मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री मोदी की विलंबित प्रतिक्रिया दयनीय
उनके अंधभक्त भी परेशान हो रहे थे, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए मानो मणिपुर में हिंसा कोई खास बात नहीं थी;
- सुशील कुट्टी
निश्चित रूप से, क्या विपक्ष के इंडिया कार्ड के अनावरण से काम चल गया? यह अच्छा प्रश्न है। शायद इससे ही उनकी आवाज़ हरकत में आ गई। 'घटना' के वीडियो के अलावा, चाहे जिसने भी मोदीजी के कंठ खुलवाने में योगदान दिया हो। अचानक मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह उस मौन प्रधानमंत्री की बात दोहरा रहे थे जिनकी चुनावी मैदान पर दहाड़ किंवदंतियों में शुमार है।
उनके अंधभक्त भी परेशान हो रहे थे, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए मानो मणिपुर में हिंसा कोई खास बात नहीं थी। लेकिन आखिरकार, उसके कंठ का स्वरयंत्र शोथ बोल उठा। स्पष्ट हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी आवाज नहीं खोई है, और उनका कान भी अपने आस-पास की आवाज़ें सुनता है। अब तक तो यूरोपियन यूनियन की संसद को भी अच्छी ख़बर मिल गई होगी। मणिपुर की घृणित घटनाओं के अलावा एक और बात यह हुई कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भयानक अनुचित 'मौनव्रत' के साथ मणिपुर में भयानक घटनाओं पर पर्दा डाला।
दो महीने पहले मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न कर घुमाने की घटना हुई और उसका भयावह वीडियो पूरे देश ने जब तक देख नहीं लिया तब तक उन्हें शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई। उन्होंने अब जाकर इस घटना पर 'दर्द' व्यक्त किया है। तब से कुछ गिरफ़्तारियां की गई हैं। क्या उन्हें ऐसा लगता है कि मामला उन्हीं का है और उन्हें बहुत पहले ही मुख्यमंत्री बीरेन सिंह से कहना चाहिए था कि वे अपने पैर जमीन से हटा लें और कड़ी कार्रवाई करें?
अब पहली गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और कल को जाकर 'डबल इंजन की सरकार' पूरे प्रसारण और टीवी स्क्रीन पर 'मोदी है तो मुमकिन है' के नारे और ट्वीट के साथ सामने आयेगी। यह घिनौनी स्थिति है, लेकिन पिछले करीब पांच साल से चीजें ऐसी ही हैं। देशवासियों ने हमेशा पाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना उंगली हिलाये हस्ताक्षर करना पसंद करते हैं! जब यह स्पष्ट हो जाये कि अब और चुप्पी साध ली जायेगी तो भाजपा का चुनावी रथ थम जायेगा, तभी वह अपना मुंह खोलने के बारे में सोचेंगे।
निश्चित रूप से, क्या विपक्ष के इंडिया कार्ड के अनावरण से काम चल गया? यह अच्छा प्रश्न है। शायद इससे ही उनकी आवाज़ हरकत में आ गई। 'घटना' के वीडियो के अलावा, चाहे जिसने भी मोदीजी के कंठ खुलवाने में योगदान दिया हो। अचानक मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह उस मौन प्रधानमंत्री की बात दोहरा रहे थे जिनकी चुनावी मैदान पर दहाड़ किंवदंतियों में शुमार है।
सामूहिक हत्याओं से भी इस प्रधानमंत्री में गुस्सा, दु:ख, यहां तक कि हताशा नहीं आई है! जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी वह अलग नहीं थे। भोले-भाले मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए अपने भाषणों में नाटकीय विराम देना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आसान है। उनके प्यारे चीतों का एक के बाद एक मरना कोई मायने नहीं रखता। अपने प्राकृतिक आवास से दूर उनके दुखद अंत के बाद उनके बारे में एक शब्द भी नहीं कहा गया। वास्तव में जब एक अस्थिर चित्त वाला व्यक्ति जब भी कथानक खोता है तो एक खोल में समा जाता है। 'उन्हें ऐसी आखिर क्या बीमारी है?' यह राष्ट्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। 'पूछता है भारत!'
