नहरों व चेकडेम की हालत बदतर,मेंटनेंस के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति,खेतों तक नहीं पहुंच पा रहा पानी

लखनपुर ! सरगुजा के प्रथम मध्यम सिंचाई परियोजना के रूप में आदिवासी लघु सीमांत किसानों के लिये सन 1976 से वरदान के रूप में देखे जाने वाले कुंवरपुर जलाशय विभागीय उच्च अधिकारियों की घोर उपेक्षा का शिकार;

Update: 2017-03-03 22:24 GMT

लखनपुर !   सरगुजा के प्रथम मध्यम सिंचाई परियोजना के रूप में आदिवासी लघु सीमांत किसानों के लिये सन 1976 से वरदान के रूप में देखे जाने वाले कुंवरपुर जलाशय विभागीय उच्च अधिकारियों की घोर उपेक्षा का शिकार है। आसपास के किसानों का आरोप है कि निरीक्षण कुटीर बांध, बगीचा, नहर मार्ग, मुख्य नहर, छोटी माईनर देख-रेख साफ.-सफाई व्यवस्था के नाम पर कोरम ही किया जाता है। विभाग से जानकारी लेने पर प्रतिवर्ष रख-रखाव व मेंटनेंस के नाम पर व कटाव रोकने शासन मद से खर्च तो किया जाता है, पर इसका लाभ मैदानी स्तर पर नहीं दिखता। किसानों ने बताया कि सप्लाई नहर के जगह-जगह कटाव और खोह हो जाने के कारण आधे से अधिक पानी किसानों को नहीं मिल पाता।  मेनटेंस के नाम पर प्रतिवर्ष मजदूरी भुगतान की जानकारी तो बता दी जाती है पर व्यय कहां किया जाता है नहीं बताया जाता। कुंवरपुर बांध के मेढ़ मुख्य एवं छोटी माईनर की मेढ़ सडक़ की स्थिति भी खराब हो गई है।
आसपास के किसानों ने बताया कि सन 1977.78 में जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री श्री परिहार ने कुंवरपुर जलाशय क्षेत्र को किसानों के लिये धरती का सीना चीरकर सोना उपजाने का बेहतरीन अवसर मिलने की बात कहते हुये गुमगरा कलाए बगदर्री क्षेत्र में हर 15 दिवस में कंट्रोल रूम स्थापित कर कृषको की समस्या निवारण शिविर का आयोजन कराना आरंभ कराया था। उनके जाने के बाद विभाग के आला अधिकारियों ने अपने विभागीय व्यवस्था को कायम रखने में कोई रूची नहीं दिखाई।
बांध निर्माण के कुछ वर्षों तक तो बनाये गये नियम कायदों का चलन जारी रहा। बाद में विभागीय अधिकारी-कर्मचारी बदल गये, सारे नियम कायदे इसके बाद धीरे.धीरे समाप्त हो गया। किसानों ने बताया कि बांध बनाने के बाद हरा.भरा फलता-फूलता बांध के नीचे बनाये गये बगीचा अब सूखकर बंजर हो गये हैं।  बगदर्री के किसानों ने बताया कि सन 1976 के तत्कालिन मध्यप्रदेश के सिंचाई मंत्री रामचंद्र सिंहदेव के उद्घाटनों उपरांत जलाशय के निरीक्षण कुटीर व आगे मंदिर मार्ग तक लगे स्ट्रीट लाईट, बांध व मेढ़ में लगे रेलिंग व जाली चंद वर्षों के बाद ही असामाजिक तत्वों व चोरों के चपेट में आने से अब कुछ अवशेष बाकी हैं। 1980 के बाद कुंवरपुर जलाशय के सदाबहार बगीचा तथा  सौंदर्यता पर ऐसा ग्रहण लगा कि आज तक उस पर कोई कार्य नहीं हो सका। किसानों ने जिला प्रशासन व संबंधित विभाग के आला अधिकारी पूरे प्रकरण पर जांच की मांग की है।

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