काचीखेड़ा के जंगल में विरासत के अवशेष मिलने से मीडिया का जमावड़ा
होडल ! गढ़ी पट्टी से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित काचीखेड़ा के जंगल में हजारों साल पुराने कुषाणकाल की संस्कृतिक विरासत के अवशेष के मिलने की खबर लगते ही;
पुरात्तव विभाग की टीम के सदस्यों ने किया निरीक्षण
होडल ! गढ़ी पट्टी से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित काचीखेड़ा के जंगल में हजारों साल पुराने कुषाणकाल की संस्कृतिक विरासत के अवशेष के मिलने की खबर लगते ही मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया। काचीखेड़ा के जंगल में विरासत के अवशेष मिलने से जहां मीडिया का मौके पर पूरा दिन जमावड़ा लगा रहा, वहीं गांव के लोग इस मामले से पूरी तरह अनभिज्ञ दिखाई दिए। लगभग चार पांच वर्ष पहले ग्रामीणों द्वारा रास्तों को ऊंचा उठाने के लिए उक्त स्थान से मिट्टी की खुदाई कराई थी।
लेकिन गांव के कुछ मौजिज लोगों कें एतराज के बाद यहां खुदाई को बंद करा दिया गया और मामले की शिकायत पुरात्तव विभाग को कर दी। जिस पर विभागीय टीम के सदस्यों द्वारा उक्त स्थान का निरीक्षण किया गया था। टीम के सदस्यों को उक्त स्थान पर सर्वेक्षण के दौरान हजारों वर्ष पुरानी विरासत के अवशेष मिले थे। निरीक्षण के दौरान विभाग को पता चला कि उक्त मिले अवशेष कुषाणकाल की संस्कृतिक विरासत के अवशेष हैं। पुरात्तव विभाग की टीम के अनुसार सैंकड़ों फुट ऊंचे मिट्टी के टीले पर पुराने समय के फूलदान, कटोरी, हांडी, ईंट सहित अन्य कई प्रकार के बर्तन आदि मिले बताए गए। आज मिट्टी के टीले में तबदील हुए पड़े इस स्थान को हजारों वर्ष पहले काचीखेड़ा के नाम से पुकारा जाता था था। राजस्व विभाग के रिकार्ड में आज भी गांव का नाम काचीखेड़ा ही लिखा जाता है लेकिन गांव के युवा वर्ग के अलावा बुजुर्गों को भी इस काचीखेड़ा के इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वर्षों पुराने काचीखेड़ा में आज केवल मिट्टी का ऊंचा टीला ही दिखाई देता है जिसके चारों तरफ खेत खलिहान और टीले के आसपास मिट्टी के बर्तनों के अवशेष खुले पड़े दिखाई देते हैं। जिनसे अंदाजा लगाया जाता है कि उक्त स्थान पर किसी जमाने में बसावट थी। पुरात्तव विभाग की टीम द्वारा उक्त टीले के किए गए सर्वेक्षण के बाद यहां से मिटटी उठाने पर पाबंदी लगा दी गई थी,लेकिन शुक्रवार को उक्त काचीखेड़ा एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है।