पंचायती राज का ताना बाना और सीईओ का तुगलकी फरमान
सोमनी, राजनांदगांव ! क्या प्रशासन द्वारा सरकारी स्कूल के अहाता के भीतर (खेल मैदान) को ग्राम पंचायत के स्थावर सम्पत्ति रजिस्टर में दर्ज कराया जाना, उस पर अवैध कब्जा कर;
भ्रष्टाचार पर शह और मात का खेल
सोमनी, राजनांदगांव ! क्या प्रशासन द्वारा सरकारी स्कूल के अहाता के भीतर (खेल मैदान) को ग्राम पंचायत के स्थावर सम्पत्ति रजिस्टर में दर्ज कराया जाना, उस पर अवैध कब्जा कर उसे अवैधानिक रूप से व्यावसायिक परिसर में बदला जाना कोई नवाचार है, यदि यह नवाचार है तो क्या छत्तीसगढ के लिए प्रशासन की एक नई आदर्श व्यवस्था सिद्ध हो सकती है प्रदेश का हर पंचायत क्यों न इसका अनुशरण करने पर तत्पर हो ? जब कथित अवैध निर्माण के भ्रष्टाचार को विलोपित करने ऐसे नये आदर्श की स्थापना की कोशिश प्रशासनिक स्तर पर हो तो क्या यह चकित करने वाला नही है ? जी हां शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला सोमनी के शाला अहाता के भीतर खसरा नम्बर 190/2 में एक पूर्व सरपंच ने ऐसा कर दिखया, तो प्रशासन ने उस कथित अवैधानिक व्यावसायिक परिसर और भ्रष्टाचार को विलोपित करने में तत्परता प्रदर्शित की है। शिक्षा सचिव ने पूर्व में शासकीय शालाओं की क्रीडा भूमि को सुरक्षित एवं संरक्षित करने हेतु स्पस्ट निर्देश दिया था इस हेतु प्रदेश के समस्त जिले के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों, जिला शिक्षा अधिकारीयों को आदेश का पालन करने हेतु परिपत्र प्रेषित किया था। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार शा. उ. मा. शाला सोमनी संकूल भूमि खसरा न. 190/2 पर पूर्व सरपंच द्वारा निर्माण कार्य कराने के परिपेक्ष में प्राचार्य एवं जिला शिक्षा अधिकारी ने अनुमति नहीं दी। इसकी उपेक्षा करते हुए अवैधानिक रूप से व्यावसायिक परिसर का निर्माण कराया गया जो कि लोक हित में नहीं हैं।
नजर अंदाज...
ज्ञात हो कि अनुविभागीय अधिकारी राजस्व राजनांदगांव में पंचायत के स्थावर संपत्ति रजिस्टर में दर्ज करने जिला पंचायत सी ई ओ को प्रतिवेदित किया है। इस प्रतिवेदन की छाया में उक्त अवैध निर्माण कार्यो में किये गये भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं को नजरअंदाज कर दिया गया है।
वसुली तो हुई पर खाते में जमा नहीं...
क्या ऐसा कहीं होता है कि ग्राम पंचायत के नाम पर स्कूल मैदान पर अवैध चौबीस दुकानों का निर्माण कर बांट दिया गया हो। तीन कर्मचारियों के जांच दल ने निर्माण व आबंटन से संबंधित विधिमान्य दस्तावेज ग्राम पंचायत में नहीं होना एवं वसुली गई राशि ग्राम पंचायत के खाते में उल्लेख ही नहीं है।
तुगलकी फरमान...
यह है पंचायती राज का ताना बाना और उस पर प्रशासन के जिला पंचायत के सी ई ओ का तुगलकी फरमान कि ग्राम पंचायत सोमनी में निर्मित सभी व्यावसायिक परिसर की प्रविष्टि ग्राम पंचायत के स्थावर संपत्ति में दर्ज कराकर नये सिरे से किराया निर्धारित कर वसुल किया जावे।
जांच हुई पर स्कूल भूमि विलोपित...
उल्लेखनीय है कि खसरा नं. 190/2 शा. उ.मा. शाला सोमनी के भूमि में चौबीस दुकानें निर्मित है अधिकारियों ने कथित कूट जांच और निर्देश में स्कूल भूमि को ही विलोपित कर दिया है। निर्देश में पूर्व में सन् 2005 - 06 में बने दुकानों के साथ इन चौबीस दुकानों को जोडकर कुल 81 दुकानें बना दी गयी है जो भ्रामक एवं गुमराह करने वाली है। यह तथाकथित निर्देश सोमनी में ही नहीं बल्कि अंचल में जनचर्चा का विषय है।
ज्ञात हो कि उक्त चौबीस दुकानदारों से एक - एक लाख रूपये अनुबंध पत्र (किरायानामा )के माध्यम से लिया गया है जिससे किराया 400 सौ रूपये प्रतिमाह किराया की राशि में समायोजित की जायेगी अर्थात बीस साल दस माह का किराया एडवांश में वसुल किया गया है । इसके साथ ही पंचायत की सुरक्षा निधी के रूप मे प्रति किरायादारों से दस - दस हजार रूपये लिये गये है जो पंचायत के खाते में जमा रहेगा अनुबंध में उल्लेख है। इस प्रकार कुल छब्बीस लाख चालिस हजार रूपये लिये गये है जिसकी रसीद भी दी गयी है। सूचना के अधिकार के तहत जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत सोमनी द्वारा मनी रसीद बुक जारी ही नहीं किया गया है एैसी स्थिति में रसीद की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगता है। वसुली गई समस्त राशि पंचायत के खाते में जमा ही नहीं की गई है। साथ ही दुकानदारों से किराया की राशि देने के लिये दबाव बनाया जा रहा है जबकि उनकी राशि पूर्व में दी जा चुकी है जिसका दस्तावेज देखा जा सकता है। पूर्व सरपंच एवं उपसरपंच ने स्वयं ही कैश बुक एवं अन्य दस्तावेज कार्यवाही पंजी स्वयं तैयार कर संधारित किया गया है। ग्राम पंचायत सचिव द्वारा कोई दस्तावेज संधारित एवं प्रमाणित नहीं है
विशेष बात यह है कि जिला पंचायत के सी ई ओ द्वारा उक्त प्रकरण की जांच हेतु पांच सदस्यीय जांच दल का गठन किया गया है । जांच दल के तीन सदस्य 13 अप्रैल को जांच करने ग्राम पंचायत भवन पहुचे। सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार जांच के दौरान कतिपय अनाधिकृत लोगों के द्वारा जांच को प्रभावित करने का प्रयास किया गया तथा पंचायत सचिव के उपर चौबीस दुकानों को पंचायत के स्थावर संपत्ति मे दर्ज करने का दबाव बनाया गया। सचिव अपने कार्य के प्रति तटस्थ एवं निस्पक्ष रही जिससे उनका कुप्रयास विफल रहा।