एमबीबीएस की द्वितीय काउंसिलिंग में शामिल होगी प्रिंसी

हाईकोर्ट ने अपने प्रिन्सी मेश्राम के इस मामले में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता चूंकि अनुसूचित जाति की शालेय शिक्षा पूर्ण कर चुकी एक बालिग और बहुमुखी प्रतिभा वाली छात्रा है;

Update: 2017-09-04 13:07 GMT

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने अपने प्रिन्सी मेश्राम के इस मामले में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता चूंकि अनुसूचित जाति की शालेय शिक्षा पूर्ण कर चुकी एक बालिग और बहुमुखी प्रतिभा वाली छात्रा है। जिसकी प्रगति के लिए राज्य शासन के नीति-निर्देश व सिद्धांतों के तहत सहानुभूतिपूर्वक सपोर्ट किया जाना न्यायोचित होगा। हमारे संविधान के भाग-3 में भी समानता का अधिकार सबके लिए लागू है। इसलिए उसके द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अब दूसरी काउन्सिलिंग और आगे की सभी काउन्सिलिंग में भाग लेने हेतु विधिवत् स्वीकृति न्यायोचित है।

रायगढ़ जिले की कु.प्रिन्सी मेश्राम को एमबीबीएस द्वितीय की काउन्सिलिंग में भाग लेने की अनुमति हाईकोर्ट ने दे दी है। प्रिन्सी मेश्राम को जाति प्रमाण पत्र काउन्सिलिंग आरंभ होने की तिथि के बाद जारी होने आधार पर काउन्सिलिंग में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई थी। काउन्सिलिंग से बाहर कर दिए जाने से व्यथित होकर प्रिन्सी मेश्राम ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट-याचिका दायर की।  याचिका की सुनवाई 22 अगस्त को चीफ जस्टिा टी.बी.एन.राधाकृष्णन् एवं न्यायमूर्ति शरद कुमार गुप्ता की युगलपीठ में हुई।

याचिका में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ती प्रिन्सी मेश्राम छत्तीसगढ़ की निवासी है, जिसके द्वारा राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा में अनुसूचित जाति संवर्ग से आवेदन किया गया था। उपरोक्त प्रवेश परीक्षा में याचिकाकर्ता, अनुसूचित जाति संवर्ग में 3500 वीं रैन्क से उत्तीर्ण हुई। प्रिन्सी मेश्राम के द्वारा एमबीबीएस प्रथम वर्ष में प्रवेश हेतु अपना पंजीयन कराया था। पंजीयन की अंतिम तिथि 22 जुलाई 2017 निर्धारित थी। पंजीयन के उपरान्त याचिकाकर्ती प्रिन्सी मेश्राम को शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय, राजनांदगांव में अंतिम आबंटन प्रदान किया गया था। इसी दौरान तहसीलदार रायगढ़ द्वारा 24 जुलाई को अनुसूचित जाति का सामाजिक प्रास्थिति प्रमाण पत्र जारी किया गया था।

जिसके आधार पर याचिकाकर्ती द्वारा राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा की काउन्सिलिंग में उपस्थित हुई थी, लेकिन प्राधिकारियों द्वारा यह कहते हुए दस्तावेजी सत्यापन एवं काउन्सिलिंग नहीं कराया गया कि पंजीकरण की अंतिम तिथि 22 जुलाई है और जाति प्रमाण पत्र जारी होने का दिनांक 24 जुलाई है।  प्रिंसी के अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और नरेन्द्र मेहेर ने दलील दी कि जाति प्रमाण पत्र एवं अन्य संबंधित दस्तावेजी के सत्यापन हेतु अंतिम तिथि 29 जुलाई निर्धारित थी, जबकि प्रिंसी मेश्राम को जाति प्रमाण पत्र 24 जुलाई को ही जारी हो चुका था, जिसके आधार पर उसे प्रथम काउन्सिलिंग में से बाहर निकाला जाना अनुचित है। उच्च न्यायालय की डिवीजन बेन्च ने तथ्यों का अवलोकन किया और याचिका की सुनवाई कर उसका निराकरण इस निर्देश के साथ किया कि याचिकाकर्ती प्रिंसी मेश्राम की द्वितीय काउन्सिलिंग में एवं उसके बाद आयोजित किए जाने वाले आगामी समस्त काउन्सिलिंग में भाग लेने हेतु अनुमति प्रदान करे, क्योंकि वह जाति सत्यापन संबंधी अपनी वांछित अनुचित जाति का जाति प्रमाण पत्र विधिवत् प्रस्तुत कर चुकी है।

पुनरीक्षित वेतनमान से वंचित नहीं किए जा सकते व्याख्याता पंचायत

बीएड नहीं करने पर पुनरीक्षित वेतनमान वापस लेने के आदेश का हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए अंतरिम निर्देश दिया है कि आगामी सुनवाई तक याचिकाकर्ता की वेतन एवं अन्य लाभ यथावत जारी रहेगा। याचिकाकर्ता सत्यनारायण तिवारी एवं महेश्वर प्रसाद द्विवेदी ने अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव के माध्यम से याचिका प्रस्तुत कर बताया कि वे कबीरधाम में व्याख्याता के पद पर कार्यरत है उनकी नियुक्ति शिक्षा कर्मी वर्ग-3 के पद पर हुई थी एवं उनके द्वारा विधिवत् अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर व्याख्याता पंचायत के पद पर चयन किया गया एवं नियुक् ित दी गई। दो वर्ष की परीविक्षा अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें नियमित वेतनमान दिया गया एवं उसके पश्चात उन्हें पुनरीक्षित वेतनमान दिया गया। किंतु 8 अपै्रल 2017 को पंचायत विभाग के एक परिपत्र के अनुसार जो व्याख्याता पंचायत बीएड उत्तीर्ण नहीं है।

उन्हें नियमित वेतनमान वार्षिक वेतनवृद्धि एवं पुनरीक्षित वेतनमान की पात्रता से वंचित कर दिया गया उक्त निर्देश के आधार पर जिला पंचायत को पुनरीक्षित वेतनमान का लाभ वापस ले लिया जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुुनौती दी। छत्तीसगढ़ पंचायत शिक्षा कर्मी भर्ती तथा सेवा की शर्ते नियम 2017 के तहत बीएड प्रशिक्षित न होने पर नॉन बीएड को नियुक्ति लेने का प्रावधान है इस प्रकार याचिकाकर्ता को उक्त प्रावधान के तहत बीएड से छूट देकर नियुक्ति दी गई है एवं अब बीएड होने के आधार पर वेतनवृद्धि, पुनरीक्षित वेतनमान वापस लेना सेवा भर्ती नियम के विपरीत है। हाईकोर्ट ने दलील स्वीकार करते हुए शासन एवं जिला पंचायत को नोटिस जारी कर अंतरिम निर्देश दिया है कि आगामी सुनवाई तक याचिकाकर्ता की वेतन एवं अन्य लाभ मिल रहा है उसे कटौती न की जाए एवं यह यथावत जारी रखा जाए।

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