डॉक्टरों के आधे से अधिक पद खाली, स्वास्थ्य सेवा बदहाल
जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बरसों पुरानी समस्या एक बार फिर सिविल सर्जन के व्हीआरएस लेने के साथ ही चरमराने लगी है....;
70 विशेषज्ञ व 28 द्वितीय श्रेणी चिकित्सकों के पद रिक्त
जांजगीर। जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बरसों पुरानी समस्या एक बार फिर सिविल सर्जन के व्हीआरएस लेने के साथ ही चरमराने लगी है। पहले से ही संसाधन विहीन स्वास्थ्य विभाग में विशेषज्ञ चिकित्सकों की घटती संख्या से मरीजों की मुश्किलें बढ़ने लगी है। जिले में विशेषज्ञ व द्वितीय श्रेणी चिकित्सकों के आधे से अधिक पद सालों से रिक्त है तो दूसरी ओर जिला अस्पताल समेत गांव-देहात के सामुदायिक व प्राथिमक स्वास्थ्य केन्द्रों में संसाधनों का अभाव बना हुआ है। विभागीय जानकारी की माने तो जिले में प्रथम श्रेणी डॉक्टर के 79 पद स्वीकृत है। जिनमें सिर्फ 9 पदस्थ है वहीं 70 पद रिक्त है। इसी तरह द्वितीय श्रेणी डॉक्टरों के 93 पद स्वीकृत है। इसकी तुलना में 64 डॉक्टर पदस्थ है जो अपनी सेवाएं दे रहे है। वहीं 28 पद खाली है।
गौरतलब है कि जांजगीर-चांपा को जिला बने 19 बरस हो रहे है और यहां स्वास्थ्य सेवाएं आज तक बदहाल है। जिला मुख्यालय में संचालित सबसे बड़े 100 बिस्तर वालें शासकीय जिला अस्पताल में तरीके से सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र स्तर की सुविधाएं ही नहीं है तो वहीं जिले के ब्लाक मुख्यालयों में संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और कस्बाई क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र व उपकेन्द्र में डॉक्टरों का टोटा हैं। जिले में प्रथम श्रेणी डॉक्टर के 79 पद स्वीकृत है। जिनमें सिर्फ 9 पदस्थ है वहीं 70 पद रिक्त है। इसी तरह द्वितीय श्रेणी डॉक्टरों के 93 पद स्वीकृत है। इसकी तुलना में 64 डॉक्टर पदस्थ है जो अपनी सेवाएं दे रहे है। वहीं 28 पद खाली है। डॉक्टरों की कमी होने के चलते गंभीर बीमारी के मरीजों को अन्य बड़े शहरों सरकारी व निजी अस्पतालों का मुंह ताकना पड़ता है। स्वास्थ्य विभाग के सेटअप में विशेषज्ञों के साथ एमबीबीएस डॉक्टरों की भर्ती की जानी है। लेकिन प्रथम व द्वितीय के कुल 15 पद ऐसे है जो पूरी तरह से खाली है। प्रथम श्रेणी के 9 विभागों के 31 विशेषज्ञों के पद रिक्त है। जिसमें परिवार कल्याण अधिकारी,जिला टीकाकरण अधिकारी, जिला क्षय नियंत्रण अधिकारी, जिला खंड चिकित्सा अधिकारी के 10 पद, मेडिसीन विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, अस्थि रोग विशेषज, मनो रोग आदि शामिल है। ऐसे में दूर-दराज से उपचार के लिए आने वाले मरीजों को डॉक्टर की कमी के चलते निजी क्लीनिक के सहारे निर्भर रहना पड़ रहा है।
ट्रामा सेंटर की कमी, ब्लड बैंक का बुरा हाल- जिला अस्पताल में विशाल भवन तो बना है लेकिन बेहतर सेवा एवं संसाधन की कमी है। इस वजह से लोग या तो निजी अस्पतालों का शरण लेते है या बड़ों शहरों की ओर रूख करते है। इससे लोगों की समय व धन दोनों की बर्बादी होती है। विषय विशेषज्ञों की कमी के कारण जिले में मनोरोग, हृदय, एलर्जी व अन्य जटिल रोगों का उपचार नहीं होता है।
जिला चिकित्सालय में ट्रामा सेंटर, आईसीयू वार्ड, सिटी स्केन मशीन के अलावा जिले में बर्न यूनिट का अभाव है। मरीज को इन्ही कमी के चलते बिलासपुर जाना पड़ता है। इसी तरह जिला अस्पताल में ब्लड बैंक की स्थापना तो कर दी गई है, परंतु वहां कर्मचरियों का टोटा है। वहीं दूसरी ओर न्यायालय आदेश के बाद जिले भर में झोलाछाप डाक्टरों के विरूद्ध कार्रवाईयां की जा रही है। ऐसे में स्वास्थ्य अमले को मजबूत बनाना अपरिहार्य हो गया है।