दीपावली पर घरौंदा की पूजा करने की रही है परंपरा

अंधकार पर प्रकाश के विजयोत्सव का पर्व दीपावली के मौके पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ घरौंदा और रंगोली बनाकर उसकी पूजा करने की परंपरा रही है।;

Update: 2019-10-25 13:57 GMT

पटना । अंधकार पर प्रकाश के विजयोत्सव का पर्व दीपावली के मौके पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ घरौंदा और रंगोली बनाकर उसकी पूजा करने की परंपरा रही है।

भारतीय संस्कृति में हर पर्व का विशेष महत्व है और जब बात रौशनी के पर्व दीपावली की हो तो यह और भी खास हो जाता है। दीपावली पर घरौंदा बनाए जाने की परम्परा सदियों पुरानी है क्योंकि ऐसा मान्यता है कि यह सुख-समृद्धि का प्रतीक है। कार्तिक मास प्रारंभ होते ही सभी घरों में साफ-सफाई का काम शुरू हो जाता है। यह महीना दीपावली के आगमन का होता है। इसी दौरान घरों में घरौंदा का निर्माण शुरू हो जाता है। घरौंदा ‘घर’ शब्द से बना है और सामान्य तौर पर दीपावली के अवसर पर अविवाहित लड़कियां घरौंदा का निर्माण करती हैं, जिससे उनका घर भरापूरा रहे।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे तब उनके आगमन की खुशी में नगरवासियों ने घरों में दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। उसी समय से दीपावली मनाए जाने की परम्परा चली आ रही है। अयोध्यावासियों का मानना था कि श्रीराम के आगमन से ही उनकी नगरी फिर बसी है। इसी को देखते हुए लोगों में घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन हुआ।

भाई की आरोग्यता एवं धन-धान्य से उसके परिपूर्ण होने की कामना से घरौंदा पूजन किया जाता है। दीपावली की शाम बहनें मिट्टी के दीये जलाकर मिठाई, मूढ़ी, लावा एवं बताशा मिट्टी के बर्तन में भरकर विधि-विधान के साथ घरौंदा पूजन करती हैं। इसके बाद भाई को प्रसाद को खिलाती हैं।

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