पढाई के लिए बालिका वधू का इंकार, अब बनी मिसाल
इंदौर । यह एक ऐसी साहसी दलित वर्ग की लडक़ी के शौर्य की कहानी है, जो अपने बुलंद इरादों से आज समाज के सामने एक बड़ी मिसाल बनकर उभरी है।;
बाल विवाह को अदालत में दी चुनौती
मजदूरी कर माँ-बाप ने पढाया
मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित
अब खुद अपने पैरों पर खड़ी है वह
इंदौर । यह एक ऐसी साहसी दलित वर्ग की लडक़ी के शौर्य की कहानी है, जो अपने बुलंद इरादों से आज समाज के सामने एक बड़ी मिसाल बनकर उभरी है। छोटे से गाँव में रहते हुए 11 साल की छोटी-सी उम्र में उसका बाल विवाह हो गया था, लेकिन वह आगे पढना चाहती थी तो उसने बाल विवाह को अदालत में चुनौती देकर शून्य घोषित करवा दिया और पढाई जारी रखी। अब वह अपने पैरों पर खड़ी है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। मुख्यमंत्री ने भी उसका सम्मान किया।
यह कहानी है इंदौर से करीब सवा सौ किमी दूर जिला मुख्यालय आगर के पास बसे एक छोटे से गाँव ढोटी की रहने वाली 23 साल की श्यामू की। दलित वर्ग के गरीब परिवार की होने से 2005 में जब वह महज 11 साल की थी, तभी उसकी शादी कर दी गई. ससुराल वालों ने गौने का दबाव डाला कि यहाँ आकर वह घर-गृहस्थी का कामकाज संभाले तो उसने आगे पढने की इच्छा जताई. लेकिन इसके लिए वे तैयार नहीं हुए तो श्यामू ने अपने आगे पढने के लिए बाल विवाह के बंधन को तोड़ते हुए 11 फरवरी 2014 को न्यायालय में विधिवत रूप से अपने बाल विवाह को शून्य घोषित करवाया और पढाई के सपने को पूरा किया। आगर के कालेज से स्नातक की उपाधि अच्छे अंकों से लेकर अब वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। साथ ही गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढाकर और आंगनवाडी की सहायिका के रूप में वह अपनी पढाई का पैसा खुद कमा रही है। इस बात की खबर जब स्थानीय महिला बाल विकास अधिकारीयों को लगी तो उनकी पहल पर भोपाल के एक आयोजन में श्यामू को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तथा मंत्री माया सिंह ने एक लाख रूपये की राशि के साथ अवार्ड देकर सम्मानित किया। श्यामू की माँ कालीबाई और पिता गंगाराम उसके बारे में बात करते हुए भावुक हो जाते हैं। मजदूरी कर अपना घर चलाने वाले दंपत्ति बताते हैं कि वे उसके बेहतर भविष्य के लिए चाहे जितनी मेहनत और कर लेंगे किन्तु उसे मुकाम हासिल करने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रखेंगे। वे कहते हैं कि उनकी बेटी ने ही उनकी आँखे खोली।
श्यामू पुलिस अधिकारी बनना चाहती है लेकिन छोटे कद की होने से अब अन्य शासकीय अधिकारी बनने के लिए जी तोड़ कोशिश में जुटी है। वह कहती है कि उसके माँ-बाप ने दिन रात मजदूरी करके उसे पढाया है तो अब वह भी उनका सपना सच करना चाहती है। उसके पास इतने पैसे नहीं है लेकिन हौंसला ज़रूर है। वह दूसरी लडकियों से भी चाहती हैं कि वे किसी भी कीमत पर अत्याचार नहीं सहे और उनका डटकर मुकाबला करे तो सफलता ज़रूर मिलती है।