क्या फ्रांस की आर्थिक उथल-पुथल यूरोजोन का संकट बढ़ा सकती है?

सरकारी खर्चों में कटौती करने के लिए सख्त उपायों को लागू नहीं कर पाने के कारण यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, फ्रांस की सरकार बीते दिनों गिर गई. जिसके बाद देश का कर्ज नियंत्रण से बाहर होने का डर बढ़ गया है;

Update: 2025-09-10 10:45 GMT

सरकारी खर्चों में कटौती करने के लिए सख्त उपायों को लागू नहीं कर पाने के कारण यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, फ्रांस की सरकार बीते दिनों गिर गई. जिसके बाद देश का कर्ज नियंत्रण से बाहर होने का डर बढ़ गया है.

सोमवार, 8 सितंबर को फ्रांस के संसद में विश्वास मत हारने से ठीक पहले प्रधानमंत्री, फ्रांसोआ बेयरु ने चेतावनी दी कि देश की वित्तीय हालत इतनी खराब है कि उसका "जीवित रह पाना” भी खतरे में पड़ सकता है.

बेयरु ने सांसदों से कहा, "आपके पास सरकार गिराने की ताकत जरूर है लेकिन हकीकत मिटाने की ताकत नही है. सच तो यह है कि यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ पहले से ही असहनीय है और यह और भारी व महंगा होता ही जाएगा.”

अब आगे क्या होगा, यह तो साफ नहीं है. पर फिलहाल मौजूदा संकट का राजनीतिक पहलू यही है कि क्या धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली की मांग के अनुसार नए चुनाव कराए जाएंगे या फिर राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों फिर से एक अल्पमत सरकार बनाने में सफल हो जाएंगे.

आर्थिक दृष्टि से बात की जाए तो फ्रांस, किसी भी अन्य यूरोपीय संघ के देश के मुकाबले सबसे ज्यादा राष्ट्रीय कर्ज में डूबा हुआ है. इसका कुल राष्ट्रीय कर्ज लगभग 3.35 ट्रिलियन यूरो तक पहुंच चुका है. जो इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 113 फीसदी है. अनुमान है कि 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 125 फीसदी तक पहुंच जाएगा.

यूरोप में कर्जदारों का राजा

फ्रांस के कर्ज और जीडीपी का अंतर इतना ज्यादा है कि पूरे यूरोपीय संघ में केवल ग्रीस और इटली ही ऐसे देश हैं, जो फ्रांस से आगे है. इस साल भी फ्रांस का बजट घाटा 5.4 से 5.8 फीसदी रहने की उम्मीद है, जो कि यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में से सबसे ज्यादा है.

यूरोपीय संघ के लक्ष्य के अनुसार यानी बजट घाटे को 3 फीसदी तक लाने के लिए फ्रांस को खर्चों में भारी कटौती करने के लिए कड़े कदम जल्द ही उठाने होंगे. लेकिन फिलहाल राजनीतिक रूप से खर्चों में कटौती संभव नहीं है. इस वजह से वित्तीय बाजारों ने फ्रांस के बॉन्डों पर जोखिम के लिए प्रीमियम लगाना शुरू कर दिया है. जैसे कि जर्मन बॉन्ड पर ब्याज दर लगभग 2.7 फीसदी के करीब है, लेकिन फ्रांस को अपने कर्ज पर लगभग 3.5 फीसदी का ब्याज चुकाना पड़ रहा है.

इससे सवाल यह उठता है कि अगर यूरोजोन की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वित्तीय हालात बेकाबू होती है, तो क्या इससे यूरोप की साझी मुद्रा यानी यूरो की स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है?

जर्मनी के मानहाइम में स्थित जेडईडब्ल्यू लाइबनीस सेंटर फॉर यूरोपियन इकोनॉमिक रिसर्च के अर्थशास्त्री फ्रीडरिष हाइनमन कहते हैं, "हां, हमें चिंतित होना चाहिए. इस समय यूरोजोन स्थिर नहीं है.” हालांकि आने वाले कुछ महीनों में किसी नए अल्पकालिक कर्ज संकट को लेकर उन्होंने चिंता नहीं जताई.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "लेकिन हमें सोचना होगा कि यह हालात भविष्य में जाकर कौन-सा मोड़ लेंगे. जैसे कि पिछले कुछ वर्षों से फ्रांस जैसा बड़ा देश लगातार कर्ज के बोझ का सामना कर रहा था और अब राजनीतिक अस्थिरता का भी सामना करने लगा है.”

फ्रांस के अलावा कई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थायें भी बड़े स्तर पर अपने ऊपर कर्ज बढ़ा रही हैं और बाजार से अरबों जुटा रही है. जैसे कि इस साल जर्मनी, जापान और अमेरिका जैसे देशों को अपने खर्च पूरे करने के लिए नए सरकारी बॉन्ड जारी करने होंगे. और इस वजह से वैश्विक बॉन्ड बाजार पर दबाव बढ़ता जा रहा है.

फ्रीडरिष हाइनमन के मुताबिक, बाजारों में घबराहट ना होने या फ्रांसीसी बॉन्ड पर ब्याज दरों में और उछाल नहीं आने की एकमात्र वजह यह उम्मीद है कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी)आगे आकर फ्रांसीसी बॉन्ड खरीदेगा और बाजार को स्थिर बनाये रखने की कोशिश करेगा. हालांकि उनका मानना है कि यह उम्मीद गलत भी साबित हो सकती है क्योंकि ईसीबी को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए संभल के फैसला लेने होंगे.

