जापान: नई प्रधानमंत्री सनाए ताकाइची ने बनाया इतिहास, लेकिन सामने कई चुनौतियां
जापान की रूढ़िवादी नेता सनाए ताकाइची देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं. मंगलवार, 21 अक्टूबर को संसद के निचले सदन में हुए मतदान में ताकाइची ने बहुमत हासिल कर इतिहास रचा. वह देश की पहली महिला प्रधानमंत्री चुनी गईं;
जापान की रूढ़िवादी नेता सनाए ताकाइची देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं. मंगलवार, 21 अक्टूबर को संसद के निचले सदन में हुए मतदान में ताकाइची ने बहुमत हासिल कर इतिहास रचा. वह देश की पहली महिला प्रधानमंत्री चुनी गईं.
प्रधानमंत्री पद पर चुने जाने के तुरंत बाद उन्होंने अपने मंत्रिमंडल का गठन शुरू कर दिया. पीएम ताकाइची ने उम्मीद जताई है कि यह मंत्रिमंडल उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी उन बदलावों को लागू करने में मदद करेगा, जो उनकी सरकार के लिए जरूरी हैं. ऐसा करके वह पक्का करना चाहती हैं कि उनकी सरकार का कार्यकाल लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) की कई हालिया सरकारों की तरह संक्षिप्त न हो.
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ताकाइची ने जापान की संसद के निचले सदन में प्रधानमंत्री पद के लिए डाले गए 465 मतों में से 237 मत हासिल किए. उनकी कंजर्वेटिव पार्टी एलडीपी को जापान इनोवेशन पार्टी (जेआईपी) का समर्थन प्राप्त था. जेआईपी दक्षिणपंथी झुकाव की पार्टी और एलडीपी की नई गठबंधन सहयोगी है.
जेआईपी का मुख्य आधार जापान का ओसाका शहर है. यह एक छोटी क्षेत्रीय पार्टी है और पूरे देश में अपनी राजनीतिक पकड़ और लोकप्रियता बढ़ाना चाहती है. गठबंधन सहयोगी होने के बावजूद एलडीपी के साथ उसके कुछ गंभीर राजनीतिक मतभेद हैं. फिर भी, जेआईपी का नेतृत्व मानता है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल होने से उसे राजनीतिक मान्यता मिलेगी और देशभर में चुनाव लड़ने के साथ-साथ अपनी पहुंच बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.
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हालांकि, नई सरकार के सामने आने वाली गंभीर चुनौतियों को देखते हुए यह भी संभव है कि निराश मतदाता अगले चुनाव में एलडीपी और जेआईपी, दोनों के खिलाफ वोट करें. इसका मतलब है कि अगर ताकाइची अपने पूर्ववर्ती शिगेरु इशिबा से ज्यादा समय तक सत्ता में रहना चाहती हैं, तो उन्हें बिल्कुल भी समय नहीं गंवाना होगा. इशिबा ने 386 दिनों तक सत्ता में रहने के बाद 21 अक्टूबर की सुबह औपचारिक रूप से इस्तीफा दे दिया था.
पहली प्राथमिकता: एलडीपी में दरार को पाटना
टेम्पल यूनिवर्सिटी जापान (टीयूजे) में एशियाई अध्ययन के निदेशक जेफ किंग्स्टन बताते हैं, "नई प्रधानमंत्री की पहली प्राथमिकता पार्टी के भीतर गहरी दरार को पाटना और एलडीपी के प्रति जनता का विश्वास फिर से बहाल करना होगा."
किंग्स्टन ने डीडब्ल्यू को बताया, "इसके साथ ही उन्हें वह तरीका भी खोजना होगा जिससे इस अजीबोगरीब गठबंधन को कामयाब बनाया जा सके. फिलहाल, यह गठबंधन अस्पष्ट वादों और बिना किसी समयसीमा वाले एजेंडे पर आधारित मालूम होता है."
किंगस्टन ने कहा कि जापान के आम लोग ऐसी नीतियां चाहते हैं, जो कम-से-कम उनके 'आर्थिक दर्द' को कम करें. उन्होंने कहा, "देश में आर्थिक निराशा का माहौल है. लोग आर्थिक तंगी महसूस कर रहे हैं. ऐसे में नई सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह रोजमर्रा की चीजों की आसमान छूती कीमतों को कम करने के तरीके खोजे. इसकी वजह यह है कि ज्यादातर लोगों को महसूस हो रहा है कि वे इस समय गहरे वित्तीय संकट में हैं."
टोक्यो स्थित 'अमोवा ऐसेट मैनेजमेंट' की मुख्य वैश्विक रणनीतिकार नाओमी फिंक ने कहा कि दिवंगत पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अपना गुरु मानने वाली ताकाइची से यह उम्मीद की जा रही है कि वह आबे की कई नीतियों को फिर से लागू कर सकती हैं.
इस बीच, टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज ने ताकाइची को पीएम चुने जाने पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. वह सरकारी खर्च बढ़ाने और आसान मौद्रिक नीतियों की समर्थक मानी जाती हैं. उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में जापान की घरेलू राजनीतिक स्थिति में भी स्थिरता आएगी. इन्हीं उम्मीदों के कारण 21 अक्टूबर को 'निक्केई स्टॉक इंडेक्स' रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया और 49,000 अंकों के ऊपर बंद हुआ.
महंगाई और स्थिर वेतन
फिर भी, वेतन में वृद्धि न होने और जापान के कामकाजी लोगों में अस्थायी नौकरियों की बढ़ती संख्या को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं. यह एक और बड़ा मुद्दा है, जिसपर पीएम ताकाइची को तुरंत ध्यान देना होगा.
तादाशी एन्नो, टोक्यो की सोफिया यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर हैं. वह बताते हैं कि जुलाई में संसद के ऊपरी सदन के लिए हुए चुनाव में मतदाताओं ने एलडीपी के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. पहले से ही अल्पमत सरकार चला रही पार्टी के लिए यह नतीजा बेहद खराब था. यही नतीजा आखिरकार इशिबा के कार्यकाल खत्म होने की वजह बना.
तादाशी एन्नो ने बताया, "लोगों ने अर्थव्यवस्था की हालत, कमजोर मुद्रा (येन) और बढ़ती कीमतों पर अपनी नाराजगी जताई है." एन्नो आगे बताते हैं कि एलडीपी और जेआईपी ने रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों के दाम घटाने पर चर्चा तो की है, लेकिन यह अभी साफ नहीं है कि ये प्रस्ताव कितनी जल्दी पास होंगे और लोगों को आर्थिक मुश्किलों से निजात दिलाने में कितने असरदार होंगे.
निकट भविष्य में एक और चुनौती अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा है. वह दक्षिण कोरिया जाने से पहले 27 अक्टूबर को टोक्यो पहुंचेंगे. जापान ने राष्ट्रपति ट्रंप को 550 अरब डॉलर के निवेश पैकेज से संतुष्ट कर दिया है, लेकिन टोक्यो को अब भी चिंता है कि वह और भी मांग कर सकते हैं.
इस विषय पर एन्नो ने कहा, "ट्रंप क्या करेंगे, यह अनुमान लगाना मुश्किल है. सुरक्षा के मोर्चे पर, जापान ने 2022 में रक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का दो फीसदी खर्च करने का वादा करके बड़ा नीतिगत बदलाव किया है. हालांकि, ऐसा महसूस होता है कि अमेरिका चाहता है कि जापान को इस मामले में और अधिक कदम उठाने की जरूरत है. मुझे लगता है कि अमेरिका इसी बात को लेकर जापान पर नए दबाव डाल सकता है."
एन्नो ने अनुमान जताया कि सरकार की मौजूदा वित्तीय स्थिति के कारण ऐसा करना मुश्किल हो सकता है. हालांकि, टोक्यो को यह अच्छी तरह पता है कि डॉनल्ड ट्रंप पहले भी अपनी मांगें न माने जाने पर जापान और दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगी देशों से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की धमकी दे चुके हैं. ऐसे में पीएम ताकाइची अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करेंगी, ताकि उन्हें इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई सीधी चेतावनी न मिले.
कानूनी तौर पर ताकाइची को 2028 के पतझड़ तक कोई आम चुनाव कराने की जरूरत नहीं है. अनुमान है कि वह इस समय का उपयोग करते हुए जेआईपी के साथ अपने गठबंधन के दम पर मुख्य समस्याओं को दूर करने और प्रमुख सरकारी कार्यों को पूरा करने की कोशिश करेंगी. इनमें सबसे महत्वपूर्ण वह बजट है, जिसे फरवरी के अंत तक हर हाल में मंजूरी दिलानी है. इसके लिए प्रधानमंत्री को सहयोग की जरूरत होगी.
हालांकि, वह बिना बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व कर रही हैं. इसलिए, एकजुट विपक्ष उनके लिए राजनीतिक तौर पर मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
अपनी मांग पूरी कराना चाहता है गठबंधन सहयोगी
गठबंधन राजनीति पर एन्नो ने बताया, "जेआईपी के पास कोई कैबिनेट सदस्य नहीं है. इसलिए, यह स्पष्ट है कि वह एलडीपी के साथ अपने गठबंधन में यह चाहती है कि उसकी बातें भी मानी जाएं. इससे गठबंधन का भविष्य डवांडोल हो सकता है. अगर जेआईपी अपनी कुछ नीतियों को लागू करना चाहती है, तो वह एलडीपी के साथ बनी रहेगी. हालांकि, मुझे नहीं लगता कि यह गठबंधन लंबे समय तक चलेगा."
किंग्स्टन भी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने कहा, "जेआईपी भी चुनावों में एलडीपी की मदद नहीं कर पाएगी, जैसा कि उसके पिछले गठबंधन साथी कोमेइटो ने किया था. मेरा अनुमान है कि अगले चुनाव में इसकी वजह से एलडीपी को अपनी 20 फीसदी सीटें गंवानी पड़ सकती है."
जापान में राजनीतिक स्थिरता पर बात करते हुए किंग्स्टन ने जोड़ा, "मेरा आकलन है कि यह नई सरकार लगभग एक साल तक ही चल पाएगी. जापान की राजनीति अब फिर से उसी दौर में लौट रही है जहां प्रधानमंत्री को एक साल के भीतर ही पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. आने वाले समय के लिए अगर कोई एक बात पूरी तरह से निश्चित तौर पर दिख रही है, तो वह है राजनीतिक अस्थिरता."