स्वयंभू रक्षकों की हिंसा रोके सरकार : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह स्वयंभू रक्षकों के अपराधों पर लगाम लगाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन समूहों को कानून को अपने हाथ में नहीं लेने दिया जा सकता;

Update: 2018-07-04 00:14 GMT

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह स्वयंभू रक्षकों के अपराधों पर लगाम लगाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन समूहों को कानून को अपने हाथ में नहीं लेने दिया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम.खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे समूहों द्वारा की जा रही हिंसा को रोकने की उनकी जिम्मेदारी को याद दिलाया।

अदालत ने यह बात सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन एस. पूनावाला और महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी समेत कई अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कही। इन याचिकाओं में गौरक्षा समूहों की हिंसा को रोकने की गुहार लगाई गई है।

तुषार गांधी ने शीर्ष अदालत के इस मामले के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए कुछ राज्यों के खिलाफ मानहानि याचिका भी दायर की है।

अदालत का ध्यान हाल में महाराष्ट्र में बच्चा चोर होने की अफवाह में पांच लोगों की पीट पीटकर की गई हत्या की तरफ भी दिलाया गया। अदालत ने कहा कि किसी भी स्वयंभू रक्षकों के समूह की हिंसा को कुचला जाना चाहिए।

तुषार की तरफ से पेश हुईं वकील इंदिरा जयसिंह ने राष्ट्रीय राजधानी के पास एक व्यक्ति की पीट पीटकर हत्या का जिक्र करते हुए कहा कि अन्य अपराधों से अलग इस तरह के अपराधों (स्वयंभू रक्षकों के अपराधों) का एक पैटर्न और मकसद है और सवाल यह है कि राज्य इस मामले में कार्रवाई कर रहा है या नहीं।

अतिरिक्त महाधिवक्ता पी.एस.नरसिम्हा ने कहा कि केंद्र राज्यों के नाम एडवाइजरी जारी कर सकता है, क्योंकि कानून-व्यवस्था राज्य का मामला है।

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