विपक्ष के बहिर्गमन के बीच राज्यसभा ने नया सीईसी विधेयक पारित किया

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 मंगलवार को विपक्षी सदस्यों के वॉकआउट के बीच राज्यसभा में पारित हो गया;

Update: 2023-12-13 04:01 GMT

नई दिल्ली। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 मंगलवार को विपक्षी सदस्यों के वॉकआउट के बीच राज्यसभा में पारित हो गया।

विधेयक मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यालय की अवधि और चुनाव आयोग द्वारा व्यापार के लेनदेन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

विधेयक में चुनाव आयोग के सदस्यों का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री की एक समिति स्थापित करने का भी प्रस्ताव है।

विधेयक का उद्देश्य 2 मार्च के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना है, जिसमें कहा गया था कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के प्रधान न्यायाधीश की एक उच्च-शक्ति समिति सीईसी और ईसी का चयन करेेेगी।

यह विधेयक 10 अगस्त को मानसून सत्र के दौरान सदन में पेश किया गया था।

मंगलवार को विधेयक को विचार और पारित करने के लिए पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इसे इस साल मार्च के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर लाया गया है, जो एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आया था।

मेघवाल ने कहा कि विधेयक 1991 के अधिनियम को बदलने के लिए 10 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था और विचार और पारित होने के लिए लंबित था। 1991 के अधिनियम में सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति से संबंधित कोई खंड नहीं था।

मंत्री ने कहा कि अब तक नियुक्तियों के नाम सरकार तय करती थी, लेकिन अब एक खोज और चयन समिति का भी गठन किया गया है और वेतन से संबंधित मामलों को भी विधेयक में संशोधन के माध्यम से पेश किया गया है।

मंत्री ने आगे कहा कि विधेयक के जरिए सीईसी और ईसी के खिलाफ अपने कर्तव्यों का पालन करते समय की गई कार्रवाइयों के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू करने से सुरक्षा से संबंधित एक खंड भी पेश किया गया है।

इस बीच, कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि प्रस्तावित कानून पूरी तरह से संविधान की मूल भावना को अस्वीकार और उल्लंघन करता है जो अनुच्छेद 14 में निहित है।

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग हमेशा से स्‍वायत्त संस्थान रहा है, लेकिन यह विधेयक आयोग को पूरी तरह से कार्यपालिका के अधिकार के अधीन कर देता है और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से समाप्त कर देता है। कुल मिलाकर यह कानून एक "मृत बच्चे" की तरह है।

उन्होंने कहा कि नियुक्ति समिति एक ''खाली औपचारिकता'' बनकर रह गई है, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री और उनके द्वारा नामित सदस्य शामिल हैं।

सुरजेवाला ने रेखांकित किया कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव निकाय एकमात्र प्राधिकरण है और इसलिए इसे स्वतंत्र रहने की जरूरत है।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार "स्वतंत्र" चुनाव पैनल नहीं चाहती है।

कांग्रेस सांसद ने कहा कि प्रस्तावित कानून अनुचित कार्यकारी नियंत्रण, चुनावी निकाय यानी चुनाव आयोग पर पूर्ण कार्यकारी नियंत्रण को मजबूत करने का एक "गलत प्रयास" है।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि "प्रक्रिया मनमानी है, इरादा दुर्भावनापूर्ण है और परिणाम विनाशकारी है"।

सुरजेवाला ने कहा कि एक समय था, जब 'ईसी' शब्द का मतलब 'चुनावी विश्‍वसनीयता' होता था, लेकिन ''दुर्भाग्य से आपने इसे 'चुनावी अविश्‍वसनीयता' में बदलने का फैसला किया है।

इस बीच, कांग्रेस सांसद अमी याज्ञिक ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा, "हमारे संस्थान निष्पक्ष तरीके से काम करने के लिए बने हैं।"

याज्ञिक ने कहा कि यदि चुनाव आयोग यह नहीं देख पा रहा है कि चुनाव पारदर्शी तरीके से कराए जाएं, तब यह लोकतंत्र का घटक कहां रह गया?

उन्होंने कहा, "अगर कोई विधेयक संस्था को कमजोर करता है, तो हमारे पास एक जीवंत लोकतंत्र नहीं रहेगा।"

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