ललित सुरजन की कलम से — पुस्तकों से लगाव
बाबूजी के पढ़ने का दायरा यूं तो बहुत विस्तृत था, लेकिन मुख्यत: वे हिन्दी व विश्व साहित्य तथा समकालीन राजनीति व राजनीतिक इतिहास में ज्यादा रुचि रखते थे।;
बाबूजी के पढ़ने का दायरा यूं तो बहुत विस्तृत था, लेकिन मुख्यत: वे हिन्दी व विश्व साहित्य तथा समकालीन राजनीति व राजनीतिक इतिहास में ज्यादा रुचि रखते थे। अंग्रेजी और हिन्दी में प्रकाशित लगभग हर महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति बाबूजी के पुस्तकालय में होती थी। बाद के बरसों में समकालीन घटनाचक्र पर उनका अध्ययन बढ़ते गया था तथा साहित्यिक पुस्तकों को चुनने, खरीदने का जिम्मा एक तरह से मैंने ही ले लिया था। अपनी पसंद की नई से नई पुस्तकों की तलाश में बाबूजी के संपर्क विभिन्न शहरों के श्रेष्ठ पुस्तक भंडारों से विकसित हो गए थे। जबलपुर में सुषमा साहित्य मंदिर के जोरावरमल जैन या जोरजी, यूनिवर्सल बुक डिपो के शेष नारायण राय या राय साहब जैसे प्रबुद्ध पुस्तक विक्रेता तो उनके मित्र ही थे। भोपाल में लायल बुक डिपो, इंदौर में रूपायन, बंबई में न्यू एण्ड सेकेण्ड हैण्ड बुक हाउस व दिल्ली में ऑक्सफोर्ड बुक कंपनी के साथ उनका उधारी खाता साल भर चलता रहता था।
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