फ्रांस की सरकारों के सामने लंबे समय से यह राजनीतिक दुविधा रही है कि जब भी वे खर्चों में कटौती या आर्थिक सुधारों का प्रस्ताव लाते हैं, तो वामपंथी और दक्षिणपंथी, दोनों ही पार्टियां इसका विरोध करने लगती हैं और अपने समर्थकों को इसके विरोध में सड़कों पर उतार देती हैं.

यूरोपीय आयोग और यूरोपीय केंद्रीय बैंकों पर दबाव

अब फ्रांस हर साल केवल ब्याज चुकाने में ही करीब 67 अरब यूरो खर्च कर रहा है. साथ ही, उस पर यह दबाव भी है कि उसने यूरोपीय संघ के नियमों के अनुसार धीरे-धीरे अपना घाटा कम करने का वादा किया हुआ है.

हालांकि हाइनमन का मानना है कि इस स्थिति की जिम्मेदारी आंशिक रूप से यूरोपीय आयोग पर भी है क्योंकि उसने "इन बिगड़ते हालातों को बढ़ावा दिया” है.

उनके अनुसार, "जब भी फ्रांस की बात आती थी, आयोग ने एक नहीं बल्कि दोनों आंखें बंद कर ली थी. यह राजनीतिक समझौते जनवादी ताकतों के मजबूत होने के डर से किए गए थे.” उन्होंने आगे कहा कि "फ्रांस पहले ही अपनी वित्तीय क्षमता को पार कर चुका है. हालांकि, जर्मनी इसके मुकाबले कहीं बेहतर स्थिति में है. उनके पास हालात बेहतर करने के लिए अभी भी मौका है.”

सुधार प्रक्रिया में अड़चन

हाइनमन के मुताबिक, फ्रांस को भी जर्मनी की तरह जल्द से जल्द बड़े कल्याणकारी सुधार लाने होंगे और साथ ही खर्चों में भी भारी कटौती करनी होगी. अगर ऐसा नहीं हो पता है तो फ्रांस के पास बस एक ही चारा बचेगा, जो कि टैक्स को बढ़ाना होगा. हालांकि, फ्रांस ने पहले से ही अपने नागरिकों और व्यवसायों पर भारी टैक्सों का बोझ डाल रखा है.

इसी कारण हाइनमन को लगता है कि फ्रांसीसी राजनीति कर्ज कम करने के लिए सभी दलों के बीच कोई सामंजस्य नहीं बैठा पाएगी. उनका कहा, "जब वाम और दक्षिण, दोनों तरफ के जनवादी दल लगातार मजबूत होते रहेंगे और बीच में सेंटर सिकुड़ती जाएगी तो मुझे नहीं लगता की कुछ बेहतर हो पायेगा. यही वजह है कि मैं फ्रांस को लेकर निराशावादी हूं और मुझे कोई समाधान नजर नहीं आता है.”

लंदन के कैपिटल इकोनॉमिक्स के मुख्य यूरोपीय अर्थशास्त्री, एंड्रयू कनिंघम का मानना है कि फिलहाल दूसरे यूरोपीय बाजारों पर इसका असर नियंत्रित है. उन्होंने अपने ग्राहकों को दिए नोट में लिखा, "अभी तक ज्यादातर समस्या फ्रांस तक ही सीमित लग रही हैं, बशर्ते कि फ्रांसीसी संकट बहुत बड़ा रूप ना लेले.”

हालांकि उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि हालात बिगड़ भी सकते हैं. जिसमें फ्रांस का संकट तेजी से बढ़ जाए और खतरा चारों ओर फैल जाए. कनिंघम के अनुसार, "फ्रांस यूरोजोन की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसके अपने पड़ोसियों के साथ गहरे व्यापारिक और वित्तीय रिश्ते हैं. और यह ईयू की एक प्रमुख राजनीतिक ताकत भी है. इसलिए फ्रांस का संकट यूरोपीय परियोजना पर भी सवाल खड़े कर सकता है.”

उन्होंने कहा, "हमें अगले एक-दो साल में इतने बड़े संकट की उम्मीद नहीं है. लेकिन अगर ऐसा हुआ तो खतरा कहीं ज्यादा बड़ा हो जाएगा और ऐसी स्थिति से निपटने के लिए यूरोपीय केंद्रीय बैंकों को आगे आना होगा.”

राजनीतिक संकट का समय गलत

फ्रांस में यह उथल-पुथल ऐसे समय में सामने आई है, जब यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच व्यापार नीति को लेकर टकराव चल रहा है. इसमें फ्रांस द्वारा प्रस्तावित अमेरिकी टेक कंपनियों पर ज्यादा टैक्स लगाने का मुद्दा भी शामिल है.

इस बीच यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में राजनीतिक गतिरोध के कारण ईयू का कमजोर दिखना बेहद गलत समय पर हो रहा है. हाइनमन के अनुसार, फ्रांस की राजनीति में कई नेता "दिल से ट्रंप समर्थक” हैं, खासकर राजनीतिक ध्रुवों यानी वाम और दक्षिणपंथी दोनों ही छोर पर.

उन्होंने चेतावनी दी है कि ऐसे नेता यूरोपीय आयोग पर दबाव बढ़ा सकते हैं कि वह ट्रंप के टैरिफ का जवाब यूरोपीय टैरिफ से दे. ऐसा कदम वास्तविक व्यापार युद्ध का खतरा बढ़ा देगा, जिससे फ्रांस के कर्ज संकट को और भी नुकसान पहुंच सकता है.


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