सूचना के अधिकार को कमजोर करने का कोई इरादा नहीं : जितेन्द्र सिंह
सरकार ने सूचना के अधिकार को कमजोर करने के विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए आज स्पष्ट किया कि वह शासन में अधिकतम पारदर्शिता को लेकर प्रतिबद्ध है;
नई दिल्ली । सरकार ने सूचना के अधिकार को कमजोर करने के विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए आज स्पष्ट किया कि वह शासन में अधिकतम पारदर्शिता को लेकर प्रतिबद्ध है और उसके पास छिपाने को कुछ भी नहीं है।
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में सूचना के अधिकार संशोधन विधेयक 2019 पर चर्चा का जवाब देते हुए यह स्पष्टीकरण दिया। बाद में सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया। हालाँकि विधेयक को मतविभाजन के बाद पारित करने के लिए सदन के समक्ष पेश किया गया। इसके पक्ष में 218 और विपक्ष में 79 मत पड़े।
डॉ. सिंह ने कहा कि मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आते ही ‘अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट कर दी थी। पारदर्शिता, नागरिकों के अधिकार, सरलीकरण, जनता को आसानी से सुलभ सूचना और संस्थाओं को सर्वाेच्च सम्मान इस सिद्धांत के प्रमुख तत्व हैं। उन्होंने कहा, “यह चौकीदार की सरकार है। हम हर चौकीदार को सशक्त करेंगे।”
उन्होंने कहा कि इसी कारण मोदी सरकार ने 1500 ऐसे कानून खत्म किये जिनकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह गयी थी। इसमें गजटेट अधिकारी से दस्तावेज़ों का सत्यापन कराने की अनिवार्यता समाप्त करना शामिल है। उन्होंने कहा कि सरकार ने डिजीटलीकरण किया है और सूचना के अधिकार के प्रयोग के लिए एक मोबाइल ऐप भी बनाया है। कोई भी व्यक्ति किसी भी समय सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँग सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि वे अधिकतम जानकारियों को ऑनलाइन वेबसाइटों पर डाल दें जिससे आरटीआई की आवश्यकता ही कम हो जाये।
डॉ. सिंह ने कहा कि संप्रग सरकार ने इस कानून को अधिक सशक्त बनाने के लिए नियम बनाने का कोई मार्ग नहीं छोड़ा था। उन्होंने कहा कि 2005 में यह कानून बनाते समय बहुत उत्साह में कहीं कुछ छूट गया था। उसी को वह ठीक करने के लिए संशोधन लाये हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने सूचना के अधिकार की स्वायत्तता के अधिकार का कोई हनन नहीं किया है। स्वायत्तता से जुड़ी धारा 12(4), सूचना आयुक्तों के चयन की धारा 12(3) में कोई बदलाव नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कानून में बदलाव को लेकर सत्ता पक्ष ही नहीं बल्कि व्यापक रूप से समाज के विभिन्न वर्ग बदलाव की जरूरत अनुभव कर रहे थे।
उन्होंने यह भी कहा कि सूचना के अधिकार को लेकर लंबित मुकदमाें की संख्या लगातार घट रही है और बीते वर्ष यह संख्या 13 हजार 855 रह गयी है।