रूसी मिसाइलों और ड्रोनों में पश्चिम के पुर्जे

पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं, लेकिन इन सख्तियों बावजूद पश्चिमी कंपनियों के संवेदनशील कल पुर्जे रूस तक पहुंच ही जा रहे हैं;

Update: 2025-10-11 11:55 GMT

पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं, लेकिन इन सख्तियों बावजूद पश्चिमी कंपनियों के संवेदनशील कल पुर्जे रूस तक पहुंच ही जा रहे हैं.

यूक्रेन पर रूस का हवाई हमला शायद ही किसी रात थमता हो. बीते हफ्ते एक ही रात में रूस ने लगभग 500 ड्रोन और रॉकेट यूक्रेन के ठिकानों पर दागे. इनके मलबे की जांच से पता चला है कि कई मिसाइलों में पश्चिमी देशों में बने पुर्जे इस्तेमाल किए गए हैं.

अब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने यह मुद्दा उठाया है. एक वीडियो संदेश में जेलेंस्की ने कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, हाई टेक पुर्जे, जैसे सर्किट बोर्ड, माइक्रोचिप, सेंसर और सेमीकंडक्टर किसी तरह रूस तक पहुंच गए. यूक्रेनी राष्ट्रपति के मुताबिक, हथियारों और ड्रोनों के मलबे में अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से जुड़े एक लाख पुर्जे मिले हैं. इनमें से कई मूल रूप से जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों, साथ ही अमेरिका और ताइवान से जुड़े हैं.

जेलेंस्की के शब्दों में पश्चिमी साझेदारों को लेकर खीझ भी दिखी. यूक्रेनी राष्ट्रपति के मुताबिक करीब सारे पुर्जे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के दायरे में आते हैं और नियमों के तहत उन्हें रूस तक नहीं पहुंचना चाहिए. सोशल नेटवर्किंग साइट एक्स पर उन्होंने लिखा, "अगर कुछ देश रूस को मिसाइलों और ड्रोनों के अहम कल पुर्जों की सप्लाई की घोर निंदनीय योजनाएं बंद कर दें तो रूसी खतरा बहुत हद तक सिमट जाएगा."

रूस तक कैसे पहुंच रहे हैं संवेदनशील कल पुर्जे

कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (केएसई) के वरिष्ठ अर्थशास्त्री बेंजामिन हिल्गेनस्टॉक, रूस पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का अध्ययन करते हैं. वह कहते हैं, "इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2022 के वंसत के दौरान रूस के बड़े हमले के वक्त ही इनमें से कई चीजों पर निर्यात नियंत्रण लागू कर दिया गया था."

हिल्गेनस्टॉक के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद लगाए गए ये प्रतिबंध अब भी जारी है. वक्त बीतने के साथ प्रतिबंध, उन मशीनों पर भी लगाए गए जिनमें ये कल पुर्जे इस्तेमाल किए जाते हैं.

फरवरी 2022 से अब तक यूरोपीय संघ रूस पर 18 अलग अलग पैकेजों के तहत प्रतिबंध लगा चुका है. जुलाई 2025 में ईयू ने "दोहरे इस्तेमाल" वाले प्रोडक्ट्स पर भी यह बैन लगाया. दोहरे इस्तेमाल वाले प्रोडक्ट्स के तहत वे चीजें आती हैं, जिनका इस्तेमाल आम इंसान भी कर सकते हैं और सेना भी.

हिल्गेस्टॉक के मुताबिक, ऐसे कई प्रोडक्ट अब भी किसी न किसी तरह रूस तक पहुंच रहे हैं. आम तौर पर ऐसा कई देशों और मध्यस्थों की मदद से होता है, जैसे चीन, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की और कजाखस्तान. हिल्गेनस्टॉक कहते हैं, "इसका मतलब है कि कई मामलों में पश्चिमी कंपनियां, दूसरे देश के अपने साझेदार को ये उपकण बेचती हैं. वह साझेदार इन उपकरणों को किसी और को बेचता है और यह प्रक्रिया आगे तब तक चलती है, जब तक कोई उनका सौदा करते हुए उन्हें रूस भेज देता है."

इस समस्या से हर कोई वाकिफ है. और यही वजह है कि यूरोपीय संघ ने रूस को इस तरह का सामान बेचने वाली विदेशी कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है. हिल्गेनस्टॉक इसे चूहे बिल्ली के खेल की तरह देखते हैं. उनके मुताबिक, मध्यस्थ कंपनियां बंद करना और बनाना बहुत ही आसान काम है.

निर्यात पर नजर बनाए रखने का कोई तरीका नहीं

जनवरी 2024 में छपे एक शोध में हिल्गेनस्टॉक और उनके साथियों ने रूस पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की जांच की. शोध के दौरान पता लगा कि रूस तक पहुंचने वाले कई पुर्जे असल में पश्चिमी देशों की सीमाओं के भीतर नहीं बने हैं. हिल्गेनस्टॉक कहते हैं, "हो सकता है कि उन्हें पश्चिमी कंपनियों ने बनाया हो, लेकिन पश्चिम में नहीं, उदाहरण के लिए, शायद दक्षिणपूर्वी एशिया की फैक्ट्रियों में उन्हें बनाया गया हो."

इसका मतलब है कि ये प्रोडक्ट या पुर्जे कभी ईयू के कस्टम कंट्रोल से नहीं गुजरे. ऐसे में उनके कारोबार पर पूरा नियंत्रण रखना एक बड़ी चुनौती है. हिल्गेनस्टॉक कहते हैं, "हम इसकी उम्मीद नहीं कर सकते कि एक भी कंप्यूटर चिप रूस तक नहीं पहुंचेगी. हमें यह भी पता है कि रूस इन चीजों के लिए बहुत ही ज्यादा कीमत चुका रहा है, दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा कीमत. यह भी एक किस्म की सफलता है क्योंकि ये बताती है कि समान खर्च के बावजूद रूस को कम सामान मिल रहा है, शायद कमजोर क्वालिटी का और वो भी लंबे इंतजार और लेट लतीफी के बाद."

यूरोपीय संघ को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत

हिल्गेनस्टॉक के मुताबिक, वित्तीय क्षेत्र एक अच्छी नजीर पेश है, "कई दशकों से, वित्तीय सेक्टर में हवाला और आतंकवाद की फंडिंग को लेकर बहुत ही खास नियम कायदे हैं."

इन नियम कायदों का पालन करने के लिए बैंकों को अपने सिस्टम में कई बड़े और कड़े बदलाव करने पड़े. इन बदलावों के बाद अब आसानी से यह पता चल जाता है कि कौन, कहां से कहां तक, किसके साथ, किस तरह का लेन देन कर रहा है.

हिल्गेनस्टॉक कहते हैं कि संवेदनशील उपकरणों के मामले में भी ऐसा की सिस्टम बनाने की जरूरत है. वह स्वीकार करते हैं कि इसमें अच्छा खासा समय लगेगा और साथ ही मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी जरूरत पड़ेगी. उन्हें, फिलहाल यूरोपीय संघ के स्तर पर इस पर ठोस रजामंदी नहीं दिखती है.

वह कहते हैं, "जर्मन समेत, अन्य देशों में भी कंपनियों पर और व्यापाक सावधानी सीमाएं लगाने पर जरूरी सहमति नहीं है."

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