जिले में दिन ब दिन बदहाल हो रही चिकित्सा व्यवस्था
जिले की स्थापना से ही स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की मंशा अधूरी रही है;
जांजगीर। जिले की स्थापना से ही स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की मंशा अधूरी रही है। इस दौरान अनेक प्राथमिक व उप स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना तो की गई, मगर इन केन्द्रों में अब तक डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हो पाई है।
जिसके चलते ज्यादातर स्वास्थ्य केन्दों में ताला लटका देखा जा सकता है। डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे जिले में कुल 146 पद स्वीकृत है, जिनमें से 55 पदों पर डाक्टर कार्यरत है वहीं 91 से अधिक पद खाली है। ऐसे में गांव देहात के लोगों का समुचित उपचार अस्पताल में नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते मरीजों को सीधे जिला अस्पताल या फिर निजी अस्पतालों में उपचार कराने को मजबूर होना पड़ रहा है।
जिले के 9 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, जहां नियमानुसार डाक्टर, स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वाय, लैब असिस्टेंट सहित अन्य कर्मचारियों की निुयक्ति होनी चाहिए। विभागीय जानकारी के अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों के 146 पद स्वीकृत है, मगर इसके विरूद्ध केवल 55 डॉक्टर ही सेवा दे रहे है। जबकि 91 रिक्त पद के लिए विभाग डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं कर पा रही है। ऐसे में इन स्वास्थ्य केन्द्रों में स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा मरीजों की प्रारंभिक मरहम पट्टी से ज्यादा ईलाज संभव नहीं हो पाता और मरीज मजबूरन निजी चिकित्सकों की शरण में जाने मजबूर है। इतना ही नहीं ग्रामीण ईलाकों में संचालित स्वास्थ्य केन्द्रों में मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है।
स्वास्थ्य केन्द्रों में पर्याप्त संसाधनों का अभाव है। यहां अलग-अगल वार्ड होना चाहिए, ताकि उपचार करते समय एक मरीज से दूसरे मरीज को इंफेक्शन होने का खतरा न हो। साथ ही प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में अलग से पैथोलैब, एक्स-रे सहित अन्य प्रकार की सुविधा भी मरीजों के लिए होनी चाहिए, लेकिन कई सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में संसाधनों की कमी बनी हुई है, जिसके चलते मरीजों का उपचार भी नहीं हो पाता। मजबूरीवश वे या तो जिला अस्पताल रिफर कर उिए जाते हैं या फिर उन्हें निजी अस्पतालों में अपना उपचार कराना पड़ता है।
ऐसे में आर्थिक के साथ मानसिक परेशानी मरीजों को होती है। वहीं जिले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के साथ 268 से भी अधिक उप स्वास्थ्य केन्द्र गांवों में संचालित किए जा रहे हैं, ताकि गर्भवती महिलाओं के साथ छोटे बच्चों एवं बड़े बुजुर्गों का ग्रामीण स्तर पर ही इलाज हो सके, लेकिन यहां भी डाक्टर, नर्स, दवा तो दूर ठीक ढंग से भवन भी नहीं है, जिसके चलते मरीजों का प्राथमिक स्तर पर उपचार नहीं हो पाता। देखा जाए तो एक तरफ तो शासन सुविधा बढ़ाने के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए खर्च कर रही है, वहीं इसके लिए जनजागरूकता शिविर एवं स्वास्थ्य शिविर लगाया जाता है, बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज आज भी प्राथमिक स्तर की सुविधा के लिए भटकते नजर आते हैं।
ऐसे में तो एक तरफ शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा आम लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर तमाम प्रकार की योजनाएं संचालित की जा रही है, जिसमें जननी सुरक्षा, परिवार कल्याण योजना, बाल श्रवण योजना, बाल हृदय योजना, महतारी जतन योजना, स्वास्थ्य बीमा योजना सहित कई प्रकार की योजनाएं शासन द्वारा आम लोगों के हितों को ध्यान में रखकर संचालित की जा रही है।
बावजूद इसके वास्तविक अर्थों में यह योजना अंतिम छोर के व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाती, जिसके कारण लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में मरीजों के सर्दी, खांसी, बुखार जैसे साधारण बीमारियों का उपचार तक नहीं हो पाता।
यहां आए मरीजों को संसाधनों का अभाव बताकर जिला अस्पताल रिफर कर दिया जाता है। ऐसे में वे जिला अस्पताल आने के बजाए निजी क्लीनिकों में उपचार कराना ज्यादा पंसद करते हैं। इस संबंध में सीएमएचओ डा.व्ही जयप्रकाश का कहना है कि जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों की कमी बनी हुई है। इसकी जानकारी स्वास्थ्य संचालनालय रायपुर को भेजी जा चुकी है। भर्ती प्रक्रिया शासन स्तर से की जानी है। सामुदायिक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आने वाले मरीजों का उपचार किया जाता है।
जुगाड़ के भवन में स्वास्थ्य केन्द्र
जिले में जिला चिकित्सालय के अलावा 9 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र 44 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा 106 उप स्वास्थ्य केन्द्र संचालित हैं। जहां चिकित्सा संसाधन तो दूर कर्मचारियों का ही टोटा बना रहता है। 25 स्वास्थ्य केन्द्र तो जुगड़ की भवन में संचालित हो रहे हैं। शेष जैसे-तैसे जर्जर भवनों में संचालित हो रहा हैं। लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से नि:शुल्क दवाई, ड्रेसिंग सहित अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है, जबकि नियमानुसार प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तक पहुंचने में वाले मरीजों को नि:शुल्क उपचार के साथ दवाई दिया जाना है।