सुकमा हमले में तीन गांव के लोग थे शामिल
रायपुर ! सुकमा में हुये नक्सली हमले में तीन गांवों के लोग शामिल थे। अंग्रेजी के अखबार द हिंदू ने सीआरपीएफ के हवाले से यह दावा किया है।;
रायपुर ! सुकमा में हुये नक्सली हमले में तीन गांवों के लोग शामिल थे। अंग्रेजी के अखबार द हिंदू ने सीआरपीएफ के हवाले से यह दावा किया है। सुकमा के बुरकापाल में पिछले महीने माओवादियों के हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान मारे गये थे।
द हिंदू ने इस हमले की जांच में शामिल एक सीआरपीएफ अधिकारी के हवाले से दावा किया है कि बुरकापाल, चिंतागुफा और कासलपाड़ा गांव के ज्यादातर लोग हमले में अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल थे, अधिकारी की मानें तो ग्रामीणों ने हमलावर नक्सलियों को खाना और पनाह दी, उन्हें नक्सलियों के खौफ के चलते ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जांच रिपोर्ट के मुताबिक मुठभेड़ खत्म होने के बाद घायल नक्सलियों को कासलपाड़ा गांव के निवासियों ने चिकित्सा मदद पहुंचाई, सीआरपीएफ के सूत्रों का कहना है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में स्थानीय लोगों की इस तरह की भूमिका कोई नई बात नहीं है।
हालांकि स्थानीय ग्रामीणों ने इन आरोपों से इनकार किया हैण् बुर्कापाल गांव के सरपंच विजय दुला ने द हिंदू को बताया कि हमले के वक्त गांव में कोई मौजूद नहीं था। सभी लोग फसल कटाई के त्योहार बीजू पोंडम मनाने के लिए पास के जंगलों में गए थे। हमारे गांव से कोई गोलीबारी नहीं की गई, हम जब लौटे तो हमें गोलियों की आवाज सुनाई दी, लिहाजा हमने खुद को घरों में बंद कर लिया, हमले के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने चिंतागुफा गांव के पूर्व सरपंच को हमले में शामिल होने के आरोप में हिरासत में लिया था।
नक्सलियों ने दोरनापाल और जगरगुंडा के बीच निर्माणाधीन सडक़ में गश्त लगा रही सीआरपीएफ की टीम को निशाना बनाया था ये 56.किलोमीटर लंबी सडक़ पिछले 2 सालों से बन रही है इसके निर्माण के लिए 18 बार टेडर निकल चुका है, लेकिन कोई ठेकेदार इस काम का जिम्मा उठाने के लिए तैयार नहीं है। लिहाजा अब तक सिर्फ 10 किलोमीटर सडक़ ही बन पाई है, नक्सली पहले भी इस सडक़ पर सीआरपीएफ जवानों को निशाना बना चुके हैं, इस इलाके में संचार सुविधाओं की कमी सुरक्षा अभियानों में बड़ा रोड़ा हैं।
सीआरपीएफ की जांच में सामने आया है कि हमले के वक्त नक्सली सीआरपीएफ जवानों से तादाद में कहीं ज्यादा थे। कुछ जवानों को 20 मीटर तक की दूरी से निशाना बनाया गया, पेट्रोलिंग के वक्त सीआरपीएफ की ये टीम दो टीमों में बंटी थी, हर टीम में 36 जवान शामिल थे, इन दोनों टीमों को 4-4 समूहों में बांटा गया था। हर समूह 400-500 मीटर की दूरी पर गश्त लगा रहा था। नक्सलियों ने हमले के दौरान बड़ी तादाद में बच्चों, महिलाओं को बुजुर्गों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने पहले सडक़ के एक ओर तैनात जवानों पर गोलियां दागीं बाद में दूसरी टीम पर धावा किया। जिससे जवानों को संभलने का मौका नहीं मिल पाया।
विज ने खोले अहम राज
बुरकापाल में हुए माओवादी हमले को लेकर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आरके विज ने कई राज खोले हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सल ऑपरेशन की कमान संभाल चुके आर के विज ने कहा है कि जिस दिन बुरकापाल हमला हुआ था उस दिन सुबह तक मौके पर कोई भी माओवादी मौजूद नहीं था। विज के इस बयान से पहले यह दावा किया गया था कि बुरकापाल में पहले से ही सैकड़ों माओवादी छिपे हुये थे और इस हमले की तैयारी कई महीनों से चल रही थी।
उल्लेखनीय कि सुकमा जि़ले के बुरकापाल में नक्सलियों के एंबुश लगाकर सीआरपीएफ की रोड ओपनिंग पार्टी पर हमला किया जिसमें 25 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद खबर आई कि नक्सली इस हमले की ढाई महिने से तैयारी कर रहे थे। बुरकापाल में जब सुरक्षाबल प्रात: पुलिया के पास पहुंचे तो उस वक्त वहां माओवादी मौजूद नहीं थे। परंतु सुरक्षाबलों के लंबे समय तक वहां रूकने के कारण माओवादियों को न केवल उनकी खबर लग गई बल्कि वे एकजुट होकर बड़ी संख्या में चुपके से बुरकापाल तक पहुंच गये और सुरक्षाबलों को इसकी भनक तक नहीं लग सकी। चूंकि सुकमा के अंदरूनी क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की तैनाती नहीं है इसलिये घटना के बाद भागते समय उन्हें घेरा नहीं जा सका।
आईपीएस विज ने कहा है कि सरकार की सुरक्षा व विकास नीति में कोई दोष नहीं है, हाल ही में 8 मई की बैठक में विकास एवं सुरक्षाबलों की कार्रवाई में आक्रामकता लाने की बात कही गई है अर्थात् सभी कार्यों को मिशन.मोड में अंजाम दिया जाना जरूरी है उन्होंने कहा है कि सुरक्षाबलों की क्षमता में कोई कमी नहीं है। परंतु अपने प्रशिक्षण व तकनीक को और सुदृढ़ करना होगा। आक्रामक ऑपरेशनों में क्षेत्र व भाषा को जानने वाले स्थानीय बलों को साथ रखना होगा। विज ने कहा है कि सुकमा के अंदरूनी क्षेत्रों में परिवहन व संचार के साधन सीमित होने से रातो-रात सूचनाओं की गुणवत्ता में अत्यधिक वृद्धि होने की अपेक्षा करना अव्यवहारिक होगा परंतु इसमें सुधार के रास्ते हमेशा खुले रखने होंगे, सुरक्षाबलों को बढ़ाने के साथ-साथ उनकी रणनीतिक तैनाती पर भी ध्यान देना होगा ताकि माओवादियों के उन्मुक्त रूप से घूमने वाले क्षेत्र सीमित किये जा सके।
विज ने कहा कि सुकमा का चिंतलनार क्षेत्र माओवादियों की राजधानी के रूप में जाना जाता है। माओवादियों का बटालियन कमांडर हिड़मा इसी इलाके के पूवर्ती गांव का निवासी है। इसी क्षेत्र में माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के सदस्य भी डेरा डाले रहते हैं। सुकमा में माओवादियों के खिलाफ लड़ाई को महत्वपूर्ण बताते हुये विज ने कहा है कि यदि इस इलाके से माओवादियों के पांव उखडऩे लगेंगे तो निश्चय ही वे पूरी ताकत के साथ इसका प्रतिरोध करेंगे क्योंकि उनका आधार क्षेत्र उनके हाथ से निकलने लगेगा इसमें कोई दो राय नहीं कि माओवादियों के विरूद्ध अंतिम लड़ाई सुकमा में ही होगी और यह लड़ाई जीती भी जाएगी।