लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में

पिछले साल राहुल गांधी ने लंदन में जब कहा कि भाजपा ने पूरे देश में नफ़रत का केरोसिन छिड़क दिया है;

Update: 2023-11-07 01:50 GMT

पिछले साल राहुल गांधी ने लंदन में जब कहा कि भाजपा ने पूरे देश में नफ़रत का केरोसिन छिड़क दिया है, तो भाजपा के प्रवक्ता ने तत्काल 1984 के सिख विरोधी दंगों का हवाला देते हुए कांग्रेस को ही घासलेट डालने वाली पार्टी बताने की कोशिश की थी। लेकिन अब अपने ही एक नेता के नफ़रत भरे बयान की आंच में भाजपा खुद झुलसती नज़र आ रही है। दरअसल राजस्थान के तिजारा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे बाबा बालकनाथ के समर्थन में आयोजित एक जनसभा में पार्टी के नेता संदीप दायमा- जो खुद पिछले चुनाव में इसी क्षेत्र से प्रत्याशी थे, ने कहा, कि 'कुछ लोग हमें धर्म और जाति के नाम पर बांटना चाहते हैं, हमें बहुत समझदार होने की ज़रूरत है। जिस तरह से मस्जिद और गुरुद्वारे बनाए गए और छोड़ दिए गए, वे आगे चलकर नासूर बन जाएंगे। इसलिए हमारा धर्म है कि नासूर को यहां से उखाड़ फेंकना चाहिए। अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ अब इस काम को पूरा करेंगे'।

इस बयान पर हंगामा तो होना ही था। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने तो अपना रोष जताया ही, शिरोमणि अकाली दल ने भी भाजपा का विरोध किया। और तो और, भाजपा के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संदीप के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर दी। हालांकि दायमा ने इस बीच अपने बयान पर माफी मांगते हुए एक वीडियो जारी किया और सफ़ाई दी कि वे अपने भाषण में दरअसल मस्जिद-मदरसे का ज़िक्र करना चाहते थे, लेकिन उनके मुंह से मदरसे की जगह गुरुद्वारे निकल गया। उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं पता कि मुझसे यह ग़लती कैसे हो गई। मैं उन सिखों का अपमान करने के बारे में सोच भी नहीं सकता, जो हमेशा हमारे सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं।' दूसरी तरफ बाबा बालकनाथ ने पत्रकारों से कहा कि 'दायमा से पाप हो गया है, लेकिन उम्मीद है कि सिख समुदाय उसे माफ़ कर देगा'।

दायमा ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को भी माफ़ी मांगते हुए चिठ्ठी लिखी लेकिन सिख समुदाय न तो दायमा के वीडियो से, न ही उनकी चिठ्ठी से संतुष्ट है। अलवर ही नहीं, राजस्थान के दूसरे शहरों और पंजाब में भी वह अपना आक्रोश जताने सड़कों पर उतर आया। हरियाणा सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी ने दायमा के भाषण पर नाराजगी ज़ाहिर करते हुए कैथल जिला कलेक्टर के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजा। एक वीडियो में जिला प्रशासन (शायद कोटा) के अफसरों को सिख समुदाय के नेता चुनाव आयोग के नाम ज्ञापन देते और सवाल पूछते दिखाई दे रहे हैं कि कि 'देश में चुनाव आयोग नाम की कोई चीज़ है या नहीं? अगर है तो महसूस क्यों नहीं हो रहा? एक आदमी मंच से मस्जिदों-गुरुद्वारों को नासूर बता रहा है तो चुनाव आयोग क्या कर रहा है'? सिख नेता आगे कहते हैं कि 'नासूर तो दरअसल भाजपा और दायमा जैसे फ़िरकापरस्त लोग हैं'।

हालांकि चुनाव आयोग ने दायमा को नोटिस जारी कर दिया है और भाजपा ने भी उन्हें निष्कासित कर दिया है। लेकिन सवाल ये है कि दायमा ने अगर गुरुद्वारे की जगह मदरसे ही कहा होता तो क्या आयोग और भाजपा उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करते? ध्यान रहे, नफ़रत की ये भाषा केवल सिखों, मुसलमानों या ईसाईयों के लिये नहीं बोली जा रही है, आम तौर पर भाजपा को समर्थन देने वाला जैन समाज भी इसकी चपेट में आ गया है। बाबा बालकनाथ एक हिन्दू पुजारी हैं और भाजपा के सांसद हैं, तो भाजपा के ही सांसद रहे महेश गिरी अब जूनागढ़ के पीठाधीश्वर और गुरु दत्तात्रेय ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। उन्होंने गिरनार तीर्थ में दिगंबर जैन संतों के आने पर उनके साथ हिंसा की बात कही, जिस पर जैन समाज ने अपना आक्रोश दिखाया तो महेश गिरी ने कहा कि उन्होंने नागा साधुओं के लिए वह बात कही थी, जैन संतों के लिए नहीं। दरअसल, गिरनार को भगवान नेमिनाथ की निर्वाण स्थली माना जाता है, लेकिन गिरी के मुताबिक वह भगवान दत्तात्रेय का स्थान है और जैनियों का वहां कोई अधिकार नहीं बनता।

कहना न होगा कि सिख समुदाय की तरह जैन समाज भी उद्वेलित है। सिख समुदाय ने अगर इस बात पर ऐतराज़ किया है कि दायमा के भाषण पर योगी आदित्यनाथ ताली बजा रहे थे तो गिरी के बारे में जैन समाज पूछ रहा है कि ऐसे आदमी को सांसद क्यों बनाया गया था। उसका कहना है कि 2013 में भी महेश गिरी की शह पर मुनि प्रबल सागर महाराज पर कातिलाना हमला किया गया था, जिसके विरोध में देशव्यापी आंदोलन हुआ था। लेकिन गिरी पर कोई कार्रवाई करने के बजाय भाजपा ने उन्हें पूर्वी दिल्ली से लोकसभा का टिकट दे दिया। अब एक बार फिर जैन समाज पूरे देश में आंदोलन के रास्ते पर है। अभी उसने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजे हैं और कहा है कि महेश गिरी पर कार्रवाई नहीं हुई तो दिगंबर जैन मुनि और आर्यिकाएं दिवाली नहीं मनाएंगे, बल्कि उस दिन वे अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करेंगे। यह दिवाली जैन समाज के लिए काली दिवाली होगी।

दायमा का पार्टी से निष्कासन शायद एक तात्कालिक समाधान हो, लेकिन गिरनार मामले में सरकार क्या कोई कदम उठाएगी- खास तौर से तब जब उसके गृह मंत्री स्वयं जैन समाज से ताल्लुक रखते हैं और उसी गुजरात से आते हैं जहां यह बवाल खड़ा हुआ है और उसकी जड़ में भगवा बिरादरी का ही एक सदस्य है। इससे भी बड़ा सवाल ये है कि लगभग एक ही समय में घटे इन दो प्रसंगों से क्या भाजपा कोई सबक लेगी!

एक बार फिर राहत इन्दौरी का शेर याद आता है -

'लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...'

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