ये बनाम वो, हासिल आया शून्य

भाजपा के लोग ईमानदारी से इतिहास पढें तो उन्हें पता चलेगा कि इंडिया शब्द अंग्रेजों की देन नहीं है;

Update: 2023-09-07 02:55 GMT

- सर्वमित्रा सुरजन

भाजपा के लोग ईमानदारी से इतिहास पढें तो उन्हें पता चलेगा कि इंडिया शब्द अंग्रेजों की देन नहीं है। यूनान के इतिहासकार हेरोटोस ने 440 ईसा पूर्व इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने तुर्की और ईरान से इंडिया की तुलना करते हुए कहा था कि इंडिया स्वर्ग जैसा है। जहां की मिट्टी उपजाऊ है और जिस क्षेत्र में काफी ज्यादा आबादी रहती है।

गैरजरूरी मुद्दों के अंधेरे कुएं में एक बार फिर देश को धकेलने का काम सत्तारूढ़ भाजपा ने किया है। इस बार भारत बनाम इंडिया का मुद्दा खड़ा किया गया है। संविधान के आर्टिकल एक में इंडिया यानी भारत लिखा हुआ है। जिसका मतलब यही है कि इंडिया और भारत एक ही देश के दो नाम हैं, दोनों समानार्थी हैं, दोनों में कोई अंतर या भेद नहीं है। लेकिन भारत को मध्ययुग की मानसिक गुलामी में जकड़ने की कोशिश कर रहे लोगों को बिना भेदभाव की बातें कहां समझ आती हैं। उनके लिए तो सियासत का असल मकसद ही भेदभाव को बढ़ावा देना है, ताकि सत्ता हासिल हो सके। अंग्रेजों से फूट डालो और राज करो का यह गुर ऐसे लोगों ने बहुत अच्छे से सीखा है। खेद की बात ये है कि ऐसे लोगों को देश की 33 प्रतिशत जनता ने अपना मत दिया और अब उन्हें लगता है कि देश के भाग्यविधाता केवल वही हैं। देश में भाषायी, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक अंतर होने के बावजूद हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध, जैन सब भाई-भाई ही कहलाते आए हैं, मगर अब इस भाईचारे में सियासत की सेंधमारी हो चुकी है।

भेदभाव का यह दायरा एक ही राज्य के बीच दो समुदायों में खड़ा हो चुका है। इसी वजह से मणिपुर पांच महीनों से सुलग रहा है। गृहयुद्ध जैसे हालात वहां बन गए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री को हटाने या राष्ट्रपति शासन लागू करने की जगह उन संपादकों, पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज हो रही है, जो मणिपुर की सच्चाई जानने की कोशिश कर रहे हैं। देश में एक के बनाम दूसरे को खड़ा करने का कितना घातक असर हो चुका है, ये अभी देश के लोगों को समझ नहीं आ रहा है। जब अमृतकाल का खुमार उतरेगा, तब पता चलेगा कि जिसे अमृत समझ कर हर-हर, घर-घर के नारे लगा रहे थे, वो असल में विष जैसा असर कर रहा है। अब तक देश को बदलने की सनक राष्ट्रवाद की खाल ओढ़ाकर पेश की जा रही थी। अब देश का नाम ही बदला जा रहा है और जो इसके विरोध में कुछ बोल रहा है, उसे देशविरोधी कहा जा रहा है। एक और एक ग्यारह होते हैं, लेकिन यहां एक बनाम एक करके सब कुछ शून्य किया जा रहा है।

हिंदुत्व बनाम इस्लाम, हिंदी बनाम अन्य भारतीय भाषाएं, उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत, सनातन बनाम द्रविड़, श्मशान बनाम कब्रिस्तान, जय श्रीराम बनाम अल्लाह हू अकबर, कुकी बनाम मैतेई, गांधी बनाम भगत सिंह, नेहरू बनाम पटेल, शाकाहार बनाम मांसाहार, और अब इंडिया बनाम भारत। लगता है सहअस्तित्व की सारी विरासत को ध्वस्त करने का प्रण भाजपा ने ले लिया है।

हिंदुस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि यहां बाहर से बहुत लोग आए, और सब दूध में मिसरी की तरह घुल-मिल गए। इस सुंदर देश की तुलना महासागर से अकारण नहीं की जाती है। जैसे सागर में सारी नदियां आकर एक हो जाती हैं, प्रकृति के इसी सुंदर सिद्धांत को हिंदुस्तान ने सच करके दिखाया। बड़ी-बड़ी सभ्यताएं नष्ट हो गई, मगर हिंदुस्तान बचा रहा। गुलाम हुआ, विभाजन का शिकार हुआ, लेकिन फिर भी बचा रहा, क्योंकि अनेकता में एकता की प्राणवायु को हमारे पुरखों ने कभी खत्म नहीं होने दिया। आज उसी प्राणवायु को बाधित किया जा रहा है और दावा है कि ये सब देशप्रेम के नाम पर हो रहा है। क्या जिससे हम प्यार करते हैं, कभी उसके जीवनस्रोत को बंद कर सकते हैं।

