पद्मश्री पाए मधु हंसमुख के गीतों ने झारखंड आंदोलन को दी थी नई धार

झारखंड मेंनागपुरी के प्रसिद्ध गायक मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने न केवल झारखंड आंदोलन को नई राह दिखाई, बल्कि झारखंड के लोग आज भी उनके गीतों पर मनोरंजन करते हुए खूब झूमते हैं;

Update: 2020-01-28 00:39 GMT

रांची। झारखंड मेंनागपुरी के प्रसिद्ध गायक मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने न केवल झारखंड आंदोलन को नई राह दिखाई, बल्कि झारखंड के लोग आज भी उनके गीतों पर मनोरंजन करते हुए खूब झूमते हैं।

हंसमुख भले ही उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए हों, मगर उन्होंने मात्र आठ वर्ष की उम्र से अपने गीतों के सहारे जिस सांस्कृतिक विकास की मशाल जलाई, उसकी रोशनी अभी भी कायम है। यही वजह है कि अब सरकार ने हंसमुख को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है।

झारखंड की सभ्यता और संस्कृति के साथ ही प्रकृति के रहस्यों को समेटे हंसमुख के गीतों मंे लोक परंपराएं समाहित रहती हैं। वर्ष 1948 में जन्मे हंसमुख कहते हैं कि उन्होंने अपने संगीत और गीत से जुड़े इस जीवन में दो प्रमुख अध्याय जोड़े हैं। उन्होंने कहा कि एक तो आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और रीति-रिवाज को जिंदा रखना और दूसरा झारखंड के लिए अलग राज्य का आंदोलन।

उन्होंने बताया कि इन दोनों मुद्दों के कालखंड अलग रहे। हंसमुख ने कहा, "जब मैं सात-आठ वर्ष का था, तब दो अगस्त 1956 को रातू प्रखंड के स्थापना कार्यक्रम में मुझे गाने का मौका मिला और तब से लेकर अब तक यह जारी है।"

झारखंड आंदोलन की हर छोटी-बड़ी सभा में उनके गीत नारे का रूप बनने लगे थे। राज्य बनने के बाद जब दर्द मिटा नहीं, तब भी उन्होंने उन समस्याओं को अपनी आवाज दी। 2007 में उनके द्वारा गाए गए गीत 'गांव छोड़ब नाहीं' काफी लोकप्रिय हुआ, जिसे देश-दुनिया के कई मंचों पर गाया जा चुका है।

मधु मंसूरी के नागपुरी गीतों का पहला एलबम 'दिल की अभिलाषा' वर्ष 1976 में रिलीज हुआ था। इसके बाद वर्ष 1982 में 'नागपुर कर कोरा' एलबम ने तो नागपुरी गीतों के क्षेत्र में धूम मचा दी।

मधु अब तक 3000 से अधिक मंचों पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। रांची के पास सिमलिया गांव में जन्मे हंसमुख न केवल एक अच्छे गायक हैं, बल्कि शानदार मांदर वादक और नर्तक भी हैं। उन्होंने पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा और पद्मश्री मुकुंद नायक के साथ मिलकर नागपुरी गीत-संगीत को विदेशों तक पहुंचाया और लोकप्रिय बनाया।

हंसमुख फिलहाल कई कला-संस्कृति संस्थाओं से जुड़े हैं। वे नागपुरी साहित्य संस्कृति मंच के उपाध्यक्ष भी हैं।

उन्होंने बताया, "पहले पिता से ही संगीत सीखना शुरू किया था। पहले मैं फिल्मी गाने और हिंदी भाषा में गीत गाता था। सीसीएल के अधिकारी ने 1978 में मुझे मातृभाषा नागपुरी में गाने को प्रेरित किया और इसके बाद नागपुरी में रुचि बढ़ गई।"

पुरस्कार मिलने की बात पर उन्होंने कहा, "कोई भी पुरस्कार पाने के बाद कलाकार को खुशी तो मिलती ही है, मगर झारखंड के लोगों और यहां के उन संगठनों का मैं सदैव ऋणी हूं, जिसने मुझे अब तक प्यार और दुलार दिया।"

Full View

Tags:    

Similar News