इस बगिया में
वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं लेखक संतोष श्रीवास्तव 'सम' के काव्य संग्रह 'इस बगिया में' पुस्तक में कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से कुछ संदेश देना चाहा है;
वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं लेखक संतोष श्रीवास्तव 'सम' के काव्य संग्रह 'इस बगिया में' पुस्तक में कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से कुछ संदेश देना चाहा है। जीवन ऐसा भी हो जो मानवता के काम आए, कम शब्दों में कवि ने कविता का अर्थ बहुत गहरा बताना चाहा है?। वह अपना जीवन अपने लिए नहीं जीना चाहते बल्कि मांँ भारती के चरणों को अर्पित करना चाहते हैं।
कवि ने अपनी कविता में समरसता की बयार का बखूबी चित्रण किया है। कवि कहते हैं कि अगर जो जीवन में आए संकट का सामना कर लिया, वो हर मुश्किल को पार कर लिया और निष्ठावान बनकर अपने कर्तव्य के प्रति वह समर्पित है तो लक्ष्य को हासिल करने से कोई नहीं रोक सकेगा। अपने सपने साकार होने से भी कोई नहीं रोक सकेगा।
एक पंक्ति -
आओ बढ़ो के मंजिल,
पग बस यूँ ही ले लेगी,
तुमने जो लक्ष्य बनाया,
निष्ठा निश्चित ही पा लेगी।
कवि विश्व शांति के लिए ऐसा दीपक बनना चाहते हैं जो अंतिम सांस तक लोगों में ज्ञान का प्रकाश भरना चाहता है ।वह शांत पवन की तरह शांति स्थापित करना चाहते हैं-
शांत पवन दे देना मन को,
जिससे शांति किरण बनूँ मै,
विश्व शांति का दीप बनूँ मै,
हर पल हर क्षण नित जलूँ मैं।
वहीं दूसरी ओर दूसरे कवियों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं कि अपनी कलम की खुश्बू ऐसी बिखेरों की उसकी महक चिरकाल तक के लिए बिखरी रहे । कवि अन्य कवियों को लिखने पर मजबूर कर देते है। कहते हैं कि -
चाहे महाप्रलय भी आये,
चाहे खड़ा हो महाकाल,
ओर कवि कलम की वेदी पर,
हो जाये तेरा ऊँचा भाल।
वही दूर गगन के पक्षी कविता में कवि कहते है-
देखो दूर गगन के पंक्षी,
उड़ते अपने पर फैलाये,
स्वतंत्रता में रमें हुए है,
किससे ये कब भय खाये।
ऐसे ही हमें भी स्वाभिमान से जीवन जीना चाहिए।
*पूरब पश्चिम* कविता का बहुत सुंदर सार्थक अर्थ बताते हैं। कवि कहते है - जिस पूरब का वासी हूँ मैं, उदित रवि होता है,
जगति के घोर तमस को,
पल में हर लेता है।
वहीं उन्होंने सरकार पर भी अपनी लेखनी के जादूगरी से बहुत तीखा करारा कटाक्ष किया है। और कवि ने यह भी बताना चाहा है,अपनी कलमकारी के माध्यम से कि - लोकतंत्र से दूरी क्यों हो रही है। *
जीवन देखें आओ* कविता में कवि बता रहे हैं कि ऋतुओं के समान जीवन में परिवर्तन होता है। कभी सावन तो कभी पतझड़ शाश्वत सत्य है।
कवि सत्ता परिवर्तन की ओर भी आते हैं और उनका कहना हैं कि हमने तमाम दलों को चेताया है, हमारी यह चुनौती होगी,
दो चार नहीं सौ करोड़ की होगी।
सत्ता के ऊपर गलत नीतियों का भी उन्होंने विरोध किया है।
कवि ने भूख कैसी पर बहुत ही सुंदर कलम चलाई है। उनका कहना है कि भूख लगती है, तो शब्द टूटने लगते हैं, और आवाज कराहने लगती है।
सबका अलग-अलग शब्द बोध और सबके अलग-अलग अर्थ हैं। कवि अपने जीवन पथ पर संघर्षों में हमेशा अड़े रहे है।
दीपक सा प्रज्वलित होकर कविता में भी उन्होंने कठिन परिस्थितियों से यानी अंधकार से प्रकाश में आने के लिए उन्हें कठोर संघर्ष किया है। उसी संघर्षों का उन्होंने बखूबी वर्णन किया है ।
*ऐ जिंदगी तू मेरे साथ साथ चल री कही,
जहांँ मिले इक सबेरा,
जहांँ मिले एक हंँसी।
आस्तिक बनो कविता की पंक्ति--
मैं आस्तिक हूं*
मेरे भगवान है,
पत्थर तोड़ते श्रमिक,
खेतों को जोतते किसान, और
पहाड़ जैसे भारों को
*वहन करते मजदूर।*
नकली चेहरे पर भी उन्होंने बहुत ही सुंदर अपनी कलम चलाई है। उनका कहना है कि
*बाहर दिखती कोमल कलियांँ,*
अंदर पर गांठ छुपाये से,
दीवारे चार बनाते हैं,
*समतल मैदानों में दिखकर।
- सरगुजा, छत्तीसगढ़।