कांग्रेस के दबाव में मोदी आरसीईपी से पीछे हटे : शुक्ला

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रीय सचिव शुक्ला ने दावा किया कि उनकी पार्टी के विरोध के चलते मोदी ने थाईलैंड में आयोजित 14वें ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया;

Update: 2019-11-06 01:02 GMT

मथुरा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रीय सचिव राजीव शुक्ला ने दावा किया कि उनकी पार्टी के विरोध के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने थाईलैंड में आयोजित 14वें ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय समग्र आर्थिक समझौते (आरसीईपी) पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया ।

श्री शुक्ला ने मंगलवार को यहां पत्रकारों से कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका ने इस समझौते का पुरजोर विरोध किया था जिसके कारण किसानो, व्यापारियों आदि पर आने वाली बहुत बड़ी मुसीबत टल गई। इस पर हस्ताक्षर करने पर सरकार पर बहुत से सामान पर आयात ड्यूटी को कम करना पड़ता और चीन , साउथ कोरिया , थाइलैन्ड जैसे देश अपने सस्ते माल से बाजार को भर देते और ऐसे में भारत के माल का बिकना मुश्किल हो जाता। इससे छोटे छोटे धंधे चौपट हो जाते और यहां तक इसका असर दूध दही तक में पड़ता क्योंकि 40 देशों के लिए भारत का बाजार मुफ्त में खुल जाता।

उन्होने कहा कि मोदी राज में वेैसे ही देश की अर्थव्यवस्था चैपट हो गई है। जीडीपी लगातार घटती जा रही है।कांग्रेस के समय जो जीडीपी 8 प्रतिशत थी वह अब घटकर पांच प्रतिशत से नीचे आ गई है।महंगाई चरमसीमा पर पहुंच गई है तो भ्रष्टाचार हर क्षेत्र में हो रहा है । आज हालात यह है कि बेरोजगारी दर 16 प्रतिशत बढ़ने से करोड़ो लोग बेरोजगार हो गए हैं। कारखानों में छटनी हो रही है। पांच रूपए कीमतवाले बिस्कुट कम्पनी से 10 हजार कर्मचारी निकाल दिए गए हैं। लोगों के पास खरीददारी करने के पैसे नही हैं। एमएसपी पर भी किसानों के अनाज की खरीददारी नही हो रही है।

शुक्ला ने आरोप लगाया कि खाद, खेती के उपकरण यहां तक बिजली के मूल्य को घुमा फिराकर बढ़ाया जा रहा है तथा स्किल डेवलपमेन्ट प्रोग्राम का कहीं अता पता नही है। जीडीपी रोज घट रही है तथा छोटे कारखानों का उत्पादन घट रहा है।

उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था की गिरावट को रोकने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सरकार से कहा था कि मिल बैठकर इसका हल निकाला जाना चाहिए लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री के सौहाद्रपूर्ण प्रस्ताव को कोई अहमियत नही दी गई। उत्तर प्रदेश की हालत तो और भी बदतर है। कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी तक स्थिति ऐसी बन गई है कि किसान, मजदूर, व्यापारी, छात्र, नौकरी पेशा लोग सभी परेशान हैं।

दिल्ली और उत्तर भारत के सूबों में फैल रहे प्रदूषण के लिए कांग्रेस नेता ने केन्द्र सरकार को दोषी ठहराया और कहा कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर टिप्पणी कर दी है। हकीकत यह है कि प्र्द्दूषण जैसे मुद्दे पर राजनीति हो रही है। केन्द्र सरकार को उत्तर भारत के प्रदेशों के प्रतिनिधियों को बैठाकर इस पर पहल करनी चाहिए।

इस मौके पर उप्र विधान मंडल दल के पूर्व नेता प्रदीप माथुर ने पावर कार्पोरेशन में हुए ईपीएफ घोटाले के लिए प्रदेश के ऊर्जा मंत्री को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके त्यागपत्र की मांग की और कहा कि बिजली कर्मचारियों की गाढ़े की कमाई के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया गया उसके लिए पूरे मामले की लीपापोती नही होनी चाहिए।

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