शरद पवार की एनसीपी को अपने पास रखने की कठिन चुनौती

शरद पवार को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए, भारत के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में उनकी स्थिति क्या है, क्या वह अभी भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख और संयुक्तविपक्ष के पितामह हैं;

Update: 2023-07-06 01:17 GMT

- सुशील कुट्टी

दांव पर है शरद पवार की राजनीतिक स्थिति और कौशल। शरद पवार को भारतीय राजनीति का सबसे पुराना नेता माना जाता है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शरद पवार को अपने 'राजनीतिक गुरु' के रूप में स्वीकार करते हैं। यह वही 'चेला/शिष्य' हैं, जिन्होंने शरद पवार को धोखा दिया है और महाराष्ट्र के बुजुर्ग नेता भूलने या माफ करने के मूड में नहीं हैं।

शरद पवार को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए, भारत के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में उनकी स्थिति क्या है, क्या वह अभी भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख और संयुक्तविपक्ष के पितामह हैं? ये सब आज के ज्वलंत सवाल हैं। राकांपा संस्थापक ने तीन महीने के भीतर खंडित राकांपा को उसके विभाजन-पूर्व गौरव को बहाल करने का वायदा किया है। क्या यह स्वीकारोक्ति नहीं है कि राकांपा का विभाजन पूर्ण और अंतिम है? चाचा पवार और भतीजे पवार एक ही कपड़े से बने हैं और यह संभावना नहीं है कि उनमें से कोई भी दूसरे के आग्रह पर पीछे हट जायेंगे।

हालांकि, बड़े पवार विभाजन के बाद कमज़ोर स्थिति में हैं। उनके बयान उन्हें धोखा देते हैं। उदाहरण के लिए, शरद पवार का कहना है कि कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद अपने पास रखना चाहिए क्योंकि एमवीए में कांग्रेस के विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा है। क्या यह स्वीकारोक्ति नहीं है कि अजित पवार की एनसीपी के पास शरद पवार की एनसीपी से ज्यादा विधायक हैं? क्या इससे अजित पवार की राकांपा को स्वत: ही पार्टी का 'चिह्न' और पार्टी का 'झंडा' नहीं मिल जाना चाहिए?
शरद पवार कहते हैं, 'मेरी जानकारी के अनुसार, वर्तमान में कांग्रेस के पास सबसे अधिक संख्या (विधायक) हैं और अगर वे इसके लिए (एलओपी पद) मांगते हैं तो यह एक वैध मांग है।' क्या यह एनसीपी पर अजित पवार के दावे को मान्य नहीं करता है? अब शरद पवार का कहना है कि अजित पवार के साथ भाजपा खेमे में शामिल होने वाले कई एनसीपी विधायक उन्हें फोन कर रहे हैं और बता रहे हैं कि उन्होंने अपनी विचारधारा नहीं छोड़ी है और वे 'सही समय पर अपना रुख घोषित करेंगे।'

यह किसी भी विवाद में हारने वाले पक्ष की मानक रक्षा है। सच तो यह है कि सत्ता के बिना शरद पवार उतने ही असहाय और निराश हैं, जितने सत्ता के बिना अजित पवार। अगला सवाल यह है कि क्या अजित पवार और उनके आठ साथी दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता से बच पायेंगे? इस पर शरद पवार की राय टकराव वाला रुख अपनाने की नहीं है। वह 'गुमराह युवा' सिद्धांत में विश्वास करते हैं और ऐसी कठिनाइयों से निपटने के अपने अनुभव पर भरोसा करते हैं।

50 वर्षों के राजनीतिक अनुभव वाले अस्सी वर्षीय नेता का कहना है कि वह 'शक्ति प्रदर्शन' में विश्वास नहीं करते क्योंकि ताकत में ऊपर और नीचे जाने की आदत होती है। फिर उन्होंने पहले भी कई बार अपनी पार्टी में संतुलन बहाल किया है। शरद पवार की किताब में, जो लोग एनसीपी छोड़ चुके हैं वे 2024 में हारेंगे, और इसमें कोई दो राय नहीं है।

शरद पवार ज्यादातर विपक्ष की भाषा बोल रहे हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किस पार्टी के हैं और कौन से नेता के हैं। चाहे नीतीश कुमार हों या राहुल गांधी, आम धारणा यह है कि 2024 में 'लोग नरेंद्र मोदी को हराने के लिए वोट करेंगे' - कि 2024 की लड़ाई 'भारत के लोग बनाम नरेंद्र मोदी' होगी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितने राजनीतिक दल हैं।

काफी कमजोर हो गये और विभाजित पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार और अयोग्य ठहराये गये कांग्रेस सांसद राहुल गांधी दोनों का मानना है कि 2024 के आम चुनाव में 'जनता बनाम नरेंद्र मोदी' होगा। अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल सहित उनके साथियों का दलबदल गिनती में नहीं आता है। दलबदल करवाने और सामाजिक विघटन लाने के बावजूद, नरेंद्र मोदी विरोधी भावना, भाजपा विरोधी जनता का मूड सब कुछ रास्ते से हटा देगा।

शायद इसीलिए शरद पवार पुराने ढर्रे पर लौट आये हैं। वह लोगों से आमने-सामने मिल रहे हैं और जब सर्वोच्च नेता जमीनी स्तर के लोगों से आमने-सामने बात करते हैं, तो यह एक अलग तरह का समीकरण होता है। रसायन शास्त्र तत्काल सक्रिय होता है और प्रभावी रहता है। उन्होंने कहा कि-'3 जुलाई को मुझसे मिलने आये कुल लोगों में से लगभग 80 प्रतिशत युवा थे। ये युवा धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लिए काम करेंगे और हर संभव कोशिश करके महाराष्ट्र को मजबूत करेंगे।'

ऐसा महसूस हो रहा है कि अजित पवार, छगन भुजबल, प्रफुल्ल पटेल, दिलीप पाटिल, हसन मुश्रिफ, धनंजय मुंडो, धर्मराव बाबा अत्राम, अदिति तटकरे, संजय बंसोडे और अनिल पाटिल में राकांपा कार्यकर्ताओं और नाराज शरद पवार समर्थकों का सड़कों पर आने और सड़कों पर सामना करने का साहस नहीं होगा। सार्वजनिक बैठकों के मामले में यह वैसा ही अहसास है जैसा एकनाथ शिंदे के दलबदल के बाद बड़ी संख्या में शिवसेना विधायकों के साथ हुआ था।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अब विलंबित मुंबई नगर निगम चुनाव कराने को लेकर आशंकित और डरे हुए हैं। 3 जुलाई को, शरद पवार की बेटी और 'एनसीपी की कार्यकारी अध्यक्ष' सुप्रिया सुले ने 'पार्टी विरोधी गतिविधियों' के लिए प्रफुल्ल पटेल, सुनील तटकरे और अजित पवार को एनसीपी से निष्कासित कर दिया।

इसके साथ ही पार्टी के लिए जोरदार लड़ाई शुरू हो गई है। पार्टी के नाम की तो बात ही छोड़िए, पार्टी का चिह्न और पार्टी का झंडा भी दांव पर है। फिर दांव पर है शरद पवार की राजनीतिक स्थिति और कौशल। शरद पवार को भारतीय राजनीति का सबसे पुराना नेता माना जाता है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शरद पवार को अपने 'राजनीतिक गुरु' के रूप में स्वीकार करते हैं। यह वही 'चेला/शिष्य' हैं, जिन्होंने शरद पवार को धोखा दिया है और महाराष्ट्र के बुजुर्ग नेता भूलने या माफ करने के मूड में नहीं हैं।

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