परसों शाम तक मणिपुर में महिलाओं को नंगे घुमाने का वीडियो भुला दिया जायेगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ को भी अब अपनी जुबान मिली है। देश के दो सबसे ताकतवर वीवीआईपी और ये गूंगे-बहरे भी नहीं! यह एक ईसाई चमत्कार है जिसे हिंदू मैतेई भी ईश्वरीय उपहार के रूप में स्वीकार करेंगे। इसके साथ ही मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने भी अपराधियों के लिए मौत की सजा की मांग की है। मानक घृणित राजनीति का इससे बड़ा नमूना क्या हो सकता है!
आखिरी बार बीरेन सिंह तब खड़े हुए थे और बोले थे जब उन्होंने पद छोड़ने और किसी बेहतर व्यक्ति को सत्ता की बागडोर देने से इंकार कर दिया था। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अनुकरण करना चाहिए। 'हमारे समाज में इस तरह के घृणित कृत्यों के लिए बिल्कुल कोई जगह नहीं है' एक ट्वीट पर बहुत अच्छा लग रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और उनके 'बॉस' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों को तो इस शर्मनाक घटना पर अपनी नौतिक जिम्मेदारी को ही आधार बनाकर अपने इस्तीफे दे देने चाहिए थे।
मणिपुर पुलिस ने 'परेशान करने वाले वीडियो' पर ध्यान दिया और जिसे 'स्वत: संज्ञान' कहा जा रहा है। परन्तु वैसा संज्ञान तो न यहां दिल्ली में मोदी नेतृत्व ने लिया है और न ही मणिपुर की बीरेन नेतृत्व ने। 'गहन जांच' भी होती है और बाकी सब कुछ, हिंसा और वारदात, 'पूरी तरह से' चल ही रहा होता है। कम से कम गृह मंत्री अमित शाह को अब तक यह पता होना चाहिए कि बॉस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपना मुंह खोले बिना मोदी शासन में कुछ भी नहीं होता है।
उन निर्दोष लोगों की संख्या के बारे में सोचें जिन्होंने अपनी जानें गंवाई- बलात्कार और सामूहिक बलात्कार, घर जला दिये गये, बच्चे अनाथ हो गये? वास्तव में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी मंत्रिपरिषद को अपने बॉस की तरह बहरे और गूंगे का अभिनय करना बंद कर देना चाहिए कम से कम उस समय जब बात करने और कार्य करने का समय हो। क्या वे नहीं जानते कि जब शासक छुट्टी लेते हैं तो लोग मरते जाते हैं? क्या वे यह भी नहीं जानते कि महिलाओं और लड़कियों को नग्न करके घुमाया जाता है जब प्रधानमंत्री उन लोगों के पीछे अपना वजन डालने से इंकार कर देते हैं जिनकी रक्षा के लिए उन्हें चुना गया था?
सुप्रीम कोर्ट को भूल जाइये। उसकी अपनी मजबूरियां हैं। सम्मानित न्यायाधीशों को बेटियों के 'भरतनाट्यम संगीत कार्यक्रम' में भाग लेना होगा। लेकिन प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद गीत और नृत्य के पीछे छिप नहीं सकते। इस तथ्य के दो महीने बाद 'सख्त कार्रवाई' का वायदा मात्र करना पूरी तरह से आपराधिक है। लोग जानना चाहते हैं कि मणिपुर राज्य सरकार और मोदी सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विशेष रूप से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए सजा की मात्रा क्या होगी? मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को सजा देने को उदाहरण बनाना चाहिए।
'महिलाओं को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना... बिल्कुल अस्वीकार्य है', भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'विशेषकर सांप्रदायिक संघर्ष के क्षेत्र में' जो ऐसा सूक्ष्म नहीं था कि दिखाई नहीं दिया। महिलाओं को सांप्रदायिक या धर्मनिरपेक्ष किसी भी माहौल में 'उपकरण' के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
यह देश महिलाओं को नग्न परेड कराने के लीक हुए वीडियो से ही चलता है, इससे हम सभी को परेशान होना चाहिए, यहां तक कि न्यायपालिका को भी, जिसे अपने न्यायसंगत हाथ का इस्तेमाल बहुत पहले ही करना चाहिए था, जैसा कि वे कहते हैं, और हम सभी आसानी से भूल भी जाते हैं। 'इस हमाम में सभी नंगे हैं।' इंडिया विपक्षी गठबंधन को इस पर ध्यान देना चाहिए और उसके अनुसार योजना बनानी चाहिए। 'भारत' को अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए।