उस समय सरकार बनाने के बाद यूपीए ने किसी विपक्षी नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। गुजरात दंगों पर भी नहीं। स्नूपिंग कांड में यहां तक कह दिया कि इसकी जांच के लिए हमें कोई जज नहीं मिल रहा है। आपको मालूम होगा कि स्नूपिंग कांड मोदी के खिलाफ था।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को भी लोकसभा में यूपीए की सरकार ने अभयदान दिया था। जब रोते हुए योगी ने कहा था कि उनका एनकाउंटर करवाया जा सकता है। तब तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने यह नहीं कहा था कि नथिंग विल गो आन रिकार्ड बल्कि सख्ती से कहा था कि योगी को पूरी सुरक्षा दी जाए। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी।

मगर 2014 में सरकार आने के बाद मोदी ने निवर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के घर सीबीआई पहुंचा दी थी। बाकी सोनिया से लेकर राहुल तक ईडी की घंटों पूछताछ, मुकदमों की लंबी लिस्ट है। कितने विपक्षी नेता गिरफ्तार हुए छापे पड़े इसकी कोई गिनती तक नहीं कर सकता। छोटे बड़े हर नेता पर विद्वेषपूर्ण कार्रवाई हुई।

इसलिए अब अगर कांग्रेस या विपक्ष अपनी पुरानी भलमनसाहत के तहत सदाशयतापूर्ण व्यवहार करेगा तो उनके कार्यकर्ताओं में ही विद्रोह हो जाएगा। क्योंकि सब सताए हुए हैं। राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार बने हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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