लेकिन अभी वही हो रहा है। हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति नदी की भांति अविरल बहती रहे, तभी बच पाएगी, राष्ट्रवाद का बांध उसे गंदले तालाब जैसा बना देगा। इस वक्त इसी बांध में भारत की सदानीरा विरासत को रोका जा रहा है वो भी इसलिए ताकि सत्ता मिल सके। भाजपा को विचार करना चाहिए कि वह किस तरह के पानी में अपना कमल खिलाना चाहती है। सत्ता तो उसे 1996 में भी हासिल हुई थी, और 2014 में भी, अगर जनता की मर्जी हुई तो 2024 में भी भाजपा को सत्ता पर बिठाएगी और नहीं हुई तो हटा देगी। लोकतंत्र के इस चलन को ऐसे ही चलते रहना चाहिए। मगर अभी श्री मोदी को इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस, जिसे संक्षिप्त में इंडिया कहा गया, उससे शायद खौफ हो रहा है। इसलिए उन्होंने पहले इंडिया को इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन से जोड़ा, फिर परिवारवाद क्विट इंडिया जैसे नारे लगाए और अब इंडिया शब्द को औपचारिक पत्रों से हटाने की खबरें सामने आई हैं।

राष्ट्रपति भवन से जी-20 सम्मेलन के मौके पर 9 सितंबर को एक औपचारिक रात्रिभोज का आयोजन किया गया है। इसके निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया नहीं प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है। इसी तरह आसियान सम्मेलन के लिए जारी बुकलेट में प्रधानमंत्री मोदी को इंडिया की बजाय भारत के प्रधानमंत्री लिखा गया है। जबकि विदेशों में देश की पहचान भारत से अधिक इंडिया के रूप में होती है। अब कहा जा रहा है कि संसद के विशेष सत्र में इंडिया नाम हटाने का विधेयक पेश किया जाएगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों इंडिया की जगह भारत बोलने का आह्वान किया। फिर भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने संविधान में संशोधन कर इंडिया की जगह भारत शब्द करने की मांग की है। श्री यादव का कहना है कि इंडिया को अंग्रेज गाली की तरह इस्तेमाल करते थे। उनसे पहले भाजपा के राज्यसभा सदस्य नरेश बंसल ने इंडिया शब्द को हटाकर भारत शब्द के इस्तेमाल की मांग की थी। उनका कहना था कि इंडिया शब्द औपनिवेशिक दासता का प्रतीक है।

अगर भाजपा के लोग ईमानदारी से इतिहास पढें़ तो उन्हें पता चलेगा कि इंडिया शब्द अंग्रेजों की देन नहीं है। यूनान के इतिहासकार हेरोटोस ने 440 ईसा पूर्व इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने तुर्की और ईरान से इंडिया की तुलना करते हुए कहा था कि इंडिया स्वर्ग जैसा है। जहां की मिट्टी उपजाऊ है और जिस क्षेत्र में काफी ज्यादा आबादी रहती है।

वर्ल्ड हिस्ट्री वेबसाइट के मुताबिक 300 ईसा पूर्व पहली बार यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने सिंधु नदी के पार के इलाके के लिए इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया था। अंग्रेजों के लिए भी इंडिया बोलना आसान था, क्योंकि अंग्रेजी में भ का उच्चारण नहीं है। लेकिन भाजपा इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, उपनिवेशवाद और देशप्रेम से जोड़कर देश की डिक्शनरी से हटाने की कवायद में लगी है और इसके लिए जो भी तर्क दिए जा रहे हैं, उन्हें केवल कुतर्कों की श्रेणी में ही रखा जा सकता है। भाजपा के इस खेल में अमिताभ बच्चन और वीरेन्द्र सहवाग जैसे कुछ नामी लोग भी शामिल हो चुके हैं, ताकि जनता को भरमाने में आसानी हो। मगर जनता को याद रखना चाहिए कि उसका जीवन संविधान के कारण ही आसान बना रहेगा, देश का नाम बदलने से नहीं। और भाजपा के लोग बार-बार संविधान बदलने के इरादे जतला रहे हैं।

15 अगस्त को पीएम मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने 'देयर इज़ ए केस फॉर वी द पीपल टू इंब्रेस अ न्यू कॉस्टिट्यूशन' शीर्षक के लेख में ये सलाह व्यक्त कर दी कि अब संविधान को बदल देना चाहिए। इससे पहले 2017 में, मोदी सरकार के केंद्रीय राज्य मंत्री अनंत हेगड़े, ने कहा था कि भाजपा 'संविधान बदलने' के लिए सत्ता में आई है और 'निकट भविष्य' में ऐसा किया जाएगा। और अब ऐसा लग रहा है कि इस दिशा में कई कदम उठाए जा चुके हैं। देश का नाम केवल भारत तक सीमित करने में भाजपा बहुमत के कारण सफल भी हो जाए, तो भी इसका कुछ अच्छा संदेश दुनिया में नहीं जाएगा। अब तक शहरों, सड़कों, स्टेशनों का नाम भाजपा ने बदला, अब उसे इंडिया शब्द से राजनैतिक उलझन हो रही है, तो देश का नाम बदलने चली है। लेकिन इससे हासिल क्या होगा, ये विचार 9 सालों से सत्ता में बैठे लोगों को करना चाहिए।

Full View

Tags:    

Similar News